नई दिल्ली। बसपा प्रमुख मायावती ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में एलएलबी के छात्रों को मनुस्मृति पढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर हो रहे विरोध को स्वाभाविक बताते हुए कहा कि यह प्रयास कतई उचित नहीं हैं।
बसपा नेता ने एक्स पर कहा कि भारतीय संविधान के मान-सम्मान व मयार्दा तथा इसके समतामूलक एवं कल्याणकारी उद्देश्यों के विरुद्ध जाकर दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि विभाग में मनुस्मृति पढ़ाए जाने का प्रस्ताव रखा गया। इसका तीव्र विरोध स्वाभाविक है तथा इस प्रस्ताव को रद्द किए जाने का फैसला स्वागत योग्य कदम है।
विवि में मनुस्मृति एलएलबी में पढ़ाया जाएगा या नहीं? ये चर्चा का विषय था। ला फैकल्टी का अपने प्रथम व तीसरे वर्ष के छात्रों को पढ़ाने की योजना थी। फिलहाल इसे रद्द कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि डा. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने खासकर उपेक्षितों व महिलाओं के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान के साथ ही मानवतावाद एवं धर्मनिरपेक्षता को मूल में रखकर सर्व स्वीकार्य भारतीय संविधान की संरचना की, जो मनुस्मृति से कतई मेल नहीं खाता है। अतः एलएलबी के छात्रों को मनुस्मृति पढ़ाने संबंधी कोई भी प्रयास कतई उचित नहीं है। डीयू के विधि संकाय ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों को मनुस्मृति पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में संशोधन करने के वास्ते डीयू की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था से मंजूरी मांगी है। शिक्षकों के एक वर्ग ने इसकी आलोचना की है।
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कानून के विद्यार्थियों को मनुस्मृति पढ़ाने के प्रस्ताव पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को कहा कि पाठ्यक्रम में किसी भी धर्म ग्रंथ के किसी भी विवादास्पद हिस्से को शामिल करने का कोई सवाल ही नहीं है। प्रधान ने कहा कि डीयू के कुलपति योगेश सिंह ने गुरुवार को ही विधि विद्यार्थियों को मनुस्मृति पढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि सरकार संविधान की सच्ची भावना को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधान ने हैदराबाद में संवाददाताओं से कहा कि कल हमें कुछ जानकारी मिली थी कि मनुस्मृति विधि संकाय पाठ्यक्रम (डीयू में) का हिस्सा होगी। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से बात की। उन्होंने मुझे बताया कि विधि संकाय के कुछ सदस्यों ने न्यायशास्त्र अध्याय में कुछ बदलावों का प्रस्ताव दिया है। साथ ही उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि विद्वत परिषद (एसी) में ऐसे किसी प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया गया है। कल ही कुलपति ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। हम सभी अपने संविधान और भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्ध हैं। सरकार संविधान की सच्ची भावना को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी भी धर्म ग्रंथ के किसी भी विवादास्पद हिस्से को शामिल करने का कोई सवाल ही नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के एलएलबी विद्यार्थियों को मनुस्मृति पढ़ाने के प्रस्ताव पर शुक्रवार को इसकी शैक्षणिक परिषद की बैठक में चर्चा होनी थी, इस कदम की शिक्षकों के एक वर्ग ने आलोचना की। विधि संकाय ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों को मनुस्मृति पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में संशोधन करने के लिए डीयू की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था से मंजूरी मांगी थी। न्यायशास्त्र पेपर के पाठ्यक्रम में बदलाव एलएलबी के सेमेस्टर एक और छह से संबंधित थे।
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