बांसवाडा - राज्य सरकार के निर्देश के बाद शिक्षा विभाग में 5 सालों में नियुक्ति पाने वाले कार्मिकों की जांच की जा रही है. जांच में स्कूलों के संस्था प्रधानों के सामने परेशानी खड़ी हो गई है कि विभाग ने परीक्षा देने वाला और नौकरी करने वाला लोकसेवक दोनों एक ही व्यक्ति होने की जांच के निर्देश दिए हैं। राजस्थान शिक्षक संघ सियाराम के प्रदेश प्रशासनिक अध्यक्ष सियाराम शर्मा ने बताया कि राजस्थान में भर्ती एजेंसी द्वारा जांच कार्य कर शिक्षा निदेशालय बीकानेर को भर्ती से सम्बन्धित सभी दस्तावेज भेजे जाते है। बीकानेर में निष्पक्ष जांच उपरान्त उन्हें जिला आवंटन किया जाता हैं इसके पश्चात जिला स्तर पर पुनः दस्तावेजों की जॉच कर उन्हे स्कूल आवंटित की जाती है ।
स्कूल में विभिन्न शपथ पत्र लिखा कर उन्हे कार्यग्रहण करवाया जाता हैं किन्तु वर्तमान जॉच में सस्था प्रधान से जांच सही होने का प्रमाण पत्र मांगा गया है जोकि विधि विरुद्ध है क्योंकि फर्जीवाड़े मामले की जांच में अभी तक के समस्त प्रकरणों में सस्था प्रधान की कोई भूमिका नहीं दिखाई दी। जबकि जिला स्तर पर दस्तावेजों की समस्त निरीक्षण टीम मय जिला शिक्षा अधिकारी ही फर्जीवाड़े मामले में दोषी है।
क्योंकि पांच साल की बांसवाड़ा जिले में हर भर्ती में जाँच टीम में एक ही प्रकार के अधिकारी नियुक्त किए गए हैं जिन्हे गिरोह कहना उचित होगा क्योंकि विगत 5 साल की बांसवाड़ा जिले की सूक्ष्मता से निरीक्षण किया जाए तो एक दो अधिकारी ही सूची में परिवर्तित होगे। बाकि सभी जांच टीम में शामिल अधिकारी समान ही होगे। शर्मा ने समस्त जांच टीम के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई जाकर सेवा समाप्ति की कार्यवाही की जानी चाहिए।
मुख्य महामंत्री नवीन कुमार शर्मा ने बताया कि विभाग ने परीक्षा देने वाला और नौकरी करने वाला लोकसेवक दोनों एक ही व्यक्ति होने की जांच के निर्देश दिए हैं अब संस्था प्रधानों के पास ऐसा कोई माध्यम या पैमाना नहीं है, जिसके जरिए वे यह पहचान कर सके कि परीक्षा देने व नौकरी करने वाला एक ही व्यक्ति है। यही नहीं डमी अभ्यर्थी बैठाकर पास करने और नकल के जरिए पास होने वालों की पहचान करना भी संस्था प्रधानों के आगे मुश्किल साबित हो रहा है।
इस कारण यह जांच केवल दस्तावेज जांच तक ही सिमट कर रह गई है। अब केवल नियुक्ति प्राप्त करने वाले कर्मचारियों के शैक्षणिक दस्तावेजों को देखा जा रहा है।
संगठन का कहना है कि इसमें आवेदन के समय प्रस्तुत आवेदन पत्र, फोटो, हस्ताक्षर और अन्य प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है। अगर किसी ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र, खेल प्रमाण पत्र फर्जी लगाया है तो उसकी जांच भी संस्था प्रधानों के बूते से बाहर है।
संस्था प्रधानों का कहना है कि नियुक्ति से पहले इनके दस्तावेजों की 3 से 4 बार जांच हो चुकी है। उच्च अधिकारियों द्वारा जॉच में कनिष्ठ वर्ग किस तरह आपत्ति जता सकता हैं। जबकि जॉच करने का प्रमाण पत्र सस्था प्रधान से मांगा गया है जोकि जॉच के नाम पर खानापूर्ति या लीपा पोती प्रतीत हो रहा हैं।
बांसवाडा जिले में एक मात्र 2008 में नूतन स्कूल में डीएलएड परीक्षा में फर्जी अभ्यार्थियों को पकड़ने वाले शिक्षक को विभाग ने हर सम्भव प्रताड़ित करने के प्रयास किए गए थे और केंद्राध्यक्ष मौजूद होते हुए सहायक केंद्राध्यक्ष की ओर से एफआईआर दर्ज क्यों करवाई गई इसकी उच्च स्तरीय जांच आवश्यक है. इसमें कही दूध की रखवाली बिल्ली को तो नहीं दी गई है।
इसी तरह जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक को एपीओ कर बलि का बकरा बनाया गया और जांच में लीपा पोती कर पुनः पदस्थापन किया गयाो जोकि न्यायोचित कृत्य नहीं है इससे सन्देह उत्पन्न हुआ है।
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