भोपाल। मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी के चलते शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है। लगभग 70 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं, जिससे स्कूलों में शिक्षण कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 1,275 स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षक मौजूद नहीं है। इसके अलावा, 6,858 स्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं, जो सभी विषय पढ़ाने की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
शिक्षकों की भारी कमी के चलते राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के मानकों के अनुसार, छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना असंभव हो गया है। शिक्षा पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में करीब 30 हजार शिक्षकों की भर्ती की गई है, जो समस्या को हल करने के लिए अपर्याप्त साबित हो रही है।
प्रदेश के लगभग 1 लाख 22 हजार स्कूलों में 1 करोड़ 10 लाख छात्र अध्ययनरत हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी के चलते छात्रों को बेहतर शिक्षा देने में प्रदेश असफल होता दिखाई दे रहा है। इससे विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के छात्र प्रभावित हो रहे हैं, जहां शिक्षक बहुत कम संख्या में उपलब्ध हैं।
शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में भी स्थिति गंभीर है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों के स्कूल भी शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। भोपाल के 7 स्कूल, ग्वालियर के 18, इंदौर के 16 और जबलपुर के 15 स्कूलों में शिक्षकों का भारी अभाव है। कई स्कूलों में केवल एक शिक्षक ही पूरी स्कूल को संभाल रहे हैं। भोपाल के 43 स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को एक ही शिक्षक पढ़ा रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है।
प्रदेश के 10 जिलों में सबसे अधिक शिक्षक विहीन स्कूल हैं, जिनमें सिंगरौली 111 स्कूल, रीवा 84 स्कूल, शिवपुरी 76 स्कूल और छतरपुर 56 स्कूल शामिल हैं। इसके अलावा, शिवपुरी में 420 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक पढ़ा रहे हैं। सतना, रीवा, और विदिशा जैसे जिलों में भी स्थिति बेहद चिंताजनक है।
शिक्षकों की कमी के बावजूद, शहरी क्षेत्रों में 28,815 अतिशेष शिक्षक मौजूद हैं। भोपाल में सबसे अधिक 1,036 अतिशेष शिक्षक हैं, वहीं ग्वालियर, इंदौर, सागर और सतना जैसे जिलों में भी बड़ी संख्या में अतिशेष शिक्षक कार्यरत हैं। यह असंतुलन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा की खामियों को और बढ़ा रहा है।
शिक्षकों की कमी के साथ-साथ स्कूलों में अन्य बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। राज्य के 11,000 स्कूलों में शौचालय बदहाल स्थिति में हैं, जबकि 36,000 स्कूलों में बिजली की व्यवस्था नहीं है। 32,000 स्कूलों में खेल मैदान नहीं हैं, और 1,500 स्कूलों में बाउंड्रीवाल नहीं है, जिससे छात्रों की सुरक्षा भी खतरे में रहती है।
राज्य के प्राथमिक शिक्षकों के 20 हजार पद खाली हैं, जबकि माध्यमिक शिक्षकों के 50 हजार पद खाली पड़े हैं। ऐसे में छात्रों की शिक्षा पर गहरा असर पड़ रहा है। शिक्षकों की कमी के चलते छात्रों को उचित मार्गदर्शन और समय पर सभी विषयों की पढ़ाई नहीं मिल पा रही है, जिससे उनकी शैक्षणिक प्रगति बाधित हो रही है।
स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. संजय गोयल कहना है की, जिन जिलों के स्कूलों में शिक्षक विहीन स्थिति है या केवल एक शिक्षक हैं, वहां अतिशेष शिक्षकों को स्थानांतरित किया जाएगा। इसके बाद खाली पदों पर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी।
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