उत्तर प्रदेश। यूपी की राजधानी लखनऊ में बीते 582 दिनों से 69,000 शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थी ईको गार्डन में धरनारत हैं। वह लगातार अपनी मांगो को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। धरना प्रदर्शन में शामिल अभ्यर्थियों के हौसले को इस कंपकपाती ठंड भी डिगा नहीं पा रही। इस ठंड में धरना दे रहे अभ्यर्थी सूखी रोटी और उबले आलू खाकर धरने को मजबूत बनाये हुए हैं। इनमें से पांच छात्र भूख हड़ताल पर भी बैठे हुए हैं। यह सभी यूपी के अलग-अलग जिलों से आये हुए हैं।
दरअसल, द मूकनायक की टीम गुरूवार शाम ईको गार्डन पहुंची थी। ईको गार्डन में पिछले 582 दिनों से 69,000 शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थी 6,800 आरक्षित पदों में हुई गड़बड़ी को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। शिक्षक अभ्यर्थियों की मांग है कि 69,000 शिक्षक भर्ती में 6,800 ओबीसी और एससी अभ्यर्थियों के साथ अन्याय हुआ और उन्हें भर्ती नहीं दी गई जिसे लेकर अभ्यर्थी सरकार का लगातार घेराव कर रहे हैं। शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों के साथ हो रहे अन्याय की आवाज विधानसभा तक भी गूँजी है। समाजवादी पार्टी हो या अन्य विपक्षी पार्टियां सभी इन शिक्षक अभ्यार्थियों के बहाने सरकार का घेराव कर रही है। अभ्यर्थी लगातार मुख्यमंत्री से बात करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अब तक उनकी बात नहीं हो पाई है। अभ्यर्थियों का कहना है कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होगी वह इसी तरह लगातार प्रदर्शन करते रहेंगे। शिक्षक अभ्यर्थी धरने के साथ-साथ अब 25 दिनों से भूख हड़ताल भी कर रहे हैं।
25 जुलाई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में यूपी के 1.37 लाख शिक्षामित्रों की सहायक शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया था और इन पदों पर भर्ती के निर्देश दिए। सरकार ने दो चरणों में इन पदों पर भर्ती करवाने का फैसला किया। पहले चरण में 68,500 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित की गई।
दिसंबर, 2018 में दूसरे चरण के 69 हजार पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया। पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण में किए गए कुछ बदलाव और फैसलों ने ऐसी असहज स्थिति पैदा की, कि भर्ती के हर चरण को आरोपों और अदालतों के कठघरे से गुजरना पड़ा। 67,000 से अधिक पद भरे जाने के बाद भी गलत सवाल और आरक्षण का विवाद अब भी विभाग की गले की हड्डी बना हुआ है। विज्ञापन जारी करने के बाद जिस भर्ती को छह महीने में पूरा करने की तैयारी थी, वह पहले डेढ़ साल तक कटऑफ के विवाद में अटकी रही।
दरअसल, पहले चरण में अनारक्षित वर्ग के लिए 45% और आरक्षित वर्ग के लिए 40% अंक का न्यूनतम कटऑफ तय किया गया था। दूसरे चरण में कटऑफ बढ़ाकर क्रमश 65% और 60% कर दिया गया। लेकिन, यह आदेश 6 जनवरी, 2020 को हुई भर्ती परीक्षा के अगले दिन जारी किया गया। इसका असर यह रहा कि हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमेबाजी के चलते नतीजे परीक्षा के 16 महीने बाद घोषित हो सके। विशेषज्ञों का कहना है कि विज्ञापन जारी करते समय ही कटऑफ तय कर दिया गया होता तो इतनी लंबी कानूनी लड़ाई से बचा जा सकता था।
ईको गार्डन में लगातार धरना प्रदर्शन जारी है। इस बीच धरना दे रहे अभ्यर्थी सूखी रोटी और उबले आलू खाकर आंदोलन को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। जौनपुर जिले से धरना प्रदर्शन में शामिल हुए विजय यादव ने ‘द मूकनायक’ को बताया, "पिछले 582 दिनों में से हम धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारी कोई अलग मांग नहीं है। हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं। यूपी के सीएम ने 23 दिसंबर 2021 को पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी। हमने उनसे आरक्षण में हुए घोटाले की बात बताई थी। उन्होंने अपने अधिकारियों को आदेश दिया था कि जो भी घोटाला हुआ है उसे सुधारते हुए इन्हें नियुक्ति पत्र दे दिया जाए। इसके अनुपालन में विभाग ने 6,800 लोगों की लिस्ट तो जारी कर दी, लेकिन 5 जनवरी 2022 के बाद 582 दिन इधर और चुनाव के पहले जो समय बीता, हमें सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया गया है। हमारे पास सब्जी खरीदने का पैसा नहीं है। हम रुखा-सूखा खाकर धरना दे रहे हैं। कोई सुनने को तैयार नहीं हैं।“
इस धरना में गाजीपुर जिले से आये अभ्यर्थी ने बताया, "हम लोग सूखी रोटी और आलू खाने पर मजबूर हैं। टैंकर में एक सप्ताह पहले पानी भरा गया था, उसे पीकर हम अपनी प्यास बुझा रहे हैं। हम जिस घर से आये हैं वहां एक बूढी माँ है, वह बीमार पड़ी हुई है। इसके बावजूद हम यहां धरना दे रहे हैं। अब अधिकारी बताएं कि कमियां कहाँ हैं?“
एक अभ्यर्थी ने बताया, "ईको गार्डन हमारे लिए अघोषित जेल है। पानी नहीं बदला जाता है। ठंडा पानी पीने पर मजबूर हैं। सोने कि कोई उचित व्यवस्था नहीं है। हम लोग यहां खुले में पड़े हुए हैं। कोई देखने वाला नहीं है। कुत्ते-बिल्ली भी हमारे बगल में आकर सो जाते हैं। रात में स्मारक समिति के लोग लाईट बंद कर देते हैं। हम अँधेरे में मोबाईल की रौशनी में खाना बनाते हैं।"
इस आंदोलन में शामिल प्रयागराज से आये अभ्यर्थी भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं। वह द मूकनायक को अपनी पीड़ा बताते हुए कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि हम पहले धरना नहीं करते थे। हमारी पीड़ा है। संविधान में जो अंतिम पायदान पर हैं, उनके लिए अपनी मांगों को मनवाने का यही तरीका है। हम अंतिम पायदान पर हैं। हमारा भी मन करता है हम अच्छा खाएं-पीयें, घूमें, टहलें लेकिन हमारे जीवन में अंधकार है। मैं भूख हड़ताल पर हूँ अगर मेरी मौत से मेरे भाइयों को नौकरी मिल जाती है तो इससे बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं होगा।"
धरना प्रदर्शन में शामिल अमरेंद्र पटेल कहते हैं, "हम लोग इस खुले आसमान में इसलिए सो रहे हैं क्योंकि हमारा समाज सोया हुआ है। अगर हमारा समाज जागा होता तो हमें ऐसा नहीं करना पड़ता। अपने सोये हुए समाज को जगाने के लिए हम ऐसा करने पर मजबूर हैं। हमारा हक और अधिकार किसी और को दे दिया है। वह लगातार हमारी जगह पर वेतन उठा रहे हैं। हम पिछड़े और दलित परिवार से थे इसलिए हमें यहां खुले आसमान में इस अघोषित जेल में रहने के लिए छोड़ दिया गया है।"
देवरिया जिले से आये धनंजय गुप्ता बताते हैं, "मैं अति पिछड़े इलाके से आया हूँ। मैं ऐसे परिवार से आता हूँ, जहां सरकारी नौकरी एक बड़ा सपना होता है। बड़ी मुश्किल से माँ के गहने और पिता की जमीन बेचकर हमारी पढ़ाई कराई गई है। मैं अपने खानदान का इकलौता आखिरी वारिस हूँ, जिसका शिक्षक भर्ती का सपना पूरा होने वाला था। लेकिन मनुवादी विचारधारा के लोगों ने माता-पिता के सपने को तोड़ दिया है।“
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