चेन्नई। कॉलेज और स्कूल के छात्रों के बीच जाति और समुदाय के आधार पर हिंसा पर लगाम लगाने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के चंद्रू की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय समिति ने गत मंगलवार, 18 जून को तमिलनाडु सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। समिति की सिफारिशों में छात्रों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रंगीन रिस्टबैंड और अन्य जाति चिह्नों पर प्रतिबंध लगाना और सोशल जस्टिस स्टूडेंट्स फोर्स (एसजेएसएफ) के गठन की अनुशंसा की गई है।
समिति द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशों में से एक यह है कि स्कूलों के नामों से जाति सूचक शब्द हटा दिए जाने चाहिए और सभी को सरकारी स्कूल कहा जाना चाहिए। इसके अलावा, यह भी सिफारिश की गई है कि सरकारी स्कूलों के नाम के आगे पीछे लगे किसी भी जातिसूचक शब्द या सरनेम को हटा देना चाहिए।
एक अन्य मुख्य सिफारिश में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए 11वीं और 12वीं की कक्षाओं में विज्ञान पाठ्यक्रमों में आरक्षण नीति लागू करने की सिफारिश की है। इसके अलावा, समिति ने सामाजिक बुराइयों से निपटने के लिए सभी समुदायों के छात्रों के साथ एसजेएसएफ के गठन की भी सिफारिश की है। यह भी सुझाव दिया गया है कि शिक्षा के भगवाकरण और शैक्षणिक संस्थानों में घुसपैठ करने वाली गतिविधियों, जाति और सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित करने के आरोपों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ निकाय या एजेंसी बनाई जानी चाहिए।
इसके अलावा, राज्य द्वारा संचालित सभी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए एक समान आचार संहिता की सिफारिश करने के साथ-साथ, समिति यह भी सिफारिश करती है कि शिक्षक भर्ती बोर्ड (टीआरबी) द्वारा शिक्षकों की भर्ती से पहले सामाजिक न्याय के मुद्दों के प्रति दृष्टिकोण का पता लगाया जाना चाहिए और उसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह भी सुझाव दिया गया है कि सभी शिक्षकों और कर्मचारियों को हर शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से पहले सामाजिक मुद्दों, जातिगत भेदभाव और यौन हिंसा, यौन उत्पीड़न, ड्रग्स, रैगिंग और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराधों से संबंधित विभिन्न कानूनों से संबंधित एक अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम से गुजरना चाहिए और उन कानूनों का उल्लंघन करने के परिणामों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
क्लासरूम के माहौल व संचालन के बारे में समिति ने कहा है कि छात्रों की उपस्थिति रजिस्टर में उनकी जाति से संबंधित कोई कॉलम या विवरण नहीं होना चाहिए, तथा कोई भी शिक्षक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी छात्र की जाति का उल्लेख नहीं करेगा या उसके बारे में कोई अपमानजनक टिप्पणी नहीं करेगा, जिसका उल्लंघन करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
समिति ने कहा कि छात्रों को किसी भी तरह के रंगीन रिस्टबैंड, अंगूठी या माथे पर टीका लगाने से रोका जाना चाहिए, तथा उन्हें अपनी जाति के संदर्भ में चित्रित साइकिलों या किसी भी जाति-संबंधी भावनाओं को प्रदर्शित करने से स्कूल आने से बचना चाहिए। इसके साथ ही समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि प्रत्येक ब्लॉक के लिए एक परामर्शदाता नियुक्त किया जाना चाहिए तथा 500 से अधिक छात्रों वाले प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय के लिए स्कूल वेलफेयर ऑफिसर (एसडब्लूओ) का पद सृजित किया जाना चाहिए।
एसडब्लूओ को रैगिंग, नशीली दवाओं के खतरे, यौन उत्पीड़न और जातिगत भेदभाव से संबंधित अपराधों के संबंध में स्कूल के कामकाज की निगरानी करनी चाहिए और कानून के अनुसार इन मुद्दों का समाधान करना चाहिए। इसके अलावा, स्कूल प्रबंधन के खिलाफ शिकायतों के मामले में एसडब्ल्यूओ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकता है और जातिगत भेदभाव और अन्य अनुचित व्यवहारों के संबंध में शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश भी कर सकता है।
उल्लेखनीय है अगस्त 2023 में समिति का गठन किया गया था, जब नांगुनेरी में दो दलित बच्चों पर छह नाबालिगों के एक समूह ने चाकू लेकर उनके घर में घुसकर हमला किया था। चिन्नादुरई पर कथित तौर पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि वह पढ़ाई में अव्वल था और उसे बचाने की कोशिश में उसकी बहन घायल हो गई थी।
इससे पहले, सरकार ने सेवानिवृत्त अधिकारियों को तमिलनाडु में जेजेई अधिनियम के तहत गृहों के कार्यों को देखने और उनकी दक्षता में सुधार के तरीके सुझाने का काम सौंपा था, जिसकी रिपोर्ट 15 नवंबर, 2023 को प्रस्तुत की गई थी।
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