राजस्थान: कुक कम हेल्पर्स जो हजारों बच्चों का बनाती हैं खाना, खुद के निवाले का नहीं ठिकाना

मनरेगा से भी कम मजदूरी- प्रतिदिन 71 रुपए के हिसाब से मानदेय. कोई आकस्मिक,मेडिकल उपार्जित अवकाश का प्रावधान नहीं है
कुक कम हैल्परों को समय पर मानदेय नहीं मिलता है। कई बार तो 7 माह का मानदेय एक साथ मिलता है।
कुक कम हैल्परों को समय पर मानदेय नहीं मिलता है। कई बार तो 7 माह का मानदेय एक साथ मिलता है।
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जयपुर- राजस्थान में न्यूनतम गारंटीशुदा मजदूरी के आदेश कागजी साबित हो रहे है. स्कूलों में बच्चों के लिए खाना बनाने वाली महिलाएं सुबह से लेकर दिनभर बंधुआ मजदूर की तरह काम कर रही हैं लेकिन राज्य सरकार इनका शोषण कर रही हैं. भुगतान करते समय इन्हें न तो नरेगा श्रमिकों की तरह मजदूरी मिलती हैं, ना ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की तरह वेतन श्रृंखला का न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जा रहा है. उल्टे सरकार इन्हें राजकीय कर्मचारी भी मानने से इंकार कर रही हैं जबकि वास्तविकता तौर पर सरकारी स्कूलों में कुक कम हेल्पर वही सभी काम स्कूल में कर रहे है जोकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के होते है।

पोषाहार पकाने वाली महिलाओं का दर्द यह है कि इनको कम मानदेय मिलने व 6 माह से मानदेय का भुगतान होने से परिवार को पालना मुश्किल हो रहा है। राजस्थान शिक्षक संघ सियाराम कुक कम हेल्पर की पीड़ा को लम्बे समय से उठाता आ रहा हैं और स्थाई कर उपस्थिति पंजिका में हस्ताक्षर करने ओर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के समकक्ष समस्त लाभ प्रदान किए जाने हेतु मानदेय में बढ़ोतरी की मांग कर रहा है।किन्तु कोई सुनवाई नहीं हो रही है। विद्यालय में जब भी कोई जनप्रतिनिधि या अधिकारी आते है हेल्पर उन्हें अपनी पीड़ा बताते है, आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। 50 छात्र छात्राओं के अनुपात पर एक हेल्पर रखने का प्रावधान है।

रोटियां बेलते बेलते हाथ थक जाते किन्तु खुद नहीं खा सकते

स्कूलों में कक्षा 8 तक के बालकों को मिड डे मील के तहत मेन्यू चार्ट के अनुसार दाल, सब्जी, रोटी व चावल पकाया जाता है। इसे पकाने के लिए सरकारी स्कूलों में छात्र छात्राओं की संख्या के अनुपात के अनुसार महिला कुक कम हेल्पर रखे हुए है। 

इनमें से कई महिला कुक कम हेल्पर तो ऐसी है जिनका पूरा समय ही स्कूल में खप जाता है और वे दूसरा कार्य नहीं कर पाती है। इतना सब करने के बाद भी इन्हें महज 71 रुपए प्रतिदिन अनुदान मिलता है। जिससे इनका खुद का गुजारा भी नहीं चल सकता है।

न्यूनतम गारंटीशुदा मजदूरी 769रु प्रतिदिन है जोकि प्रतिमाह 23,580 रूपये होते है इसकी जगह 2143 रूपये ही दे रही है और खुद के जारी आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

 इतने कम मानदेय पर काम करने के बाद भी जिले के कुक कम हेल्पर पिछले 6 माह से मानदेय का भुगतान नहीं हो रहा है। कई जिलों में तो 9 माह से मानदेय का भुगतान बकाया चल रहा है।  इनको प्रतिमाह 2143 रुपए मानदेय का भुगतान किया जाता है। मार्च तक इनका मानदेय 2 हजार था। अप्रेल में बढ़ाकर 2143 रुपए किया था। 

मानदेय के साथ राशन सामग्री का बजट भी पिछले 6 माह से नहीं आ रहा है। दूध गर्म करने के लिए देय राशि 11 माह से लम्बित है।
मानदेय के साथ राशन सामग्री का बजट भी पिछले 6 माह से नहीं आ रहा है। दूध गर्म करने के लिए देय राशि 11 माह से लम्बित है।

सर्दी गर्मी या फिर बारिश हो। इनको स्कूल खुलने पर हर हालत में स्कूल आना पड़ता है। इनके समक्ष कैसे भी स्थिति हो इनको खाना पकाने के लिए आना ही पड़ता है।

 पूरे साल में इनको किसी तरह की कोई छुट्टी नहीं मिलती है। कभी किसी जरूरी कार्यवश अनुपस्थित रहने पर मानदेय में कटौती की जाती है। 

गर्मियों की छुट्टियों में डेढ़ माह के पैसे भी मानदेय में कटौती करके भुगतान किया जाता है।कोई आकस्मिक,मेडिकल ,उपार्जित अवकाश का प्रावधान नहीं है. बच्चों को स्कूल में भरपेट भोजन करवाने वालीं  माताएं खुद के घर का चूल्हा नहीं जला पा रही हैं . मुश्किल हालात में काम नहीं करना चाहती हैं तो संस्था प्रधान इन्हें इमोशनल स्थाई होने का लॉलीपॉप दे कर गांव के संभ्रांत SDMC में दबाव बनवा कर काम ले रहे हैं. न तो इनके उपस्थिति पंजिका में हस्ताक्षर कर वा रहे है नहीं इन्हें अनुभव प्रमाण पत्र दिया जा रहा है इससे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती में वर्षो से कार्यरत इन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा हैं यानि इनका आर्थिक रूप से शोषण किया जा रहा हैं।

खाना परोसने के बाद बर्तन साफ करना व रसोई का काम निपटा कर घर पहुंचने तक महिलाओं को शाम हो जाती है।
खाना परोसने के बाद बर्तन साफ करना व रसोई का काम निपटा कर घर पहुंचने तक महिलाओं को शाम हो जाती है।

कुक कम हैल्पर को सुबह स्कूल खुलने के समय 9.30 बजे स्कूल पहुंचना पड़ता है। मध्यांतर तक खाना पकाकर इसे बालकों को परोसना पड़ता है। 

अब सभी स्कूलों में रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध होने के बाद स्कूलों में रोटियों को सेकने का कार्य अब गैस के चूल्हों पर हो रहा है। खाना परोसने के बाद बर्तन साफ करना व रसोई का काम निपटा कर घर पहुंचने तक शाम हो जाती है।

बजट के समय से उपलब्ध नहीं होने से मिड डे मील प्रभारी को दुकानदारों से उधार में राशन सामग्री खरीदनी पड़ती है। बजट नहीं आने से कई प्रभारी जेब से भी भुगतान करके मिड डे मील सामग्री खरीद रहे है। या फिर छुपते फिर रहे हैं।

बांसवाड़ा जनजाति जिले मे 168 मिड डे मील कक्ष अत्यंत जर्जर भवन के कारण खुले में भोजन पकाया जाता हैं बर्तन पुराने होने से मरम्मत मांग रहे हैं , प्रस्ताव अग्रेषित कर भिजवा दिए गए हैं। वर्षो से सफेदी नही होने से कालिख लगी हुई है निरीक्षण में आदेश देने के बावजूद बजट आवंटन नहीं होता है।

राउमावि अमरथुन घाटोल बांसवाड़ा के पीओ प्रधानाचार्य अरुण व्यास के मुताबिक कुक कम हेल्पर के समायोजन मानेदय वृद्धि सहित वर्तमान में महंगाई में राशन सामग्री खरीद,दूध गर्म करने की राशि का बजट भी कई माह से अटका हुआ है। 

व्यास ने कहा " यह राज्य सरकार का मामला है, हम तो मात्र आदेश की पालना करने वाले नौकर हैं, मिड डे मील आयुक्त को सभी समस्याओं का पता होगा समाधान भी उच्च अधिकारियों द्वारा ही पाएगा ।

महंगाई को लेकर राजस्थान में सभी स्कूलों में समान स्थिति बनी हुई हैं सभी स्कूलों की प्रतिदिन की रिपोर्ट अपडेट की जा रही है। बजट आवंटन होने पर दुकानदार की उधारी और मानदेय का भुगतान कर दिया जाएगा।"

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