राजस्थानः पढ़ने की जिद थी तो तलाशे विकल्प, पूरा किया खुली आंखों देखा सपना

गरीब घर से आने वाली डॉ. शाहीन खानम, फरजाना बानो, कशिश जैन व उर्वशी जैन ने पढ़ाई पूरी की, नौकरी कर परिवार का आर्थिक सम्बल बनी।
राजस्थानः पढ़ने की जिद थी तो तलाशे विकल्प, पूरा किया खुली आंखों देखा सपना
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जयपुर। कहावत है, 'जहां चाह, वहां राह'। महिला दिवस पर द मूकनायक ऐसी ही बेटियों की कहानी लेकर आया है, जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना खुली आंखों देखा। इस सपने को पूरा करने के लिए आर्थिक चुनौतियों से जूझी और अपना मकाम बनाया। अब वे नौकरी कर अपने परिवार का आर्थिक सम्बल बन गई हैं।  

राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर निवासी डॉ. शाहीन खानम ऐसी ही बेटी है। वे दंत रोग विशेषज्ञ चिकित्सक है। एक निजी क्लिनिक पर रोगियों का उपचार कर परिवार को आर्थिक संबल दे रही है। डॉ. शाहीन कहती हैं कि "अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से प्राप्त ऋण की बदौलत पढ़ाई का सपना साकार हुआ है।"

डॉ. शाहीन खानम
डॉ. शाहीन खानम The Mooknayak

डॉ. शाहीन खानम ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा- "यह सच है कि बेटियों की शिक्षा को लेकर मुस्लिम समाज में जागरूकता की कमी रही है। यही वजह है कि मां-बाप समाज के डर से बेटियों को पढ़ाने से झिझकते रहे हैं। हालांकि अब शिक्षा के प्रति धारणा बदली है।"

उन्होंने कहा "मेरे पिता ने मुझे पढ़ाने के लिए अपना कारखाना तक बेच दिया। समाज के लोगों ने कहा कि बेटी को पढ़ा कर क्यों बर्बाद हो रहे हो। आखिर शादी के बाद पराए घर जाना है, लेकिन मेरे पिता ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया।

कारखाना बेचने के बाद भी पढ़ाई में अधिक पैसों की जरूरत पड़ी तो, सवाई माधोपुर जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में शिक्षा ऋण के लिए संपर्क किया। वे कहती हैं कि "मेरी अंतिम वर्ष की पढ़ाई के दौरान विभाग ने 2014-15 में मुझे 3 लाख रुपए का ऋण दिया। यहां से मिली ऋण राशि मानों मेरा जीवन बदलने के लिए काफी थी। इस राशि से फीस जमा कर मैंने पढ़ाई पूरी की और आज एक दंत रोग चिकित्सक के रूप में सेवा दे रही हूं। पिता अब एक कारखाने में मजदूरी करते हैं। बाप व बेटी मिलकर परिवार चला रहे हैं। दो छोटे भाई अभी पढ़ाई कर रहे हैं। परिवार भी अब जयपुर रहने लगा है।   

इसी तरह सवाई माधोपुर के सारसोप गांव की रहने वाली फरजाना बानो ने भी मेडिकल पढ़ाई के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से 2015-16 में दो लाख रुपए का ऋण लिया था। बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर वे अब अपने परिवार में पहली महिला सीएचओ (सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी) बन गई है। वर्तमान में वे गंगापुर सिटी जिले के एक सब सेंटर (उप स्वास्थ्य केन्द्र) पर संविदा पर कार्यरत है। अपने पति का हाथ बंटा रही है। पति आमीन खान भी दूसरे जिले में निजी अस्पताल में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर काम कर रहे हैं।

फरजाना ने द मूकनायक से कहा "मेरे पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन बेटियों को पढ़ाने से कभी पीछे नहीं हटे। 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बीएससी नर्सिंग के लिए आवेदन किया। कॉलेज भी अलॉट हो गया, लेकिन फीस के लिए पैसे नहीं थे। इस पर पिता ने जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से संपर्क कर शिक्षा पर लोन लेकर कॉलेज की फीस जमा कराई थी। वे कहती है कि "अल्पसंख्यक विभाग से उन्हें बहुत राहत मिली है। वे पढ़ाई के दौरान विभाग के छात्रावास में भी रही है। उन्होंने कहा- "स्थायी नौकरी के लिए प्रयास कर रही हूं"।

सवाई माधोपुर की रहने वाली कशिश जैन ने भी अल्पसंख्यक विभाग से सीए की पढ़ाई के लिए ऋण लिया था। अब वे एक निजी फाइनेंस कंपनी में कार्य कर रही है। पिता अशोक जैन ने द मूकनायक से कहा कि "अल्पसंख्यक विभाग से उन्हें आर्थिक संबल मिला है। वे खुद सवाई माधोपुर में पशु आहार की दुकान चलाते हैं, लेकिन बेटी को उच्च शिक्षा दिला पाते इतनी आमद नहीं थी। इस पर अल्पसंख्यक विभाग से 2015-16 में दो लाख रुपए का ऋण लेकर बेटी को पढ़ाया। वे अब आत्मनिर्भर बन गई है।"

सवाई माधोपुर जिले में ही रहने वाली उर्वशी जैन ने भी अल्पसंख्यक विभाग से ऋण लेकर सीए की पढ़ाई पूरी की है। पढ़ाई पूरी कर कोटा जैसे बड़े शहर में अपना खुद का बिजनेस शुरू किया है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की योजना का लाभ लेकर आत्मनिर्भर बनी है। पिता अरविंद जैन सवाई माधोपुर में इलेक्ट्रिक की दुकान चलाते हैं। अरविंद कहते हैं कि "आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण एजुकेशन के लिए लोन लेना पड़ा। शिक्षा महंगी है तो पैसे भी अधिक खर्च होते हैं। सरकार की इस योजना परिवार को संबल मिला है।" 

अल्पसंख्यक विभाग शिक्षा व व्यवसाय के लिए प्राथमिकता से ऋण मुहैया कराता है। राज्यभर में सैकड़ों परिवार इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं। राजस्थान अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास सहकारी निगम जयपुर के सहयोग से सरकार जरूरतमंद परिवारों को आर्थिक सहयोग कर संबल दे रही है। योजना के तहत 90 प्रतिशत ऋण राशि केन्द्र सरकार व 5 प्रतिशत राज्य सरकार देती है। जबकि ऋणी को पांच प्रतिशत राशि का डिमांड ड्राफ्ट एडवांस विभाग को जमा करना होता है।

कोई भी व्यक्ति व्यवसाय या उच्च शिक्षा के लिए ऋण लेने के लिए जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में आवेदन कर सकता है। आवेदन मिलने के बाद विभागीय अधिकारी जिला स्तर पर आवेदन की समीक्षा कर भौतिक सत्यापन करते हैं। इसके बाद विभाग 95 प्रतिशत राशि स्वीकृत करता है। यह राशि लाभार्थी को पांच वर्षों में किश्तों में अदा करना होता है। इसके लिए विभाग निर्वाचित जनप्रतिनिधि व एक सरकारी कर्मचारी की गारंटी मांगता है। ताकि वसूली में आसानी रहे। शिक्षा ऋध पर 3 प्रतिशत तथा व्यवसाय पर 6 प्रतिशत ब्याज देना होता है।  

सवाई माधोपुर जिले की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2013-24 में अल्पसंख्यक विभाग को 38.25 लाख रुपए का ऋण वितरण का टारगेट मिला था। इस पर विभाग ने 18  लोगों को 38.25 लाख का ऋण वितरण का टारगेट पूरा कर दिया। इस वित्तीय वर्ष में 18 लोग लाभान्वित हुए। व्यवसाय में 14  लोगों को 30.60 लाख तथा शिक्षा के लिए दो लोगों को 13.20 लाख का ऋण दिया गया।

सवाईमाधोपुर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी मनोज मीना ने द मूकनायक से कहा विभाग उच्च शिक्षा व व्यवसाय के लिए ऋण मुहैया कराता है। बेटियों को भी उच्च शिक्षा के लिए ऋण दिया है। व्यवसाय के क्षेत्र में विभाग ने व्यवसाय व ऋण राशि निर्धारित कर रखी है। छोटे व्यवसाय को प्राथमिकता दी जाती है। इससे टारगेट पूरा कर अधिक से अधिक लोगों को लाभान्वित किया जा सकता है।

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