जयपुर। राजस्थान के बारां जिले के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय लकड़ाई में गणतंत्र दिवस समारोह में सरस्वती की तस्वीर लगाने और पूजा के लिए एक शिक्षिका पर दबाव बनाने का मामला सामने आया है। हालांकि शिक्षिका ने ये करने से मना कर दिया और पूछा कि सरस्वती का शिक्षा में क्या योगदान है? तस्वीर सावित्री बाई फुले की तस्वीर लगेगी क्योंकि शिक्षा की देवी सावित्री बाई हैं सरस्वती नहीं। इस घटना को लेकर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है।
वीडियो में दिख रहा है कि गांव के मनबढ़ समारोह में पहुंच कर सांस्कृतिक कार्यक्रम बंद करवा देते हैं . बाद में मंच पर बाबा साहब डा.भीमराव अंबेडकर के चित्र के साथ सरस्वती का चित्र रख कर पूजा नहीं करने पर महिला शिक्षक को देख लेने की धमकी भी देते नजर आ रहे हैं। विरोध के बावजूद मनबढ़ों ने सरस्वती की तस्वीर लेकर मंच पर रख दी। बहादुर शिक्षिका ने डट कर ग्रामीणों के विरोध का सामना किया और गणतंत्र दिवस के प्रोग्राम में हिन्दू परम्परा का कोई औचित्य नहीं होना बताया.
प्रधानाध्यापक ने बताया समारोह में महापुरुषों व सरस्वती की तस्वीरों को लेकर उपजे विवाद के बाद सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने समझाइश कर गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम संचालित करवाया। महापुरुषों व धार्मिक देवी की तस्वीर को लेकर शुरु हुए विवाद में स्कूल के ही दो शिक्षकों का नाम सामने आ रहा है। आरोप है कि पहले तो दो शिक्षकों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लगाने पर एतराज किया। जब मंच पर बाबा साहब की तस्वीर लगा दी गई तो, शिक्षकों ने सरस्वती की तस्वीर भी मंच पर लगाने को कहा।
आरोप है कि कार्यक्रम संचालन कर रही शिक्षिका हेमलता बैरवा ने सरस्वती की तस्वीर नहीं लगाने दी। इससे नाराज शिक्षक भूपेन्द्र सेन व हंसराज सेन समारोह छोड़ कर गांव वालों के पास चले गए। उन्हें भडक़ा कर स्कूल में लाए। इसके बाद मनबढ़ अभिभावकों ने स्कूल में बवाल काटा। हालांकि शिक्षक हंसराज सेन ने द मूकनायक से बात करते हुए गांव वालों को भडक़ाने की बात से इनकार किया और कहा कि जब सरस्वती की तस्वीर नहीं लगी तो झंडारोहण के बाद वह मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय चले गए थे।
वीडियो में महापुरुषों व सरस्वती की तस्वीर को लेकर उपजे विवाद में ग्रामीणों से बहस करती नजर आ रही महिला शिक्षक हेमलता बैरवा से द मूकनायक ने बात की। शिक्षिका ने द मूकनायक को बताया कि गणतंत्र दिवस पर सांस्कृतिक समारोह संचालन की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी। इस मौके पर मंच पर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर सहित महापुरुषों की तस्वीर लगाने की बात आई। इस स्टाफ में से शिक्षक हंसराज सेन व भूपेंद्र सेन ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लगाने रोक दिया। बाद में जब तस्वीर लगा दी गई तो दोनो शिक्षकों ने साथ में सरस्वती की तस्वीर लगाने और उसकी पूजा करने का दबाव बनाया।
हेमलता बैरवा ने आगे कहा कि संविधान के मुताबिक सरकारी संस्था में किसी धर्म की पूजा अर्चना नहीं कर सकते। संविधान की पालना करते हुए उन्होंने सरस्वती की पूजा करने से इनकार किया था। उन्होंने कहा कि पूजा से इनकार के बाद दोनों शिक्षक समारोह छोड़ कर गए तथा ग्रामीणों को लेकर स्कूल में आए। कुछ ग्रामीणों नेभी सरस्वती की पूजा करने व उसकी तस्वीर लगाने का दबाव बनाया।
हेमलता ने कहा कि सरस्वती की पूजा के लिए मैंने ग्रामीणों से मना कर दिया। उन्होंने कहा, " मैं किसी प्रकार की पूजा नहीं करती। ना ही किसी प्रकार के अंधविश्वास और पाखंडवाद को मानती हूं। मना करने पर गांव के कुछ मनबढ़ों ने मुझ पर सरस्वती की पूजा करने का दबाव बनाया। इस तरह जोर जबरदस्ती से विद्यालय के बच्चे डर गए। आरोपी मनबढ़ों ने उक्त दोनो शिक्षकों की शह पर विद्यालय में उत्पात मचाकर गणतंत्र दिवस समारोह में व्यवधान डाला।"
दलित अधिकार केंद्र के निदेशक एडवोकेट सतीश कुमार ने कहा कि सरकारी संस्था सेकुलर होती है। उसमें किसी धर्म विशेष की पूर्जा अर्चना नहीं की जा सकती। यह संविधान के विपरीत है। आर्टिकल 51 में कहा गया है कि आडंबर वाद व पाखंडवाद नहीं होगा। संविधान के मुताबिक यह विद्यालय सरकारी संस्था है। स्कूल में किसी धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती है। किसी भी धर्म की पूजा अर्चना नहीं की जा सकती है। यदि कोई ऐसा करता है तो यह संविधान के विरुद्ध है।
महापुरुषों व देवी के चित्र को लेकर उपजे विवाद को लेकर द मूकनायक ने राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय लकड़ाई के कार्यवाहक प्रधानाध्यापक लक्ष्मीनारायण मीना से बात की। प्रधानाध्यापक ने द मूकनायक को बताया कि 26 जनवरी का प्रोग्राम था। शुरुआती समय में हेमलता बैरवा कार्यक्रम का संचालन कर रही थी। मंच पर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ सावित्री बाई फुले व महात्मा गांधी का चित्र भी मंच पर लगा था।
प्रधानाध्यापक ने कहा कि यह सच है कि शिक्षक भूपेन्द्र सेन व हंसराज सेन ने कहा था कि तस्वीर तो सरस्वती की भी रखनी चाहिए। कार्यक्रम संचालन कर रही मेडम ने नहीं रखने दी। इसके बाद उक्त दोनो अध्यापक मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय शिवगंज चले गए। इन्होंने ही अधिकारियों को इस बात की सूचना दी थी।
उन्होंने कहा कि सरस्वती के चित्र को लेकर विवाद हुआ तो स्कूल में पढ़ने वाले अलग-अलग जातियों के पचास प्रतिशत बच्चे भी इन दो शिक्षकों के साथ कार्यक्रम छोड़ कर चले गए थे। इन बच्चों ने घर जाकर अभिभावकों घटना की जानकारी दी थी। इसके बाद अभिभावकों ने भी आकर पूछा कि सरस्वती का चित्र क्यों नहीं लगाया गया? इस दौरान महिला शिक्षक व अभिभावकों में तू-तू मैं-मैं हो गई। पुलिस व गांव का सरपंच भी आया। इन्होंने भी यही पूछा था कि सरस्वती की तस्वीर रखने में क्या आपत्ति है। बाद में सरस्वती की तस्वीर रख कर पुलिस ने कार्यक्रम संचालित करवाया था।
प्रधानाध्यापक लक्ष्मी नारायण मीना ने कहा कि यह सही बात है कि संविधान के मुताबिक किसी धर्म की पूजा नहीं कर सकते, लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता था? इन लोगों के बीच विवाद था। विभागीय कार्रवाई को लेकर मुझे कोई जानकारी नहीं है। सुना है कि इस घटना को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी ने एक समिति गठित कर दी है।
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