फॉलोअप: बीएचयू में मनुस्मृति के शोध पर विरोध, छात्रों का हंगामा

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
Published on

लखनऊ। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मनुस्मृति पर शोध को लेकर छात्रों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। छात्रों का कहना है देश संविधान से चलेगा न की मनुस्मृति से। संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के धर्मशास्त्र-मीमांसा विभाग ने 21 फरवरी को 'मनुस्मृति की भारतीय समाज पर प्रयोज्यता' नाम के प्रोजेक्ट के लिए फेलोशिप का विज्ञापन दिया था। इसके बाद 27 फरवरी तक इस प्रोजेक्ट के फेलोशिप के लिए आवेदन की मियाद भी पूरी हो गई है।

जानिए क्या है पूरा मामला?

यूपी में बनारस स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र और मीमांसा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शंकर कुमार मिश्रा ने बीती 27 फरवरी 2023 को मनुस्मृति पर रिसर्च के लिए एक विज्ञापन जारी किया था। यह विज्ञापन "भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता" पर शोध के लिए किया गया है।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
एक बार फिर चर्चाओं में मनु: प्रतिमा हटाने की याचिका को सुनने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, बीएचयू में मनुस्मृति पर शोध की कवायद

इस विज्ञापन के संदर्भ में द मूकनायक से प्रोफेसर शंकर कुमार मिश्रा कहते हैं, "भारत में अल्प ज्ञान की समस्या अधिक है। मनुस्मृति को सब अपने-अपने अलग सन्दर्भ में लेते हैं। स्मृति का मतलब होता है धर्मशास्त्र और श्रुति का अर्थ होता है वेद। इनमें हिन्दू धर्म की व्याख्या विस्तार से की गई है। एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। हरि शब्द का अर्थ भगवान विष्णु, बंदर, मेंढक या हाथी हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसकी व्याख्या कैसे करते हैं। इन पाठों के साथ भी ऐसा ही है। कोई भी धार्मिक कार्य आपको झूठ बोलने या बुरा व्यवहार करने के लिए नहीं कहता है। वे सभी कहते हैं कि कमजोरों की मदद करो, दान करो, अपने परिवार का ख्याल रखो।"

प्रोफेसर बताते हैं "मैं इस रिसर्च को विषय वस्तु के रूप में चार-पांच भाग में बाटूंगा और उसकी विस्तार से व्याख्या करूंगा। जिससे लोगों को मनुस्मृति के सही अर्थ का ज्ञान हो सके।"

इस प्रोजेक्ट को 31 मार्च 2024 तक पूरा करना है। मामले में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र-मीमांसा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शंकर कुमार मिश्रा ने बताया कि यह पहला मौका नहीं है जब मनुस्मृति पढ़ाई जा रही है। जब से उनका विभाग बना है, तभी से मनुस्मृति समेत कई ग्रंथ कोर्स में हैं और पढ़ाए जाते रहे हैं।

भ्रमित लोगों को उबारने के लिए ऐसे शोध की जरूरत

प्रोफेसर ने बताया कि उनके यहां सभी वर्ग के छात्र आते हैं और डिग्री लेते हैं। छात्र पीएचडी (PHD) भी करते हैं। स्मृतियों में मानवता के लिए उपदेश और सद-आचरण की शिक्षा से भ्रमित लोगों को उबारने के लिए ऐसे शोध की जरूरत है। धर्मशास्त्र में कई विचार और विषयों को सरल शब्दों और संक्षेप में जनमानस के सामने रखा जाए, ताकि मानव कल्याण की बताई गई बातें से आम जनता परिचित हो। इसी उद्देश्य से कोरोना काल में ही प्रपोजल को आईओई (IOE) सेल में भेजा गया था। इस प्रोजेक्ट में मानव की बात करना चाहता हूं। बाकी वर्ण-व्यवस्था सेकेंडरी है।

पिछले दो से तीन दशक में मानवता का समाज में पतन हुआ है। मनुस्मृति में ऐसा कोई भी प्रसंग नहीं मिला है, जो असंगत और अप्रासंगिक हो। फिर भी अगर ऐसा लगता है कि मनुस्मृति की जो चीजें आज के मुताबिक अप्रासंगिक मिलती है, तो मैं अपने प्रोजेक्ट में सुधार के लिए निवेदन करूंगा।

देश मनुस्मृति से नहीं, बल्कि संविधान से चलता है- छात्र

काशी हिंदू विवि के छात्रों का कहना है देश मनुस्मृति से नहीं, बल्कि संविधान से चलता है। इसमें सभी को बराबरी का हक मिला है, जबकि मनुस्मृति वर्ण और ऊंच-नीच की बात करती है। संविधान सभी को शिक्षा और समानता का अधिकार देता है, जबकि मनुस्मृति नहीं देती है। इसलिए संविधान के मुताबिक इस तरह का रिसर्च प्रोजेक्ट नहीं चलना चाहिए।

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com