नई दिल्ली। शिक्षा मंत्रालय ने एक बड़ा फैसला लिया है। सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में अब तक हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में ही पढ़ाई होती थी। लेकिन अब 22 भारतीय भाषाओं में पढ़ाई की जा सकती है। स्कूल शिक्षा और साक्षरता सचिव संजय कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मुताबिक पांचवीं तक के बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाया जाना चाहिए और इस बार नए पाठ्यक्रम के मुताबिक ये फैसला लिया गया है कि एनसीईआरटी हिन्दी और अंग्रेजी के साथ ही 22 भारतीय भाषाओं में किताबों को छापे। पूरा सिलेबस 22 भाषाओं में छापे। ये भाषाएं भारत के संविधान अनुच्छेद 8 में हैं। सीबीएसई ने भी अपने सभी 28 हजार स्कूलों को एडवाइजरी दे दी है।
हालांकि बोर्ड का ये फैसला शिक्षाविदों के गले नहीं उतर रहा है। अधिकांश लोग इसे व्यर्थ की कवायद और संसाधनों का दुरुपयोग मानते हैं। उत्तर प्रदेश राजस्थान सहित कई राज्यों में स्कूली शिक्षा से जुड़े विद्वान मानते हैं कि क्षेत्रीय भाषा का अपना महत्व है लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं को प्रमोट करने के और भी कई तरीक़े हैं, उसके लिए स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम बदलने की आवश्यकता नहीं है।
स्कूल शिक्षा और साक्षरता सचिव संजय कुमार ने कहा कि बच्चे बोर्ड की परीक्षा भी अपनी मातृ भाषाओं में दे सकते हैं। ये कदम समानता को बढ़ावा देगा। राज्य भी अपने बोर्ड में इन भाषाओं में पढ़ा सकते हैं। ये किताबें NCERT जल्द ही डिजिटली उपलब्ध करा देगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत ये बहुत ही दूरगामी फैसला लिया गया है क्योंकि मैं समझता हूं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के भविष्य का डीएनए है।
स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई मातृभाषा में हो सके इसके लिए कुशल शिक्षकों, पाठ्यपुस्तकों और समय की उपलब्धता जैसी बहुभाषी शिक्षा को लागू करने की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए बोर्ड ने स्कूलों से उपलब्ध संसाधनों का पता लगाने, विशेषज्ञों से परामर्श करने आदि को भी कहा है।
सीबीएसई के निदेशक (शैक्षणिक) जोसेफ इमैनुएल ने स्कूलों को भेजे पत्र में कहा, "भारतीय भाषाओं के जरिये शिक्षा की पहल के मद्देनजर, सीबीएसई से संबद्ध स्कूल अन्य मौजूदा विकल्पों के अलावा एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में, भारतीय संविधान की अनुसूची 8 में दर्ज 22 भारतीय भाषाओं को शामिल करने पर विचार कर सकते हैं, जो प्री-प्राइमरी से 12वीं क्लास तक एक वैकल्पिक माध्यम है।" इमैनुएल ने कहा कि इसके लिए स्कूल उपलब्ध संसाधनों का पता लगा सकते हैं, क्षेत्र के एक्सपर्ट्स से बात कर सकते हैं और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए अन्य स्कूलों के साथ सहयोग कर सकते हैं।
CBSC बोर्ड ने 21 जुलाई को इस फैसले को लेकर एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कहा गया है, कि सीबीएसई से जुड़े स्कूल भारतीय संविधान की अनुसूची 8 के अनुसार भारतीय भाषाओं का उपयोग पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं से लेकर बारहवीं कक्षा तक वैकल्पिक माध्यम के रूप में अन्य मौजूद विकल्पों के रूप में करने पर विचार कर सकते हैं।
इधर, शिक्षा मंत्रालय ने एनसीईआरटी को 22 अनुसूचित भाषाओं में नई पाठ्यपुस्तकें तैयार करने का निर्देश दिया है। दावा किया जा रहा है कि ये पुस्तकें अगले सत्र से उपलब्ध हो सकती हैं। आपको बता दें कि सीबीएसई बोर्ड देश का सबसे बड़ा बोर्ड है। सीबीएसई बोर्ड 10वीं-12वीं की परीक्षा में हर वर्ष करीब 30 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स शामिल होते हैं।
सीबीएसई के इस फैसले की केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सराहना की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अपने सभी विद्यालयों में बालवाटिका से कक्षा 12वीं तक भारतीय भाषाओं में शिक्षा का विकल्प उपलब्ध कराने के लिए सीबीएसई को बधाई देता हूं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की परिकल्पना के अनुरूप यह विद्यालयों में भारतीय भाषा आधारित शिक्षा को बढ़ावा देगा। शिक्षा में बेहतर परिणाम की दिशा में यह एक अच्छी शुरुआत है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बोर्ड ने मातृभाषा में छात्र-छात्राओं की पढ़ाई हो सके। इसके लिए अच्छे शिक्षकों, पाठ्यपुस्तकों और समय की उपलब्धता जैसी चुनौतियों को देखते हुए उपलब्ध संसाधनों का पता लगाने, विशेषज्ञों से परामर्श करने आदि को भी कहा है। वहीं, शिक्षा मंत्रालय की तरफ से एनसीईआरटी को 22 अनुसूचित भाषाओं में नई पाठ्यपुस्तकें तैयार करने का निर्देश भी दिया गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार किताब अगले सत्र से उपलब्ध हो जाएंगी।
बोर्ड द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक NCERT ने इस पर कार्य शुरू कर दिया है, और अगले शिक्षा सत्र से देश भर में CBSE बोर्ड से सम्बद्ध स्कूलों के लिए 22 क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं की किताबें भी उपलब्ध होंगी, स्कूल अपने हिसाब से बच्चों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भाषा का चयन कर सकते हैं। इसके लिए वे क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं और अपने विद्यालय में बहुभाषा को वर्तमान उपलब्ध भाषा के पाठ्यक्रम के साथ एक विकल्प के रूप में बच्चों को उपलब्ध करा सकते हैं।
सीएम शिवराज ने अपने ट्वीट में कहा "हम सभी यह जानते हैं कि बच्चे अपनी भाषा में तेजी से सीखते और समझते हैं। आपको यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि मध्य प्रदेश में हमने मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिन्दी में करवाने की व्यवस्था की है, ताकि अंग्रेजी न जानने वाले मेरे बेटे-बेटियों की राह में भाषा कोई बाधा न बन पाये। मेरे बेटे-बेटियों तुम पढ़ो, आगे बढ़ो व अपने साथ प्रदेश और देश को आगे बढ़ाने में योगदान दो।"
द मूकनायक ने शिक्षा की इस नई पहल पर उत्तर प्रदेश में स्कूल शिक्षक डॉ महेंद्र सिंह से बात की। सिंह इस आदेश को राजनीतिक पैंतरा मानते हैं। वह कहते हैं कि जब से यह सत्ता चल रही है, तब से शिक्षा के क्षेत्र में कुछ ना कुछ नए बदलाव किए जा रहे हैं। जहां एक तरफ आप कह रहे हैं कि मातृभाषा को बढ़ावा देना चाहिए लेकिन दूसरी तरफ आप उलट आदेश देते हैं। तो कहां आप मातृभाषा की रक्षा कर रहे हैं। शिक्षा नीति से सरकार वोट पाने की चेष्टा कर रही है और इस नई शिक्षा नीति से कुछ ज्यादा फायदा नहीं होगा। क्योंकि पहले से ही हिंदी और इंग्लिश में ही पढ़ाई होती आ रही है। क्योंकि भाषाएं एक दूसरे को अपनी बात समझाने का साधन है।
द मूकनायक ने शिक्षाविद प्रोफेसर विजोय सहाय से बात की। प्रोफेसर सहाय कहते हैं कि यह बहुत ही अजीब सा आदेश दिया गया है क्योंकि हिंदी और इंग्लिश में ही पढ़ाया जाता रहा है। परंतु ज्यादा भाषाओं में पढ़ाई करवाने से सभी के लिए पाठ को समझ पाना थोड़ा परेशानी भरा हो सकता है। सहाय कहते हैं, "जिस पार्टी की सत्ता होती है, वही पार्टी एजेंडे के अनुरूप शिक्षा नीति बनाती है। और मुझे यह भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों करना पड़ा, क्योंकि भारत जैसे देश में जहां अनगिनत भाषाएं हैं। तो कुछ भाषाओं चुनकर उन पर कैसे शिक्षा दी जा सकती है। भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है, ना कि उसको थोपने की। इसलिए सत्ता से ऊपर उठे और शिक्षा उच्च शिक्षा जैसा समझो शिक्षा शिक्षा होती है वह किसी भी रुप में पाई जा सकती है।"
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