मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के पांच छात्रों को प्रबंधन ने किया बर्खास्त, जानें छात्रों की क्या थीं मांगे!

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
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नई दिल्ली। देश में यूनिवर्सिटीज से संबधित खबरें लगातार सामने आती रहती हैं। जहां छात्र अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन करते नजर आए हैं। कुछ दिन पहले जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने हॉस्टल की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। अब ताजा मामला साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (South Asian University) का है। जहां एक महीने से छात्र अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। साथ ही पिछले आठ दिनों से छात्र और शोधार्थी भूख हड़ताल पर भी हैं। धरना प्रदर्शन करने वाले छात्रों में मुख्य रुप से सिर्फ भारतीय छात्र ही शामिल हैं।

लगभग एक महीने से अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने पहले कई दिनों तक यूनिवर्सिटी प्रशासन को अपनी मांगों से अवगत कराने की कोशिश की, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकलते देख छात्र भूख हड़ताल करने लगे।

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी की स्थापना दक्षिण क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नेतृत्व में वर्ष 2010 में की गई थी। ताकि बाकी के देशों के साथ संस्कृतिक विचारों का आदान-प्रदान किया जा सके। यह यूनिवर्सिटी विदेश मंत्रालय के अंतर्गत आती है। जिसके कारण यूजीसी के कई नियम विदेशी छात्रों के लिए लागू नहीं होते हैं। यही वजह है कि विदेशों से पढ़ने आने वाले बच्चों की फेलोशिप भारतीय छात्रों से अलग होती हैं।

विदेशी छात्रों को बराबर फेलोशिप दी जाए

छात्रों द्वारा की जा रही मांग में सबसे बड़ी मांग एमए के स्टूडेंट्स के स्टाइपेंड (वजीफा) में बढ़ोतरी और विदेशी शोधार्थियों के फेलोशिप (छात्रवृत्ति) भी बराबर हो। इस यूनिवर्सिटी में लगभग 450 छात्र हैं। जिसमें आधे भारतीय और आधे सार्क देशों से हैं। इसमें लगभग 120 पीएचडी शोधार्थी हैं। जिसमें आधे भारत से और आधे सार्क देशों से हैं।

उमेश एक भारतीय पीएचडी स्कॉलर हैं। द मूकनायक से बात करते हुए उन्होंने सार्क देशों की फेलोशिप अमांउट (छात्रवृत्ति का पैसा) पर बात करते हुए कहा कि भारतीय छात्र अगर जेआरएफ पास कर जाते हैं, तो उन्हें यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार फेलोशिप दी जाती है। लेकिन विदेशी छात्रों के लिए यह सुविधा नहीं हैं।

वह बताते हैं कि, इससे पहले भी फेलोशिप को बढ़ाने के लिए प्रोटेस्ट किया गया था। साल 2015 में प्रोटेस्ट करने के बाद फेलोशिप को 10 हजार से बढ़ाकर 25 हजार किया गया। लेकिन साल 2018 में यूजीसी द्वारा जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) और एसआरएफ (सीनियर रिसर्च फेलोशिप) के फेलोशिप नहीं बढ़ाए गए। इस बार भी शोधार्थियों ने सार्क देश के शोधार्थियों की फेलोशिप बढ़ाने की मांग और प्रोटेस्ट किया है। जिसके बाद प्रशासन ने सिर्फ बढ़ाने का आश्वान दिया लेकिन आज चार साल बाद उसमें किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की गई।

उमेश कहते है कि, "हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि भारतीय और विदेशी स्टूडेंट्स को बराबर फेलोशिप मिले क्योंकि रिसर्च करने में समय, मेहनत और पैसा उतना ही लगता हैं। फिर फेलोशिप बराबर क्यों नहीं।"

धरना प्रदर्शन करते छात्र [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
धरना प्रदर्शन करते छात्र [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए भी मुश्किल

छात्रों की दूसरी मांग एमए के छात्रों के स्टाइपेंड को लेकर हैं। केशव बिहार के रहने वाले हैं और अमोल महाराष्ट। दोनों ही एमए के छात्र हैं और प्रोटेस्ट में बढ़ चढ़कर अपनी बात को रख रहे हैं। उनका कहना हैं कि यहां सिर्फ चार हजार स्टाइपेंड के तौर पर मिलता है। जिसमें से 3100 मेस का बिल भरना पड़ता है। बाकी बचे 900 से एक छात्र कैसे पूरे महीने अपना खर्च चला पाएगा।

केशव बताते हैं, "इसमें सबसे ज्यादा परेशानी विदेशी और भारत में पिछड़े वर्ग से आऩे वाले छात्रों को होती हैं। सार्क देशों से भी आने वाले कई छात्र ऐसे होते हैं जो आर्थिक रुप से कमजोर होते हैं। ऐसे में इतने कम से जीविका चलना बहुत कठिन  है।"

वहीं अमोल कहते हैं, "स्थिति ऐसी हैं कि यूनिवर्सिटी ऐसी जगह हैं, जहां से कहीं बाहर जाने के लिए सोचना पड़ता हैं। पॉश एरिया होने के कारण यहां सारी चीजें महंगी हैं। बाल कटाने के लिए भी तीन चार किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता है। क्योंकि यहां आसपास सैलून बहुत महंगे हैं और बाहर जाने का ऑटो वाले भाड़ा बहुत लेते हैं। ऐसे में अब जरुरी है कि एमए के छात्रों का स्टाइपेंड बढ़ाया जाए। जिससे उन्हें आर्थिक रुप से ज्यादा परेशानी न हो।"

आपको बता दें कि, साऊथ एमए के छात्रों को चार तरह की फेलोशिप दी जाती है। पहला प्रेसिडेंट स्कॉलरशिप है, जिसे एक भारतीय और एक सार्क देश के छात्र को एन्ट्रेंस एग्जाम में सबसे अधिक नंबर लाने पर दी जाती है। दूसरा, सिल्वर जुबली स्कॉलरशिप है, जिसे विकासशील देशों के छात्रों को दी जाती है। तीसरा, मेरिट स्कॉलरशिप है, जिसे भारतीय और विदेशी दोनों छात्रों को दी जाती है। यह उन छात्रों को दी जाती है जो प्रेसिंडेंट फेलोशिप के बाद मेरिट में आते हैं, और चौथा फ्रीशिप फेलोशिप है, जिसे सभी आर्थिक रुप से कमजोर छात्रों को दी जाती है।

मीडिया के सामने अपनी मांगों और समस्याओं पर बात करते छात्र और शोधार्थी [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
मीडिया के सामने अपनी मांगों और समस्याओं पर बात करते छात्र और शोधार्थी [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

भूख हड़ताल के कारण हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा

अक्टूबर महीने से लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने जब विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किसी तरह की सुनवाई होती नहीं देखी तो उन्होंने भूख हड़ताल करना शुरू कर दिया है। जिसमें एक शोधार्थी की स्थिति ऐसी हो गई कि डॉक्टर ने उसे हॉर्ट अटैक आने की चेतावनी दे दी। लेकिन इस पर भी यूनिवर्सिटी प्रशासन ने किसी तरह का एक्शन नहीं लिया। उल्टा पांच छात्रों को बिना किसी नोटिस के रात आठ बजे यूनिवर्सिटी से बर्खास्त कर दिया गया।

अब बाकी मांगों की तरह छात्रों की यह भी एक मांग है कि सभी बर्खास्त छात्रों को वापस बुलाया जाया। लगभग एक महीने से प्रोटेस्ट कर रहे छात्रों का कहना है कि कार्यवाहक वाइस-चांसलर, प्रेसिंडेंट और प्रोक्टर ने छात्रों से मुलाकात की और कहा कि उनकी मांग को नहीं माना जाएगा। सिर्फ एमए के छात्रों के स्टाइपेंड को बढ़ाया जा सकता है।

पेड एक्सटेंशन

कोरोना का सबसे अधिक प्रभाव शिक्षा पर ही पड़ हैं। कई शोधार्थी इस दौरान अपने शोध का काम नहीं कर पाए थे। जिसे लेकर अब एक्सटेंशन की मांग की जा रही  हैं। साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में भी शोधार्थियों की मांग है किं उन्हें पेड एक्सटेंशन दिया जाए।

सपना गोयल बताती हैं कि साल 2019-20 और 2020-21 के सत्र वाले शोधार्थियों के लिए एक्सटेंशन की मांग की जा रही है। ताकि वह अपना काम पूरा कर सकें। वह बताती है कि, "कोरोना के दौरान कई छात्र अपने देश वापस चले गए थे, और कई कोरोना होने के कारण फील्ड में काम नहीं कर पाए हैं। ऐसे में शोधार्थियों को अपना काम करने में अतिरिक्त समय लगेगा। जिसके लिए मांग की जा रही है कि उन्हें पेड एक्सटेंशन दिया जाए। लेकिन प्रशासन का कहना है कि उनके पास इतना बजट नहीं हैं।"

बजट की ही बात पर अभिषेक द्विवेदी नाम के शोधार्थी का कहना है कि, "यूनिवर्सिटी में बाकी सभी काम हो रहे हैं। नए स्टॉफ को रखा जा रहा है। उनकी सैलरी में भी बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन जैसे ही छात्रों की स्कॉलरशिप बढ़ाने की बात आती है। वैसे ही प्रशासन यह कह कर बात टाल देता है कि अभी जरनल बॉडी मीटिंग नहीं हुई है।" वह बताते हैं कि यह मीटिंग साल 2017 के बाद से हुई ही नहीं। जबकि बाकी सारे काम हो रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर कार्यवाहक वाइस चांइसलर को फोन करने पर उन्होंने फोन का जवाब नहीं दिया है।

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