मध्य प्रदेश: दलित महिला से लिव इन रिलेशनशिप में जन्मी बेटी को एडमिशन नहीं दे रहे स्कूल!

सुनीता ने अपनी बेटी के एडमिशन और उसके अधिकारों के लिए बाल आयोग, कलेक्टर, कमिश्नर महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों सहित सम्बंधित विभागों को शिकायत की है।
जबलपुर में स्थित प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ
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भोपाल। दलित एकल माँ सुनीता आर्या ने हर हाल में अपनी बेटी को इंसाफ दिलाना चाहती है। बेटी की शिक्षा की चिंताओं के बीच वह द मूकनायक को अपनी पीड़ादायक कहानी बताती है, "मैं एक दलित महिला हूँ, साल 2010 में मेरी मुलाकात मनीष जैन से हुई थी। हम एक दूसरे को पसंद करते थे इसलिए दोनों ने साथ रहने का फैसला किया। भोपाल में लिव इन के दौरान मैं प्रग्नेंट हुई, पर मनीष यह कहते हुए छोड़ गया कि मेरी कोख में पल रहा बच्चा उसका नहीं हैं। मैंने जनवरी 2015 में बेटी को जन्म दिया. मनीष जैन ने मुझ पर केस किया कि यह बेटी उसकी नहीं है, मुझपर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया। मैंने अपनी बच्ची को पहचान दिलाने के लिए कोर्ट में संघर्ष किया, डीएनए के आधार पर कोर्ट ने माना कि यह बेटी जैविक रूप से मेरी और मनीष की ही है।"

"लेकिन अब इतने सालों बाद मेरी बेटी को जबलपुर के जैन समाज द्वारा संचालित विद्यालय में एडमिशन देने से मना किया जा रहा है. एक अन्य इंग्लिश मीडियम स्कूल में सीट्स फुल होने की बात कहकर एडमिशन के लिए मना कर दिया गया। मेरी बेटी को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है, और शासन कार्रवाई करने को तैयार नहीं हैं। मुझे समाज में हर तरह की बातें सुनने को मिलती हैं, जैसे मैंने कोई अपराध किया हो। मैं अपनी बेटी के अधिकारों के लिए दुनिया से लड़ने को तैयार हूं, चाहे कुछ भी हो उसे सम्मान और अधिकारों के साथ अपना जीवन जीने का अधिकार है," सुनीता आर्या ने बताया.

बेटी के जन्म के बाद मनीष ने भोपाल जिला न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि सुनीता उन्हें ब्लैकमेल कर रही हैं, जबकि यह बच्चा उनका नहीं है। सुनीता ने कोर्ट से डीएनए टेस्ट की मांग की और रिपोर्ट आने पर यह सामने आया कि बेटी सुनीता और मनीष की ही है। डीएनए टेस्ट के बाद मामला मीडिया तक पहुँचा। जिसके बाद सुनीता की मुश्किलें बढ़ती चली गईं। यह जो सुनीता के साथ घट रहा था, यह मुश्किलें कानून की नहीं थी, बल्कि हमारे आसपास रह रहे समाज की थी।

भोपाल में रह रही सुनीता की कठनाइयां बढ़ती जा रही थी, अब उन्हें कोई किराए पर मकान तक देने को तैयार नहीं था. सुनीता को समाज ने अपने कानून के तहत बहिष्कृत कर दिया. सुनीता एक एकल माँ थी, इन चुनौतियों का सामना करना उनके लिए पहाड़ से टकराने जैसा था।

समाज के ताने, और बहिष्कृत होने के बाद उन्होंने भोपाल छोड़ दिया. वह रायसेन जिले के गैरतगंज में जाकर रहने लगी। लेकिन यहां भी समाज के इस अनैतिक व्यवहार ने पीछा नहीं छोड़ा। सुनीता ने बताया कि वह अपने बच्चों की परवरिश के लिए किसी के आश्रित होना नहीं चाहतीं थी, इसलिए उन्होंने लिव इन पार्टनर मनीष से भरण-पोषण की मांग नहीं की। वह मजदूरी करके अपने दोनों बच्चों को पाल रही थी। बेटी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी मगर समाज का नजरिया उनके प्रति नहीं बदल रहा था।

सुनीता आर्य ने बताया कि उनकी बेटी अब 9 वर्ष की हो चुकी है, उन्हें बेटी के भविष्य और उसके अधिकारों की चिंता है। वह चाहतीं है कि उनकी बेटी सम्मान के साथ जीवन जी सके। बेटी को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए उन्होंने पिछली साल गैरतगंज गुरुकुल इंग्लिश मीडियम स्कूल में एडमिशन के लिए आवेदन किया लेकिन उसे सीट्स फुल होने की बात कहकर एडमिशन नहीं दिया गया। इसके बाद उन्होंने जबलपुर के प्रतिभा स्थली ज्ञानोदय विद्यालय में भी आवेदन किया लेकिन उन्होंने भी बेटी को एडमिशन देने से इनकार कर दिया। सुनीता आर्य का आरोप है कि स्कूल जानबूझकर उनकी बेटी को एडमिशन नहीं दे रहा है।

सुनीता अपनी बेटी के एडमिशन के लिए 1 जुलाई 2023 को गैरतगंज स्थित गुरुकुल एक्सीलेंट इंग्लिश मीडियम स्कूल गई थीं। उन्हें बताया गया कि बच्चे को कक्षा 1 में प्रवेश मिल जाएगा। उन्हें स्कूल की फीस सम्बंधित डॉक्यूमेंट के साथ जमा किए जाने को कहा गया था। उन दस्तावेज़ों की सूची में बच्चे के पिता के बारे में विवरण शामिल थे। उन्होंने स्कूल को बताया कि वह एक अकेली माँ हैं, और वह अनुसूचित जाति से आती हैं। सुनीता ने कहा, “जैसे ही मैंने बेटी के पिता और अपनी जाति का खुलासा किया, उनका रवैया बदल गया। मुझे अगले दिन आने के लिए कहा गया,'' अगले दिन जब सुनीता स्कूल गईं तो उन्हें बताया गया कि स्कूल की सभी सीटें भरी हुई हैं। एडमिशन नहीं मिल पायेगा. जबकि एक दिन पहले तक उनकी बेटी को एडमिशन दिया जा रहा था।

सुनीता ने कहा, “मैं आश्चर्यचकित रह गई और कहा कि मैं स्कूल के निदेशक अनिल माहेश्वरी से मिलना चाहती हूं। जब मैं उनसे मिली तो उन्होंने मुझसे कहा कि हम 'ऐसे माता-पिता' के बच्चों को अपने स्कूल में दाखिला नहीं दे सकते.''

सुनीता का कहना है कि उनके पास बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड और समग्र आईडी समेत सभी संबंधित दस्तावेज हैं। “वे मेरे बच्चे को दाखिला देने से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि मैं एक अकेली माँ हूं और दलित हूं। यह अन्यायपूर्ण, अवैध और असंवैधानिक है।" लेकिन स्कूल ने सुनीता की बेटी को एडमिशन नहीं दिया।

शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं

सुनीता ने अपनी बेटी के एडमिशन और उसके अधिकारों के लिए बाल आयोग, कलेक्टर, कमिश्नर महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों सहित सम्बंधित विभागों को शिकायत की है। सुनीता का कहना है कि वह बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की पूर्व में सदस्य रहीं जिसका कार्यकाल बीते साल ही खत्म हुआ है। सुनीता ने कहा, "मैं अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए भटक रहीं हूँ, अधिकारी बात सुनने के बाद कोई एक्शन नहीं ले रहे। जबकि यह साफ दिखाई दे रहा है कि मेरी बेटी के साथ भेदभाव हो रहा है। उसे उसके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।"

सुनीता के शिकायती पत्र में क्या?

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग, कलेक्टर एवं अन्य संबंधित अधिकारियों से शिकायती पत्र में सुनीता ने जातिगत भेदभाव और अधिकारों से वंचित रखने का आरोप लगाया है। सुनीता आर्या ने शिकायती पत्र में लिखा, "मैं मैरी बेटी की एकल माता हूँ। चूँकि मेरी इस पुत्री को इसके जैविक पिता ने नहीं अपनाया और मैंने इसका पालन पोषण किया, इसी आधार पर मेरी पुत्री को उसके शिक्षा के अधिकारों से वंचित किया जाता है। तो मुझे, दलित होने के कारण तथा मेरी पुत्री को जैन धर्म के व्यक्ति से उत्पन्न होने पर मुझे चरित्रहीन निरूपित करते हुए टिप्पणी की जाती है और कहा जाता है 'आप जैसी महिलाओं के बच्चों के लिए हमारे स्कूल में जगह नहीं है.'

ऐसी टीका टिप्पणी और दुर्व्यवहार से मेरी पुत्री की मन: स्थिति पर बेहद गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसकी वजह से मेरी 9 वर्षीय पुत्री ना तो ठीक से पढ़ पा रही है और ना ही समाज में ठीक से घुल मिल पा रही है। इन्हीं सब वजहों से मेरी बेटी निर्बाध शिक्षा तथा सम्मानपूर्वक जीवन तथा बाल अधिकार के मूलभूत हक़ से वंचित हो रही है। मेरी बेटी के साथ भेदभाव किया जा रहा है। दो घटनाएं उल्लेखित कर रहीं हूँ।"

"पहली घटना में, गैरतगंज स्थित एक्सलेंस गुरुकुल विद्यालय में वर्ष 2022 में बालिका के प्रवेश हेतु मैंने आवेदन किया था, लेकिन उन्हें पता चला की मैं एकल माँ तथा दलित महिला हूँ तथा मेरी पुत्री के पिता जैन हैं, तब विद्यालय ने बड़ी ही तल्ख़ी एवं अभद्रता से मुझसे कहा कि आप जैसी महिलाओं के बच्चों के लिए इस विद्यालय में कोई जगह नहीं है। यहाँ बड़े घरों के संस्कारित तथा कुलीन बच्चे पढ़ते हैं। उक्त प्रकरण के संबंध में मैंने जिला शिक्षा अधिकारी रायसेन, कलेक्टर रायसेन सहित पुलिस अधीक्षक रायसेन में शिकायत की थी लेकिन अब तक संतोषजनक कार्यवाही नहीं हुई।"

दूसरी घटना का उल्लेख करते हुए सुनीता आर्या लिखती हैं, "चूँकि बालिका रसरूप से जैन है इसलिए जैन बालिकाओं के लिए विशिष्ट विद्यालय जबलपुर स्थित प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में अपनी बच्ची के प्रवेश हेतु जनवरी 2024 में आवेदन किया था लेकिन वहाँ भी इस बालिका का प्रवेश ख़ारिज कर दिया गया. जबकि, बालिका के पिता जैन हैं। मेरी पुत्री के जैविक पिता मनीष जैन हैं, और यह तथ्य डीएनए रिपोर्ट से प्रतिपादित हो चुका है कि बालिका के जैविक पिता का धर्म जैन है। इस नाते बालिका भी जैन समाज की हुई. लेकिन समाज के दोमुहें चरित्र के कारण मेरी पुत्री अब तक सार्थक शिक्षा से वंचित है।"

पढ़ाई पर पड़ रहा असर

सुनीता आर्य ने बताया कि उनकी बेटी कक्षा एक तक अंग्रेजी माध्यम सीबीएसई से पढ़ी है, लेकिन जब उन्हें किसी दूसरे स्कूल में दाखिला नहीं मिला, तो बेटी का एडमिशन हिंदी माध्यम स्कूल में करा दिया। जबलपुर में जैन समाज द्वारा संचालित प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यालय में उन्होंने बेटी को कक्षा- 4 में प्रवेश देने के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए, मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने बताया कि आयोग को सुनीता आर्या की बेटी से सम्बंधित शिकायत मिली है। उन्होंने कहा, "हम जल्द ही इस पर कार्रवाई करेंगे। स्कूल से जबाब तलब करेंगे कि आखिर उन्होंने बच्ची को एडमिशन देने से क्यों इनकार किया है।"

इस संबंध में हमने जबलपुर के प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ के पक्ष जानने के लिए, उक्त मोबाइल नम्बर 9685322388 पर फोन किया। हमने जब उनसे सुनीता आर्या की बेटी के एडमिशन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उनकी बेटी का इंटरव्यू नहीं हुआ है। जब हमने पूछा कि क्या अनुसूचित जाति महिला की बेटी होने के कारण एडमिशन नहीं दिया जा रहा? तो उनका कहना था कि हमारे विद्यालय में प्रवेश की एक नियमावली है। मोबाइल पर बात कर रही महिला से नाम, पद पूछने पर उन्होंने कुछ बताने से इनकार कर दिया। 

चरित्र पर उठाए सवाल

सुनीता ने बताया कि साल 2017 में गैरतगंज के सामाजिक संगठनों ने उनके खिलाफ एसपी को ज्ञापन दिए थे। जिसमें उन्हें चरित्रहीन महिला बताकर यह आरोप लगाया गया कि वह लोगों को जूठा फंसाकर एट्रोसिटी का मामला दर्ज कराती है। गैरतगंज के हिन्दू संगठन, जैन समाज का संगठन सहित अन्य सामाजिक संगठनों ने पुलिस को ज्ञापन सौंपा था। सुनीता ने कहा, "मैंने कभी भी किसी व्यक्ति के खिलाफ एट्रोसिटी का मामला दर्ज नहीं करवाया। लेकिन मुझे ऐसे ही प्रताड़ित किया गया।"

सवाल यह है कि संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों की परवाह न करते हुए समाज के यह अनैतिक नियम एक महिला और उसकी बेटी को किस हद तक प्रताड़ित कर रहे हैं? जबकि प्रेमी युगल का साथ रहना और संतान की उत्तपत्ति होना प्राकृतिक है। सुनीता आर्या और उनकी बेटी के साथ हो रहे अनैतिक व्यवहार, कानून अपराध तो है ही, साथ ही सामाजिक न्याय, और संवैधानिक मूल्य के बंधुता, समानता, न्याय जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों का हनन भी हैं।

नोट- इस खबर से सम्बंधित शिकायती पत्र अन्य दस्तावेज और स्कूल से शिकायतकर्ता सुनीता की हुई बातचीत की वॉइस रिकॉर्डिंग द मूकनायक के पास हैं।
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