शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव 'अत्यंत गम्भीर मुद्दा', इस समस्या से निपटने के लिए बनाए रणनीति: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च शिक्षण संस्थानों में हो रहे जातिगत भेदभाव को 'अत्यंत गंभीर मुद्दा' करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में यूजीसी को निर्देश दिया कि वह समस्या से निपटने के तरीके बताए और दिशानिर्देश बनाए जिन्हें पूरे देश में लागू किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी घटनाएं न हों। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के छात्रों को गैर-भेदभावपूर्ण माहौल प्रदान करने के लिए उठाए गए तथा प्रस्तावित कदमों के बारे में बताने को कहा।

जानिए क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट में देश भर के शिक्षण संस्थानो में तेजी से बढ़ रहे जातिगत भेदभाव के मुद्दों को लेकर हाल में सुनवाई की। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों में कथित जाति-आधारित भेदभाव के चलते कथित तौर पर आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला और पायल तडवी की माताओं की याचिका पर यूजीसी से उठाए गए कदमों का विवरण मांगा।

गौरतलब है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के दलित शोधार्थी वेमुला ने 17 जनवरी, 2016 को अपना जीवन समाप्त कर लिया था। वहीं, टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज, मुंबई की आदिवासी छात्रा तडवी ने संस्थान के तीन डॉक्टरों की तरफ से कथित तौर पर जातिगत भेदभाव किये जाने के कारण 22 मई, 2019 को अपनी जान दे दी थी।

पीठ ने यूजीसी की ओर से पेश हुए वकील से कहा, 'यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है। जो भी चिंताएं दर्ज कराई गई हैं। आपका उनसे निपटने का क्या प्रस्ताव है और आपने इन शिकायतों को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए हैं? शीर्ष अदालत ने कहा कि यूजीसी को कुछ ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है। यह छात्रों और उनके अभिभावकों के हित में है। उठाए गए कदम यह सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हों। वेमुला और तडवी की माताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उन्होंने क्रमश: अपने बेटे और बेटी को खो दिया है, तथा पिछले एक साल में नेशनल लॉ स्कूल, एक मेडिकल कॉलेज और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में पढ़ने वाले तीन और छात्र अपनी जान दे चुके हैं।

यूजीसी की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आयोग स्थिति से अवगत है। वकील ने कहा कि उसने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा कॉलेज प्राचार्यों को इस बारे में पत्र लिखे हैं। वकील ने कोर्ट को बताया कि आयोग ने 2012 में ही रेगुलेशन तैयार कर लिया था। वह इसके कार्यान्वयन के लिए सभी विश्वविद्यालयों को लिख रहा था। उनके तर्कों का प्रतिकार करते हुए जयसिंह ने कहा कि और अधिक करने की जरूरत है।

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