जयपुर। राजस्थान के बारां जिले के राजकीय विद्यालय में "बच्चों की देवी सावित्रीबाई फुले" बता कर सरकार के निशाने पर आई दलित महिला शिक्षक हेमलता बैरवा अब संविधान की रक्षा के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी में है। द मूकनायक के साथ बीतचीत में उन्होंने जानकारी दी कि स्वास्थ्य ठीक होने पर वह उन पर नियम विरुद्ध की गई विभागीय कार्रवाई को न्यायालय में चुनौती देंगी। यह उनकी अपनी नहीं बल्कि संविधान की रक्षा की लड़ाई होगी.
उन्होने द मूकनायक को बताया कि, "गणतंत्र दिवस पर एक सरकारी कर्मचारी के रूप में, मैं भारत के पवित्र संविधान के कार्यान्वयन की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रही थी। मेरे स्कूल के दो शिक्षकों ने पहले मुझ पर सरस्वती पूजा का दबाव बनाया। यह संवैधानिक रूप से गलत होने से मैंने सरस्वती पूजा से मना कर दिया था। इसके बाद यह शिक्षक गांव के मनबढ़ लोगों को लेकर आए और गैर संवैधानिक कार्य करने के लिए स्कूल में हंगामा किया। मैं संविधान की रक्षा के लिए अड़ी रही। इस बात को लेकर मुझ पर एक तरफा कार्रवाई की गई। क्योंकि में दलित हूँ," उन्होंने आगे सवाल करते हुए कहा, "यहां मेरा कसूर बस इतना है कि मैंने संविधान का पालन किया है, क्या राजस्थान में संविधान का पालन करने वालों को शिक्षा मंत्री सजा देंगे? क्या वो संविधान को नहीं मानते?"
"26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) पर देशभक्ति व सांसकृतिक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी। कार्यक्रम के बीच अचानक कुछ मनबढ़ लोग स्कूल में घुसे और कार्यक्रम रोककर पहले मंच पर हिंदू धर्म की देवी सरस्वती का चित्र लगाने को कहा। संविधान के अनुसार सरकारी शिक्षण संस्था में किसी भी धर्म की शिक्षा या पूजा पद्धति की मनाही होने का हवाला देने पर यह लोग मुझ पर भडक़ गए. मैं एससी वर्ग से हूँ, इसलिए मुझे जातिसूचक शब्दों से अपमानित कर गैर संवैधानिक कार्य करने का दबाव बनाया गया। सरस्वती की पूजा नहीं करने पर स्कूल परिसर में ही सबके सामने देख लेने की धमकी दी," उस दिन की घटना को याद करते हुए हेमलता ने कहा.
उन्होंने आगे कहा कि, "स्कूल में लगभग 150 विद्यार्थी एससी, एसटी वर्ग के हैं। लकड़ाइ गांव के अलावा दूसरे गांवों से भी बच्चे यहां पढ़ने आते हैं। इस घटना के पहले से हमारे गांव के एससी समुदाय के बच्चों के साथ स्कूल में जातीय भेदभाव हो रहा था। बच्चों ने कई बार प्रधानाध्यापक को भी शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई."
हेमलता ने आरोप लगाते हुए कहा, "सरकारी स्कूल में गणतंत्र दिवस समारोह में मनबढ़ों ने राजकार्य में बाधा डाली। खुलेआम धमकी दी। जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया। गैर संवैधानिक कार्य करने के लिए सार्वजनिक रूप से दबाव बनाया। मनबढ़ों के साथ इस काम में ओबीसी वर्ग से आने वाले हमारे ही स्कूल के दो शिक्षक भी शामिल रहे, लेकिन विभाग ने संविधान का उल्लंघन कर स्कूल में उत्पात में शामिल रहे शिक्षकों पर कार्रवाई करने की बजाय मुझ पर कार्रवाई की। क्योंकि मैं दलित वर्ग से आती हूं."
"प्रधानाध्यापक से लेकर सीबीओ (मुखय ब्लाक शिक्षा अधिकारी) व जिला शिक्षा अधिकारी ने भी मेरे खिलाफ रिपोर्ट तैयार की है। मैं जानना चाहती हूं उन्हें संविधान के खिलाफ काम करने के लिए कौन मजबूर कर रहा है? क्या शिक्षा अधिकारी किसी विचारधारा को सरकारी शिक्षण संस्थानों में लागू करने के लिए काम कर रहे हैं? शिक्षा मंत्री भी दलित वर्ग से आते हैं, लेकिन वह सत्ता के लालच में संवैधानिक मूल्यों को भूल गए हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि संविधान की बदोलत ही वह विधायक और मंत्री बने हैं," शिक्षिका ने कहा.
शिक्षिका बैरवा की शिकायत के आधार पर, पुलिस ने इसी स्कूल के दो शिक्षकों भूपेन्द्र सैन और हंसराज सैन और उनके साथ आए स्थानीय लोगों (राधेश्याम नागर, भरत नागर, हंसराज नागर और उनके परिवार के अन्य सदस्यों) के खिलाफ धारा 504, 506 तथा अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। उन्होंने एफआईआर में विशेष रूप से कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28 में सरस्वती पूजा का कोई उल्लेख नहीं है। एफआईआर में नामित लोग विभिन्न अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं। बैरवा का आरोप है कि पुलिस ने उनकी एफआईआर पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। हालांकि, पुलिस का कहना है कि जांच चल रही है।
उधर ग्रामीणों ने भी बैरवा के खिलाफ एक जवाबी मामला दर्ज कराया है। जिसमें ग्रामीणों ने उन पर देवी सरस्वती के बारे में अपने विचारों से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया है। उन पर आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उनकी धार्मिक भावनाओं को अपमानित करना) और 153ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) शामिल है।
पुलिस का कहना है कि परस्पर दर्ज मामलों की नियमानुसार जांच की जा रही है। जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि कौन दोषी है। अभी तक किसी भी पक्ष की गिरफ्तारी नहीं की गई है। जबकि शिक्षिका का बैरवा का कहना है कि, "मैंने संविधान की धारा 28 का हवाला देते हुए सरकारी स्कूल में सरस्वती की पूजा से मना किया था। किसी की भावनाओं को आहत नहीं किया. लोगों की आस्था अपनी जगह हो सकती है, लेकिन आस्था को किसी पर जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता।"
इस घटना के बाद राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का एक वीडियो वायरल हुआ था। वायरल वीडियो में शिक्षा मंत्री दिलावर ने कहा कि, "लोग अब स्कूलों में सरस्वती मां की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। वे इतने बड़े हो गए हैं कि उन्होंने अब भी अपने तरीकों में सुधार नहीं किया है। मैं सवाल उठाने वाले व्यक्ति को निलंबित करता हूं और बीकानेर को उस व्यक्ति का कार्यालय बनाता हूं। मैंने इस संबंध में सिर्फ एक घंटे पहले अधिकारियों को निर्देश दिए हैं," मंत्री ने यह बात फरवरी महीने में बारां में एक सार्वजनिक बैठक में कही थी, जिसमें उपस्थित लोगों ने 'भारत माता की जय' के नारे के साथ उनके फैसले की सराहना की थी।
23 फरवरी को मंत्री के भाषण के तुरंत बाद बारां जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी (मुख्यालय) द्वारा एक आदेश जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि बैरवा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जा रही है और उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जा रहा है। साथ ही उनका मुख्यालय बीकानेर स्थानांतरित कर दिया गया है। बीकानेर उनके गृह जिले से लगभग 600 किलोमीटर दूर है।
एक तरफा विभागीय कार्रवाई से आहत दलित महिला शिक्षक ने द मूकनायक से कहा कि नियम विरुद्ध कार्रवाई कर उन्हें टॉर्चर किया गया है, लेकिन वे इससे घबराने वाली नहीं है। संविधान की रक्षा के लिए लड़ती रहेगी. उन्होंने कहा कि, मानसिक दबाव के कारण उनका स्वास्थ्य खराब है। इसलिए अभी बीकानेर निदेशालय बीकानेर उपस्थिति नहीं दी है.
बता दें कि, भाजपा नेता मदन दिलावर भी दलित समुदाय से हैं और राज्य में हिंदुत्व के सबसे उग्र चेहरे के रूप में पहचाने जाते हैं। वह अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्खियां बटोरते हैं। जब से उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला है, वह स्कूलों में सुबह प्रार्थना सभा के दौरान 'सूर्य नमस्कार' पर जोर देने के साथ ही हिजाब (सिर पर कपड़ा रखने), सरकारी विद्यालयों मे सरस्वती देवी की प्रतिमा स्थापना, मुगल सम्राट अकबर को "बलात्कारी" कहने आदि बयानों को लेकर चर्चा में हैं।
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