भोपाल। मध्य प्रदेश में पिछले साल हिंदी माध्यम के छात्रों की सहूलियत के लिए मेडिकल की पढ़ाई में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की हिंदी पुस्तकें तैयार की गई थीं, लेकिन छात्रों की रुचि हिंदी की किताबें पढ़ने में नहीं है। हालात ये है कि पुस्तकों के प्रकाशक की अभी तक एक भी किताब नहीं बिकी है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि छात्र हिंदी की किताबें पढ़ने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। मेडिकल पाठ्यक्रम को अंग्रेजी के साथ हिंदी में करने वाला एमपी देश का पहला राज्य है। फिलहाल एमबीबीएस के प्रथम वर्ष की किताबें ही उपलब्ध हो सकी है। बाकी अन्य किताबों के लिए शोध जारी है। लेकिन छात्रों की हिंदी कोर्स में बेरुखी इसमें कई तरह की खामियों को दर्शा रही है। द मूकनायक ने इस मामले में पड़ताल की है। पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट।
पिछले साल 16 अक्टूबर 2022 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में एमबीबीएस के हिंदी पाठ्यक्रम का शुभारंभ किया था और एमबीबीएस की प्रथम वर्ष की हिंदी पुस्तकों का विमोचन भी किया था। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है, जो अब इंजीनियरिंग के बाद मेडिकल की पढ़ाई भी हिंदी में कराएगा।
मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर से सम्बद्ध सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फर्स्ट इयर के छात्रों को एमबीबीएस के तीन विषय - एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री - हिंदी में पढ़ाने की शुरुआत की गई, लेकिन पहली ही साल में परिणाम शून्य के जैसा है।
पुस्तकों के हिंदी अनुवाद के लिए पिछले साल 2022 फरवरी में भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में हिंदी प्रकोष्ठ “मंदार“ का विधिवत गठन कर एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम तैयार किया गया था। टास्क फोर्स में चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल थे। मेडिकल कॉलेज के शिक्षकों और विशेषज्ञों ने 5,568 घंटों से अधिक समय तक विचार-मंथन किया। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए 97 डॉक्टरों की टीम ने 4 महीने के समय में इसे तैयार किया।
एमबीबीएस की किताबों का हिंदी अनुवाद के लिए प्रोजेक्ट मंदार में प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों के प्रोफेसर और हिंदी के जानकारों ने संयुक्त रूप से हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों की सहूलियत के लिए प्रदेश में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की पुस्तकें हिंदी में तैयार थीं, लेकिन छात्रों की रुचि हिंदी में नहीं होने के कारण प्रकाशक की अभी तक एक भी पुस्तक नहीं बिकी है। ऐसे में अब सरकार ने प्रकाशकों से आठ सौ पुस्तकें खरीद ली हैं। जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जल्द ही गांधी मेडीकल कॉलेज भोपाल में मेडिकल के छात्रों को यह पुस्तकें वितरित करेंगे।
एमबीबीएस हिंदी पाठ्यक्रम के द्वितीय वर्ष की किताबें छापने के लिए चिकित्सा शिक्षा संचालनालय की तरफ से निविदा जारी की गई थी, पर कोई भी प्रकाशक सामने नहीं आया था। इसकी वजह यही है कि पुराने प्रकाशक की पुस्तकें नहीं बिकी थीं और न ही शासन की तरफ से खरीदी गई थीं। लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अब 800 पुस्तकें खरीदने से प्रकाशकों के सामने आने की उम्मीद है। एमबीबीएस कोर्स के सिलेबस के अनुसार द्वितीय वर्ष में पांच किताबों की आवश्यकता होती है। इसी वर्ष नवंबर से इनकी जरूरत पड़ेगी। इसके लिए प्रकाशकों द्वारा किताबों की छपाई और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
एमबीबीएस हिंदी पाठ्यक्रम की पुस्तकों के प्रकाशक एलजीवियर नामक कंपनी है। द मूकनायक से बातचीत में एलजीवियर के एमपी हेड जितेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि "हमने किताबें छाप कर बुकशॉप, पुस्तकालयों को भेजी है। अब किताबें कितनी बिकी इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग ने आठ सौ किताबों का आर्डर हमें दिया है।"
एमबीबीएस के पिछले सत्र की कक्षाओं में भी शिक्षकों ने विभिन्न मेडिकल कालेजों में विद्यार्थियों से हाथ उठवाकर पूछा था कि हिंदी माध्यम से कितने लोग पढ़ना चाहते हैं तब भी महज 2 प्रतिशत छात्रों ने सहमति जाहिर की थी। दरअसल, एक एमबीबीएस के छात्र ने बताया है कि हिंदी पुस्तकें पढ़ने से वह आगे की डिग्री और शोध के लिए कमजोर पड़ सकते हैं। मेडिकल की अन्य राज्यों की पढ़ाई अंग्रेजी में ही होती है, इसके साथ पीजी कोर्स अभी भी अंग्रेजी में ही कराया जा रहा है। यही कारण है कि छात्र हिंदी पढ़ने से डर रहे हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए गांधी मेडिकल कॉलेज के छात्र पीयूष देवड़ा ने बताया कि हिंदी पाठ्यक्रम से पढ़ने के लिए कोई भी छात्र इक्छुक नहीं है। यहां एक भी छात्र हिंदी से एमबीबीएस नहीं कर रहा है। अगर कोई छात्र हिंदी माध्यम से एमबीबीएस में आए हैं तो वह भी कुछ ही समय में अंग्रेजी की किताबों को समझने लगते हैं, लेकिन हिंदी में किए गए अनुवाद में कई तरह की गलतियां हैं। इसके साथ ही आगे की पढ़ाई और पीजी अंग्रेजी में होनी है। इसलिए छात्र हिंदी में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
वहीं गजराजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर के एमबीबीएस छात्र अंकित मण्डलोई ने बताया कि उनकी जानकारी में अभी तक कॉलेज का ऐसा कोई भी छात्र नहीं है जो हिंदी पाठ्यक्रम से मेडिकल की पढ़ाई कर रहा हो। छात्र ने सर्वे सवाल पर कहा कि हिंदी पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले छात्रों से उनके सुझाव नहीं लिए गए। कोर्स शुरू होने के बाद कॉलेज प्रबंधन ने अपने कार्यक्रमों में हिंदी कोर्स के फायदे जरूर बताएं थे।
एमबीबीएस हिंदी पाठ्यक्रम में छात्रों की रुचि दिखाई नहीं दे रही है। द मूकनायक ने इस मामले में मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति डॉ. अशोक खण्डेलवाल से बातचीत की। उनके अनुसार पिछले ही साल एमबीबीएस हिंदी की किताबों की शुरुआत हुईं है। हम इसमें अभी और भी शोध कर रहे हैं, अन्य किताबों को लाने की भी तैयारी की जा रही है। छात्र हिंदी पाठ्यक्रम में क्यों नहीं रुचि दिखा रहे हैं इस पर विचार किया जा रहा है।
द मूकनायक ने कुलपति से सवाल किया कि हिंदी कोर्स लाने से पहले प्रोजेक्ट के सदस्यों ने कोई सर्वे कराया था? इस सवाल पर कुलपति डॉ. खण्डेलवाल ने कहा कि यह जानकारी नहीं है हमने अभी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट नहीं देखी है। इधर, इस मामले में मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने बताया कि सभी मेडिकल कॉलेजों से हिंदी पाठ्यक्रम से सम्बंधित रिपोर्ट मांगी गई है। रिपोर्ट आने पर ही कुछ कहा जा सकता है।
वर्ष 2022 में नए कॉलेज जुड़ने के बाद प्रदेश में निजी कॉलेजों में 1900 और शासकीय कॉलेजों में 2055 एमबीबीएस सीटें हैं। प्रदेश में निजी और शासकीय 28 मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की कुल सीटों की संख्या 3955 हैं।
हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के एमपी सरकार के अभियान विफल होता दिख रहा है। तकनीकी शिक्षा के हिंदी पाठ्यक्रमों में छात्रों की रुचि नहीं है। इसी सत्र में प्रस्तावित 150 हिंदी तकनीकी सीटों में से पांच फीसदी से भी कम सीटें भरी गई हैं। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि छात्र हिंदी में पढ़ने से डर रहे हैं। यहां तक कि शिक्षक भी तकनीकी विषय पढ़ाने के स्थानीय तरीके से चिंतित हैं।
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