भोपाल। मध्य प्रदेश नर्सिंग घोटाले के सामने आने के बाद कॉलेजों की संबद्धता के लिए नियमों में बदलाव किया गया है। मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी अब कॉलेजों को संबद्धता जारी करने से पहले इनका निरीक्षण नहीं कराएगी। अब सीधे एकेडमिक कांउसिल की सिफारिश पर कार्यपरिषद संबद्धता जारी करने का निर्णय लेगी।
कार्यपरिषद जरूरी समझेगी तो संबद्धता जारी करने से पहले कॉलेजों की जांच करा सकेगी। इसके लिए मेडिकल यूनिवर्सिटी स्टेट्यूट (परिनियम)-26 में बदलाव करने जा रही है। इसको लेकर कार्यपरिषद में निर्णय ले लिया गया है। अब अपेक्स काउंसिल से मान्यता प्राप्त करने के बाद कॉलेज संबद्धता के आवेदन करेंगे, उनका एकेडमिक काउंसिल की स्टैंडिंग कमेटी परीक्षण कर सीधे संबद्धता जारी करने के लिए सिफारिश करेगी। इसके साथ ही हर 3 साल में कॉलेज निरीक्षण कराने का प्रावधान भी हटाया गया है।
संबद्धता/निरतंतरा के आवेदनों का निर्णय अपैक्स काउंसिल जैसे नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी), नर्सिंग काउंसिल, पैरामेडिकल काउंसिल आदि की मान्यता के आधार पर होगा। लेकिन कुलपति समय-समय पर निरीक्षण दल गठित कर संबद्ध कॉलेजों का निरीक्षण करा सकेंगे। निरीक्षण रिपोर्ट में कमियां पाए जाने पर कार्यपरिषद संबद्धता पर पुनर्विचार कर सकेगी।
साथ ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने संबंधित सत्र के लिए नए कॉलेजों की वार्षिक संबद्धता जारी के लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख का प्रावधान भी हटा दिए हैं। अभी तक 31 अक्टूबर तक आवेदन करने होते हैं। लेट फीस के साथ 30 नवंबर तक और 100% अतिरिक्त फीस के भुगतान पर संबंधित वर्ष के 31 दिसंबर तक आवेदन किए जाते हैं। अब यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा तय समय तक आवेदन जमा किए जा सकते हैं।
इस मामले में एमपी के जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. अशोक खंडेलवाल का कहना है कि हाई कोर्ट ने कहा है कि ऐसी शैक्षणिक संस्थाएं, जिन्हें संबंधित अपेक्स काउंसिल से पहले ही मान्यता प्राप्त हो चुकी है, उन्हें संबद्धता जारी करने में यूनिवर्सिटी की भूमिका बहुत कम है। इसलिए जिन कॉलेजों को मान्यता प्राप्त हैं, उन्हें बिना निरीक्षण कराए संबद्धता जारी करने का निर्णय लिया गया है।
हाल ही में समाप्त हुए मध्य प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में विपक्ष ने सबसे बड़ा मुद्दा नर्सिंग घोटाले को ही बनाया था। कांग्रेस के सभी विधायक सत्र के पहले ही दिन एप्रेन पहन कर विधानसभा परिषद पहुँचें थे। बजट सत्र के दौरान सिर्फ नर्सिंग घोटाले को लेकर विपक्ष ने दो बार वाकआउट किया था। राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के खिलाफ सदन में ही नारेबाजी की गई थी। इतना ही नहीं जब उप मुख्यमंत्री (वित्त) जगदीश देवड़ा बजट भाषण दे रहे थे, उस बक्त विपक्ष मंत्री सारंग के इस्तीफे की मांग कर रहा था।
इधर, द मूकनायक से बातचीत करते हुए नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि, "मध्य प्रदेश में नर्सिंग घोटाले के कारण प्रदेश के लाखों युवाओं का भविष्य संकट में है। सरकार विधानसभा में भी इस मुद्दे से भागती रही है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने गलत जानकारी देकर सदन को गुमराह किया, भाजपा सरकार युवाओं के भविष्य को लेकर गंभीर नहीं है।"
साल 2020-21 में कोरोना काल के दौरान कुछ अस्पताल खोले गए थे। इसी की आड़ में कई नर्सिंग कॉलेज भी खोल दिए गए थे। कॉलेज खोलने के लिए मेडिकल यूनिवर्सिटी और चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा बनाए नियमों के मुताबिक नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए 40 हजार स्क्वेयर फीट जमीन का होना जरूरी होता है। साथ ही 100 बिस्तर का अस्प्ताल भी होना आवश्यक है। इसके बाबजूद प्रदेश में दर्जनों ऐसे नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दी गई, जो इन नियमों के अंर्तगत नहीं थे। इसके बाद भी इन्हें मान्यता दे दी गई।
याचिकाकर्ता और जबलपुर हाई कोर्ट में वकील विशाल बघेल ने ऐसे कई कॉलेज की तस्वीरें और जानकारी कोर्ट को सौंपी थी। इसमें बताया कि कैसे कॉलेज के नाम पर घोटाला चल रहा है। हाई कोर्ट ने इस मामले को देखते हुए नर्सिंग कॉलेज में होने वाली परीक्षाओं पर रोक लगा दी थी। इसके बाद, बीते तीन वर्षों से नर्सिंग कॉलेजों में परीक्षा नहीं हुई है। परीक्षा नहीं होने की वजह से छात्र परेशान हैं। अब यही छात्र आंदोलन कर सरकार से जनरल प्रोमोशन की मांग कर रहे है। छात्रों का कहना है कि यदि कॉलेजों ने गलत किया है तो इसकी सजा छात्रों को क्यों मिल रही है।
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