दिल्ली. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव को लेकर उत्पन्न विवाद के बीच विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने एनसीईआरटी का बचाव किया।
उन्होंने कहा कि कुछ शिक्षाविदों की आपत्तियों में कोई दम नहीं है और इनके द्वारा निशाना साधा जाना अवांछित है। कुमार की यह टिप्पणी, पॉलिटिकल साइंस की पाठ्यपुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में अपना नाम हटाने के लिए शिक्षाविद सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव के कुछ दिन पहले एनसीईआरटी को पत्र लिखे जाने के बाद आई है।
यूजीसी प्रमुख एम जगदीश कुमार कुमार ने ट्वीट किया, ‘‘हाल में, कुछ शिक्षाविदों ने पाठ्यपुस्तकों में संशोधन को लेकर एनसीईआरटी पर निशाना साधा, जो अवांछित है. पाठ्यपुस्तकों में वर्तमान बदलाव पहली बार नहीं हो रहा है. एनसीईआरटी ने पहले भी समय समय पर पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किया है’’।
उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी ने भी इस बात की पुष्टि की है कि वह हाल में विद्यालयी शिक्षा पर जारी किए गए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा के आधार पर नई पाठ्यपुस्तकें तैयार कर रहा है। अकादमिक भार कम करने के लिए मौजूदा पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाया गया है, जो केवल अस्थायी चरण है। कुमार ने कहा कि ऐसे में, इन शिक्षाविदों की ‘आपत्तियों’ में कोई दम नहीं है. इस प्रकार का असंतोष प्रकट करने का कारण एकेडमी नहीं, बल्कि कुछ और है.
73 शिक्षाविदों ने गत दिनों (15 जून) को संयुक्त बयान में आरोप लगाया कि एनसीईआरटी को बदनाम करने की पिछले तीन महीने से जानबूझकर कोशिश की जा रही है और यह ‘‘शिक्षाविदों के बौद्धिक अहंकार को दर्शाता है जो चाहते हैं कि छात्र 17 साल पुरानी पाठ्यपुस्तकों को ही पढ़ते रहें. ’’ बयान में कहा गया है, ‘‘प्रमुख सरकारी संस्थान एनसीईआरटी को बदनाम करने और पाठ्यक्रम अपडेट करने के लिए अत्यावश्यक प्रक्रिया को बाधित करने की पिछले तीन महीने से जानबूझकर कोशिश की जा रही हैं.’
एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से कई विषयों और अंशों को हटाने से पिछले महीने यह विवाद शुरू हुआ था। विवाद के मूल में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पाठ्यपुस्तकों को तर्कसंगत बनाने की कवायद के तहत किए गए परिवर्तनों को अधिसूचित किया गया था, लेकिन विवादास्पद रूप से हटाई गई कुछ सामग्री का उल्लेख नहीं किया गया था।
वहीं, 11वीं कक्षा की समाजशास्त्र की बुक से गुजरात दंगों के अंश को भी हटा दिया गया है। एनसीईआरटी ने हालांकि कहा था कि पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की कवायद पिछले वर्ष की गई और इस साल जो कुछ हुआ है, वह नया नहीं है।
यूजीसी अध्यक्ष ने आगे कहा कि, ‘NCERT ने पुष्टि की है कि वह हाल ही में जारी हुए नेशनल करिकुलम फ़्रेम वर्क फॉर स्कूल एजुकेशन के आधार पर किताबों का नया सेट तैयार कर रहा है. वर्तमान में जो संशोधन किए गए हैं, वह अस्थायी हैं. ये संशोधन, अकादमिक भार कम करने के लिए किए गए हैं.ऐसे में इन शिक्षाविदों की ओर से बदलाव पर विवाद खड़ा करना बिलकुल भी उचित नहीं है. इसके पीछे एकेडमिक नहीं बल्कि कोई और ही वजह लगती है।"
गौरतलब है कि हाल ही में योगेंद्र यादव और सुहास पालसीकर ने NCERT को पत्र लिखकर किताबों से उनका नाम हटाने को कहा था। इसके बाद 33 शिक्षाविदों ने राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की किताबों से अपना नाम हटाने की मांग की थी। इन शिक्षकों ने कहा कि उनका समूह रचनात्मक प्रयास खतरे में है। दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू, हैदराबाद यूनिवर्सिटी, गुवाहाटी यूनिवर्सिटी समेत देश के अलग-अलग उच्च शिक्षा संस्थानों से जुड़े इन शिक्षाविदों ने एनसीईआरटी के निदेशक को पत्र लिखकर कहा है कि पाठ्यक्रम से उनका नाम हटाया जाए किताबों के संशोधन की प्रक्रिया से नाराज शिक्षाविदों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
एनसीआरटी में भी कुछ दिन पूर्व पाठ्यक्रम से कुछ पाठ हटाए। एनसीईआरटी ने हाल ही में इतिहास की किताबों में कुछ अंशों को भी हटा दिया था। खासकर 12वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक से मुगलों और 11वीं कक्षा की किताब से उपनिवेशवाद से संबंधित कुछ अंश को हटाया गया था। इसके अलावा महात्मा गांधी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ तथ्य भी पुस्तकों से हटाए गए थे।
इसके बाद एनसीईआरटी ने कक्षा 9 और 10 के साइंस के सिलेबस से दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक चार्ल्स डार्विन की इवोल्यूशन थ्योरी को हटाने का फैसला किया था। इसके अलावा विश्व राजनीति में से अमेरिकी अद्वितीय और द कोल्ड वर एरा जैसे अध्यायों को नागरिक शास्त्र की पाठ्य पुस्तक से पूरी तरह से हटा दिया गया है। 12 वीं की किताब पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस ए राइज ऑफ़ पापुलर मूवमेंट और एरा ऑफ़ वन पार्टी डोमिनेंस को भी हटा दिया गया है।
एनसीईआरटी ने नये शैक्षणिक सत्र के लिए 12वीं कक्षा की पॉलिटिकल साइंस की किताब में से ‘महात्मा गांधी की मौत का देश में साम्प्रदायिक स्थिति पर प्रभाव, गांधी की हिन्दू मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिन्दू अतिवादियों को उकसाया,’ और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध’ सहित कई पाठ्य पार्ट को हाल में हटा दिया था।
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