नई दिल्ली। 'शिक्षा उस शेरनी का दूध है जो पिएगा वही दहाड़ेगा'। यह कथन डॉ. भीमराव आंबेडकर का है। इसी कथन को पूरा करने के लिए दिल्ली के मयूर विहार में एक मध्यवर्गीय परिवार के नौजवान नरेश पाल ने फ्लाईओवर के नीचे एक स्कूल खोला, ताकि बच्चे पढ़-लिख कर आगे बढ़े। उन्हें अपने परिवारवालों की तरह दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ी।
वनफूल पाठशाला नाम के इस स्कूल में गरीब और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को शिक्षा दी जाती है। यह स्कूल दिल्ली के ही बारापुला फ्लाईओवर पुल के नीचे चलाया जा रहा था। लेकिन अब इस स्कूल को पीडब्ल्यूडी के बुल्डोजर द्वारा तोड़ दिया गया है। इसके टूटने के साथ ही लगभग 200 बच्चों के शिक्षा का सपना भी टूट गया है।
द मूकनायक ने स्कूल संचालक नरेश पाल से इस बारे में बात की है। उन्होंने बताया कि वनफूल पाठशाला को उन्होंने गरीब बच्चों को लिए शुरू किया था, जिसमें लगभग 200 बच्चें पढ़ते थे।
पाठशाला को बांस की लकड़ियों द्वारा बनाया गया है ताकि मौसम की मार से भी बचा जा सके। "हमने यह स्कूल ऐसे ही बांस की लकड़ियों, टेन-शेड और नट-बोल्ट द्वारा बनाया था। ताकि जब कभी भी हमें खाली करने को कहा जाए तो इसे आसानी से खाली किया जा सकता है", उन्होंने कहा। वह आगे बताते हैं, "हमें भी यह पता था कि यह सरकारी जमीन है और कभी न कभी खाली करनी ही पड़ेगी। इसलिए इसके लिए हमने अधिकारियों से भी बात करके रखी थी कि जब भी हमें इसे खाली करने को कहा जाएगा, हम इसे खोल लेंगे, लेकिन तोड़ने से पहले हमें कोई भी लिखित जानकारी नहीं दी गई।"
वह बताते हैं कि, "10 जनवरी की शाम को कुछ पुलिस वाले स्कूल में आते हैं और मेरी बहन जोकि उस वक्त वहां पढ़ा रही थीं। उसे मौखिक तौर पर बोलकर गए कि इसे कल खोल देना नहीं तो इस पर बुल्डोजर चल जाएगा। बहन ने इस बात की जानकारी मुझे फोन पर दी थी। उस वक्त मैं वह मौजूद नहीं था। इस बात के बाद मैं तुरंत वापस आकर पुलिस वालों के पास गया और उनसे इस बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया कि स्कूल को कुछ नही होगा। हमलोग भी पुलिस वालों के आश्वसन के साथ रह गए। दूसरी बात यह भी थी अगर खाली करना होता तो रात में यह संभव नहीं था। रात में इतनी ठंड थी और सुबह भी कोहरा इतना ज्यादा होता है कि 12 बजे से पहले यह काम हो नहीं पाया। हमें खोलने का समय ही नहीं दिया गया और पाठशाला पर चारों तरफ से चार बुल्डोजर लगाकर तोड़ दिया।"
वह बताते हैं कि, "इस पाठशाला की शुरुआत 1993 में हुई। लेकिन तब से यह पेड़ के नीचे चलाया जाता था। लेकिन कोरोना के दौरान जब शिक्षा को ऑनलाइन कर दिया गया तो हमने गरीब बच्चों को कंस्ट्रक्शन साइट पर फ्लाईओवर के नीचे शिक्षा देनी शुरू की। इसके लिए हमने साइड इंचार्ज से अनुमति भी ली थी। साथ ही आश्वासन दिया था, जब भी इसकी जरूरत होगी। यह खाली कर दिया जाएगा, लेकिन हमें इसके लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया। यहां तक कि जब हमने दो घंटा का समय खाली करने के लिए मांगा तो वह भी नहीं दिया। हमारी आंखों के सामने पूरा स्कूल तोड़ दिया।"
पाठशाला तोड़ जाने पर नरेश का कहना था कि, "हम यह नहीं कह रहे थे कि खाली नहीं करेंगे। इस मामले पर हमने पहले ही अधिकारियों को आश्वासन दिया था कि वह जब भी कहेंगे, तब जगह को खाली कर दी जाएगी और हमलोग कहीं प्राइवेट जगह लेकर पाठशाला को चलाएंगे। ताकि बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो।"
"आखिर में वहीं हुआ। जिसका डर था। सिर्फ पाठशाला ही नहीं तोड़ी गई है। बल्कि ऐसे समान को भी नुकसान हुआ है, जिसे हमें कई संस्थानों और एनजीओ ने बच्चों के लिए दिया था।" नरेश एक एनजीओ का नाम बताते हुए कहते हैं कि, "एनजीओ ने लगभग 40 से 50 हजार के टॉयलेट बनाकर दिए थे। जो पूरे तरह से टूट गए हैं और भी कई सामान हैं जो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। जिनको फिर से लेने के लिए मुझे मेहनत करनी पड़ेगी। क्योंकि अब ऐसा कोई भी सामान नहीं बचा जिसका हम दोबारा इस्तेमाल कर सकें।"
नरेश पाल सोशल वर्क के एक पीएचडी स्कॉलर हैं। दिल्ली के मयूर विहार में ही रहकर बीए, एमए किया था। वनफूल पाठशाला भी मयूर विहार के फेज-1 में खोला था। जिसमें कई टीचर्स भी थीं। यह पूरी पाठशाला लोगों की मदद से चली रही थी। कोविड के दौरान पाठशाला राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा रही। जिसके कारण लोगों का ध्यान इस पर गया और लोगों ने इसके लिए मदद का हाथ बढ़ाया, और गरीब बच्चों की शिक्षा प्रभावित नहीं हुई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वनफूल पाठशाला तोड़े जाने पर पीडब्लूडी अधिकारी विनोद कुमार सिंह का कहना है कि लोक निर्माण विभाग (PWD) के आदेश पर स्कूल तोड़ा गया है। पीडब्ल्यूडी को वह जगह खाली करवानी थी। उसका आदेश हमारे पास था, हमने वह खाली करवा दी है। दिसंबर के महीने में पीडब्ल्यूडी की एक मीटिंग हुई थी। जिसमें इस पर चर्चा हुई थी। फिर 10 जनवरी को अधिकारियों की एक मीटिंग हुई थी। जिसमें हमें जगह खाली करवाने की जानकारी दी गई और हमने उसे खाली करवा दिया। नोटिस पर आधिकारी का कहना है कि सरकारी जमीन खाली करवाने के लिए कभी कोई नोटिस नहीं दिया जाता है।
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