उदयपुर। प्रतिस्पर्धा के वर्तमान दौर में जहां कपल्स अपने बच्चे के पैदा होने से पहले ही उसके लिए स्कूल चुन लेते हैं, वहीं भारत मे ऐसे अभिभावकों की भी संख्या बढ़ रही है जो अपने बच्चों को किताबी रटन्तु शिक्षा व्यवस्था की बजाय व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करना ज्यादा फायदेमंद समझते हैं।
उदयपुर में वैकल्पिक शिक्षा आंदोलन के प्रणेता और शिक्षान्तर अभियान के संस्थापक दंपति विधि और मनीष जैन दूसरी श्रेणी के पेरेंट्स में शुमार हैं और इसी वजह से उन्होंने अपनी बेटी कंकु को स्कूल नहीं भेजा। जिस तरह से स्कूलों से बच्चों को कभी कभार फील्ड ट्रिप में जंतुआलय ले जाता है, उसी तरह मनीष और विधि भी कंकु को यदा-कदा स्कूल भ्रमण पर ले जाते थे ताकि उसे किताबी ज्ञान और वास्तविक ज्ञान के बीच का फर्क समझ आ सके। अब 21 वर्षीय कंकु को देखकर यकीन करना मुश्किल है कि उसने कभी स्कूल से शिक्षा प्राप्त नहीं की।
मनीष हार्वड यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं और उनकी माता बाल रोग विशेषज्ञ थी। विधि के पिता प्रशासनिक सेवा में होने से ट्रांसफरेबल जॉब होने के कारण विधि ने देश के विभिन्न शहरों में नामी स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की। अजीब संयोग है कि दोनों की अपने अपने अनुभवों को लेकर समान धारणा ये बनी कि स्कूल केवल ज्ञान का बाजारीकरण कर उसे किताबों में पैक कर रहे हैं, जबकि असली शिक्षक ज्ञान को क्रिएट करने वाला होता है। वे मानते हैं कि खेती बाड़ी के स्कूल में सीखने की जगह एक किसान से बेहतर तरीके से सीखा जा सकता है। विधि और मनीष कम्युनिटी को ज्ञान प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ जरिया मानते हैं। द मूकनायक से अपने विचार सांझा करते हुए इस दंपत्ति ने बताया कि बच्चा जितना अपने परिवार, दादा-दादी, नाना-नानी, आस-पास के लोगों से सीखता है उतना बंद क्लासरूम में नहीं सीख सकता है। "हम एक दूसरे से मिले और पहचान हुई। हम दोनों ने अपने विवाह से पहले ही यह तय कर लिया था कि हम अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे। हम एक परिवार के रूप में साथ-साथ बढ़ना और सीखना चाहते थे और इसीलिए कंकु कभी स्कूल नहीं गयी।" ये परिवार सदैव साथ रहता है, घूमता है , सीखता है जिसे वे सही मायनों में परिवार मानते हैं।
कंकु के पास स्कूल या कॉलेज की कोई डिग्री सर्टिफिकेट नहीं लेकिन वह मल्टी टेलेंटेड और आत्मविश्वास से लबरेज दिखती है। कंकु को कला से बेहद लगाव है। वो एक कलाकार है, वह गायन, पेंटिंग, फोटोग्राफी और फिल्म निर्माण जैसे विभिन्न माध्यमों के साथ काफी प्रयोग कर रही है। वह ब्लॉगर भी है। उंसे गुड़िया बनाना बहुत पसंद है, टेक्सटाइल और फ़ैशन के क्षेत्र में उसने कदम बढ़ा लिए हैं। वह एक युवा उद्यमी भी है और अपनी कला को परिवार और दोस्तों के साथ साझा और बेच भी रही हैं। बचपन से कंकु ने कम्युनिटी से सीखा जिसमे किसान, बागवान, सब्जियां बेचने वाले, कारपेंटर, पेंटर, इलेक्ट्रीशियन आदि सभी वर्ग के लोग शामिल थे। उसका सपना मेकअप आर्टिस्ट बनने का है, इसलिए वह अलग-अलग ब्यूटी पार्लरों में भी समय बिताना पसंद करती है। अपने दोस्तों की स्टाल पर कार्य करते करते कंकु ने पानीपुरी बनाना भी सीख लिया था। वह स्किन केयर पर हर्बल उत्पाद बनाती है।
मनीष और विधि कहते हैं कि कंकू को स्कूल से बाहर करने का अनुभव बहुत सकारात्मक रहा है। हमारा मानना है कि बच्चों के पास खुलकर खेलने के लिए काफी समय होना चाहिए। फ्री प्ले सीखने का एक शक्तिशाली स्रोत है, समय की बर्बादी नहीं।
"एक स्कूल में नहीं होने के कारण, वह बहुत सी चीजें करती हैं जो एक व्यावहारिक प्रकृति की होती है। वो विभिन्न उम्र के बहुत से लोगों के साथ बातचीत करती हैं। वह भी हमारे साथ बहुत यात्रा करती है और सभी प्रकार की संस्कृतियों का अनुभव करती है। वह कई चीजों को लेकर बहुत जुनूनी है, और हम उसे इन जुनूनों का पालन करने देते हैं। कंकू प्रकृति के बेहद करीब है। उसे जानवरों और पौधों की देखभाल करना बहुत पसंद है। वह कभी-कभी उदयपुर में पशु आश्रय में स्वयंसेवा करती हैं," दंपति ने द मूकनायक को बताया।
बकौल मनीष और विधि ये दृष्टिकोण भारतीय संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक है। अधिक से अधिक लोग जिनके पास डिग्री है वे बेरोजगार बैठे हैं। कार्यरत लोगों में से अधिकांश या तो अल्प-नियोजित हैं या वे जो काम करते हैं उसके बारे में उत्साहित नहीं हैं। होमस्कूलिंग/अनस्कूलिग दृष्टिकोण बच्चे को भविष्य के लिए कई और विकल्प देता है। "हमारे पास वास्तव में भारत में इस रास्ते पर बच्चों का समर्थन करने के लिए सीखने के कई संसाधन उपलब्ध हैं। अब तक, हम व्यक्तिगत रूप से पूरे भारत में लगभग 1,000 मध्यम वर्गीय परिवारों को जानते हैं जो इस आंदोलन में हमारे साथ शामिल हुए हैं। और हमारा अनुमान है कि शहरी भारत में कम से कम 10,000 ऐसे परिवार हैं जो बच्चों को स्कूल की बजाय वास्तविक ज्ञान दे रहे हैं।"
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