नई दिल्ली: हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा एक अच्छे स्कूल में पढ़ाई करें। क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों को जीवन में सफलता देखना चाहते हैं। ज्यादातर भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य खासकर उनकी शिक्षा के लिए पैसा बचाना चाहते हैं, और कोशिश करते हैं कि बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूलों में पढ़ाई करवाई जाये। लेकिन आज के समय में पढ़ाई इतनी महंगी हो गई है कि बच्चों को एक अच्छी शिक्षा देना बहुत मुश्किल हो गया है। ऊपर से निजी स्कूलों की मनमानी और भी परेशान कर रही है।
स्कूलों में जैसे ही नया सेशन शुरू होता है वैसे ही फीस वसूलने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। बच्चों का ट्रांसपोर्ट, बच्चों की ड्रेस, बच्चों की किताबें सब स्कूल से ही लेनी पड़ती है। जिसमें और भी खर्चा बढ़ जाता है।
अब माता-पिता के लिए शायद यह अच्छी खबर हो सकती है कि राजधानी में एक अप्रैल से शुरू हो रहे नए शैक्षिक सत्र में कोई भी निजी स्कूल अपनी मर्जी से फीस नहीं बढ़ा सकेगा। इसको लेकर शिक्षा निदेशालय की तरफ से सभी स्कूलों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। शिक्षा निदेशालय ने निर्देश दिए हैं कि अगर कोई स्कूल फीस बढ़ाना चाहता है तो वह एक अप्रैल से लेकर 15 अप्रैल तक शिक्षा निदेशालय को ऑनलाइन प्रस्ताव तैयार करके भेजे। इसके बाद शिक्षा निदेशक स्कूल का ऑडिट कराएंगे और अगर उनको लगेगा कि स्कूल में फीस बढ़ाने की मांग जायज है, तो वो स्कूल को फीस बढ़ाने की अनुमति देंगे। स्कूलों को यह प्रस्ताव शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट पर अपलोड करना होगा।
स्कूलों का शैक्षणिक सत्र एक अप्रैल से शुरू होना है और कई स्कूल पहले ही अभिभावकों से 10-12 फीसदी फीस बढ़ाकर ले चुके हैं। अभिभावकों का आरोप है कि फीस बढ़ाने की मंजूरी मिलने पर स्कूल एरियर के साथ फीस फिर से लेंगे। इससे उन्हें एक साल में दो बार बढ़ी फीस देनी होगी। दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम कहती हैं कि सत्र शुरू होने वाला है उससे दो तीन दिन पहले फीस बढ़ाने के प्रस्ताव मांगने का आदेश निकालना अभिभावकों को गुमराह करने जैसा है।
जबकि निदेशालय को पहले ही अपनी वेबसाइट पर फीस का ढांचा डालना जरूरी है। जिससे अभिभावकों को पता चल सके कि उन्हें किस-किस मद में कितनी फीस देनी है। लेकिन निदेशालय की ओर से ऐसा नहीं किया जाता। अब यदि किसी स्कूल को जुलाई या अक्टूबर तक फीस बढ़ाने की मंजूरी मिलेगी तो वह एरियर के साथ बढ़ी हुई फीस अभिभावकों से वसूलेगा।
माता-पिता की परेशानी को समझने के लिए द मूकनायक ने कुछ अभिभावकों से बात की। सरला (बदला हुआ नाम) जोकि दिल्ली के राजनगर में रहती हैं, उनके दो बच्चे हैं- बेटा दसवीं में पड़ता है और बेटी कॉलेज में है। वह बताती हैं कि, "दिल्ली जैसे शहर में जहां इतनी महंगाई है, पढ़ाई उससे भी ज्यादा महंगी हो गई है। स्कूल वाले हर साल फीस बढ़ाते हैं। पूरे साल कोई ना कोई खर्च बताते ही रहते हैं। साथ-साथ ड्रेस किताबें सब इतनी महंगी देते हैं कि पूरा बजट हिल जाता है। घर के और जरूरी खर्च छोड़कर फिर बच्चों की फीस ही भरनी पड़ती है। मेरी बेटी की पढ़ाई का भी खर्च होता है। तो सोचिए घर में एक कमाने वाला एक हो तो कैसे घर चलेगा और बच्चों को पढ़ाना कितना मुश्किल होगा."
एक अन्य, दो बच्चों के अभिभावक जो दिल्ली के खानपुर में रहते हैं और एक प्राइवेट जॉब करते हैं। वह बताते हैं कि, "स्कूल वाले इतनी मनमानी करते हैं. वह माता-पिता की आर्थिक स्थिति को भी समझना नहीं चाहते हैं। मैंने फीस की बढ़ोतरी के चलते बड़े बेटे को सरकारी स्कूल में डाला। क्योंकि दोनों बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। एक मिडिल क्लास इंसान कैसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाएगा! अगर अच्छी शिक्षा देने के लिए स्कूल खोले जा रहे हैं तो सच्चाई यह है कि कोई भी अच्छी शिक्षा देने के लिए स्कूल नहीं खोल रहा है. बस इन लोगों ने शिक्षा को उद्योग बना लिया है, और इससे माता-पिता परेशान हो रहे हैं."
पालाम निवासी एक अन्य महिला जिनकी दो बेटियां हैं, वह वह अपने बच्चों को एक अच्छे स्कूल में पढ़ा रही हैं। वह बतातीं हैं कि, "सभी सोचते हैं कि हमारे बच्चे जीवन में कुछ बन जाये। लेकिन पढ़ाई अब इतनी महंगी हो गई है कि उनके भविष्य की चिंता दिन-रात रहती है। बच्चों के किताबों से लेकर ड्रेस तक महंगे हैं। ट्रांसपोर्ट का खर्चा मेरे बच्चों का 5 हजार है। दोनों बेटियों का मिलाकर 21 हजार ड्रेस और किताबों का खर्चा है। बताइए कैसे इतना खर्चा हम उठा पाएंगे। अपने खर्चे कम करने पड़ते हैं, और बच्चों की फीस देनी पड़ती है। सरकार को इन निजी स्कूलों के मनमानी को लेकर कुछ तो सोचना पड़ेगा। जिससे कि यह भी माता-पिता की आर्थिक स्थिति को समझे।"
लगभग अभिभावकों ने बच्चों की पढ़ाई और खर्चों को लेकर ज्यादातर एक जैसी ही बात बताई। एक पिता बताते हैं कि, फीस नहीं देने पर बच्चे को क्लास में सबके सामने अपमानित किया जाता है। फीस नहीं देने पर बच्चों के टेस्ट और पेपर नहीं देने दिए जाते हैं। कितनी बार बच्चों के माता-पिता को भी अपमानित होना पड़ता है। अमीरों के बच्चों का तो सब हो जाता है। लेकिन जो कम कमाते हैं, और वह अपने बच्चों को एक अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहते हैं, उनका क्या होगा?"
हर साल अप्रैल का महीना माता-पिता के लिए खर्चो वाला महीना बन जाता है। उनके बजट पर इतना असर पड़ता है कि पूरे साल भर उनको इसकी भरपाई करनी पड़ती है।
प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी करके हर साल 5 से 10% तक फीस बढ़ा देते हैं, जिससे अभिभावकों के ऊपर हर साल अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है. ऐसे में हर साल अभिभावक स्कूलों की फीस बढ़ाने की शिकायतें भी करते हैं। शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी किया गया यह आदेश, स्कूलों पर नकेल कसने के लिए प्रभावी होगा, लेकिन इसके लिए निदेशालय को भी निगरानी करनी पड़ेगी।
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