भोपाल। मध्य प्रदेश में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर करोड़ों की छात्रवृत्ति हड़पने का मामला सामने आया है। सामान्य कैटेगरी के ब्राह्मण और राजपूत समाज के कुछ लोगों ने आरक्षित वर्ग के छात्रों के हक को मारकर फर्जी दस्तावेजों से स्कॉलरशिप हड़प ली। दरअसल विदेश जाकर पढ़ाई करने के लिए 30 छात्रों ने ओबीसी, एससी और एसटी के फर्जी जाति प्रमाण-पत्र लगाकर 10 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप ले ली। इसका खुलासा इन छात्रों की ओर से लगाए गए जाति प्रमाण-पत्रों की जांच से हुआ है। कुछ मामलों में जाति प्रमाण-पत्र निरस्त करते हुए रिकवरी के आदेश भी हो चुके हैं, लेकिन जिम्मेदारों की ओर से कार्रवाई नहीं की जा रही है। यही वजह है कि गलत तरीके से ली गई छात्रवृत्ति से आरोपी विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर छात्र इंदौर के एवं कुछ हरियाणा और बिहार के भी हैं।
राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के लिए विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति योजना संचालित की है। इस योजना के लिए 2022 में आए आवेदनों में 3 आवेदकों का सरनेम शर्मा था। आयुषी शर्मा, शिशिर शर्मा और नयन शर्मा तीनों की शिकायत विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से की गई। इंदौर में बनाए गए इनके जाति प्रमाण-पत्रों की जांच स्थानीय प्रशासन से कराई गई तो पता चला कि तीनों ही छात्र सामान्य वर्ग से आते हैं।
फर्जी जाति प्रमाण से विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति के मामला सामने आते ही ओबीसी महासभा, आदिवासी सेवा संघ और अन्य संगठनों ने इसे गंभीरता से लिया। 2019 से 2022 तक जिन छात्रों को स्कॉलरशिप दी गई थी दस्तावेजों का परीक्षण किया। इस दौरान कुल 30 छात्रों की जाति पर संदेह हुआ। ऐसे में संगठनों ने इन आवेदकों के दस्तावेजों की जांच के साथ ही उन स्थानों पर जाकर भी छानबीन की जहां ये छात्र रहते थे। इस दौरान पूछताछ में इनके सामान्य वर्ग के होने की पुष्टि हुई।
वहीं इस मामले में पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विभाग के आयुक्त गोपालचंद्र डाड ने बताया कि संदिग्ध मामलों की जांच कराई जा रही है। इन सभी छात्रों की स्कॉलरशिप की आगे की किश्त रोक दी गई है। इसके साथ ही कुछ मामलों में रिकवरी के आदेश हुए थे, लेकिन हाई कोर्ट के स्टे के कारण रिकवरी रोकी गई है।
मध्य प्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेज में छात्रवृत्ति घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश लॉ स्टूडेन्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता विशाल बघेल ने जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। याचिकाकर्ता ने न्यायालय को बताया था कि वर्ष 2010 से 2015 तक प्रदेश के सैकड़ों प्राइवेट पैरामेडिकल कॉलेज संचालकों ने फर्जी छात्रों का प्रवेश दिखाकर सरकार से करोड़ों रुपए की छात्रवृत्ति की राशि हड़प कर ली थी, इस मामले में उस समय कई शिकायतें की गई थीं। शिकायतों के बाद जब जांच हुई तो सामने आया कि जिन छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति की राशि ली गई थी उन्होंने कभी परीक्षा नहीं दी। इसके अलावा एक ही छात्र के नाम पर कई कॉलेजों में एक ही समय में छात्रवृत्ति निकाली थी। जांच के बाद करीब 100 कॉलेज संचालकों पर एफआईआर भी दर्ज की गई थी।
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