महाराष्ट्र/वर्धा। वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय पिछले कुछ वर्षों से विवादों में रहा है। पूर्व कुलपति रजनीश शुक्ल की विवादास्पद भूमिका के बाद, विश्वविद्यालय में कई विवाद सामने आए हैं। यहाँ के दलित और बहुजन वर्ग के छात्रों के प्रति प्रशासन का कथित भेदभावपूर्ण रवैया और तानाशाही निर्णयों ने विश्वविद्यालय की छवि को गहरा आघात पहुँचाया है। हाल ही में, 27 जनवरी 2024 को अवैधानिक रूप से नियुक्त कार्यवाहक कुलपति भीमराव मेत्री का विरोध करने पर, विश्वविद्यालय प्रशासन ने बिना छात्रों का पक्ष सुने तानाशाही तरीके से 3 शोध छात्रों सहित 2 छात्रों को निलंबित व निष्कासित कर दिया।
पिछले वर्ष, अगस्त 2023 में, तत्कालीन कुलपति रजनीश शुक्ल पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उन पर लगभग 50 से अधिक शिक्षक नियुक्तियों में धांधली करने और महिला शिक्षकों के साथ नौकरी देने के नाम पर यौन शोषण के आरोप लगे थे। इसके साथ ही, उनके अतिरिक्त वैवाहिक संबंधों की खबरें भी सामने आईं, जिससे विश्वविद्यालय का माहौल अशांत हो गया। इन आरोपों के कारण बढ़ते छात्र आंदोलन और विरोध के दबाव में, कुलपति शुक्ल ने 14 अगस्त 2023 को इस्तीफा दे दिया।
शुक्ल के इस्तीफे के बाद, विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर लैला कारुण्यकारा को विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया। प्रोफेसर कारुण्यकारा की दलित और अम्बेडकरवादी विचारधारा के कारण उन्हें विश्वविद्यालय के सामंती शिक्षकों और केंद्र सरकार के अधिकारियों से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप, 20 अक्टूबर 2023 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के हस्तक्षेप से प्रोफेसर कारुण्यकारा को पद से हटा दिया गया और आईआईएम नागपुर (महाराष्ट्र) के निदेशक डॉ. भीमराय मेत्री को कार्यवाहक कुलपति नियुक्त कर दिया गया। यह नियुक्ति विश्वविद्यालय अधिनियम-1996 का स्पष्ट उल्लंघन थी।
प्रोफेसर कारुण्यकारा ने इस अवैध नियुक्ति के खिलाफ बॉम्बे उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने स्वीकार किया कि भीमराय मेत्री की नियुक्ति नियमों के अनुरूप नहीं थी और इसे वापस लेने की सिफारिश की जाएगी। इस स्थिति ने विश्वविद्यालय के छात्रों को वर्तमान कार्यवाहक कुलपति के खिलाफ विरोध करने के लिए प्रेरित किया। छात्रों का कहना था कि अवैध रूप से नियुक्त कुलपति द्वारा ध्वजारोहण करना न केवल विश्वविद्यालय अधिनियम का उल्लंघन था बल्कि राष्ट्रीय ध्वज का भी अपमान था। अंततः याचिका पर सुनवाई कर फैसला देते हुए माननीय न्यायधीश में कुलपति की नियुक्ति को अवैध करार दिया।
26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस समारोह मेंए छात्रों ने कुलपति मेत्री के ध्वजारोहण का विरोध किया। राजेश कुमार यादव और डॉ. रजनीश कुमार अम्बेडकर ने समारोह के दौरान "ILLEGAL VC GO BACK" लिखे हुए काले कपड़े दिखाए। यह विरोध छात्रों के साहस और प्रशासनिक अन्याय के खिलाफ उनकी दृढ़ता को दर्शाता था। प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए पुलिस को बुलाया, जिन्होंने दोनों छात्रों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, कार्यक्रम समाप्त होने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
27 जनवरी 2024 कोए विश्वविद्यालय प्रशासन ने बिना किसी औपचारिक सुनवाई केए पांच छात्रों को निष्कासित और निलंबित कर दिया। राजेश कुमार यादव, डॉ. रजनीश अम्बेडकर, और निरंजन कुमार को गणतंत्र दिवस समारोह में व्यवधान डालने और कुलपति का अपमान करने के आरोप में निष्कासित कर दिया गया। वहीं, रामचंद्र और विवेक मिश्रा पर सोशल मीडिया के माध्यम से विश्वविद्यालय की छवि खराब करने के फर्जी आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया।
शोधार्थी निरंजन कुमार व विवेक अवैध निष्कासन के खिलाफ उच्च न्यायलय में याचिका दायर की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए छात्रों के निलंबन-निष्कासन को लेकर बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने प्रशासन को फटकार लगाते हुए आदेश दिया था कि विश्वविद्यालय के कुलपति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसके बावजूद, केवल विवेक मिश्रा और निरंजन कुमार का निष्कासन वापस लिया गया, जबकि अन्य 03 निष्कासित छात्र अभी भी न्याय की आस में संघर्ष कर रहे हैं।
अवैध निलंबन और निष्कासन के खिलाफ छात्रों ने पिछले 08 महीनों में कार्यकारी कुलपति के. के. सिंह और कार्यकारी कुलसचिव आनंद पाटिल को ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से अनेकों बार शिकायतें कीं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की है। छात्रों ने अपनी शिकायतें विभिन्न संबंधित संस्थानों में भी दर्ज करवाई हैं, लेकिन अभी तक इन 8 महीनों में निष्कासन को वापस लेने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
पूर्व कार्यकारी कुलसचिव धर्वेश कठेरिया, जिन पर वित्तीय अनियमितता और अन्य गंभीर आरोप लगे हैं, को उनके पद से हटा दिया गया है। इसके बावजूद, उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है और न ही कोई जांच समिति का गठन हुआ है। यह घटनाएं विश्वविद्यालय की प्रशासनिक लापरवाही और अव्यवस्था को उजागर करती हैंए जो छात्रों और कर्मचारियों के अधिकारों के प्रति उदासीनता का स्पष्ट संकेत है।
छात्रों के निष्कासन और निलंबन के मामलों में न्यायालय की अवमानना और प्रशासनिक अनियमितताओं ने विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पूर्व कार्यकारी कुलसचिव-कुलानुशासक धर्वेश कठेरिया, जिन पर वित्तीय अनियमितता, छात्रों और कर्मचारियों के उत्पीड़न के आरोप हैं, को कुलसचिव पद से हटाया गया। लेकिन, आदेश के अनुसार अभी तक किसी जाँच समिति का गठन नहीं किया गया है और न ही कठेरिया के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाया गया है।
धर्वेश कठेरिया पर पूर्व में भी कुलपति रजनीश शुक्ल के कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय की छवि धूमिल करने और विश्वविद्यालय विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगे थे, जिसके चलते उन्हें निलंबित भी किया गया था। इसके बावजूद, अवैधानिक रूप से नियुक्त कुलपति भीमराव मेत्री ने बिना किसी जांच या निष्कर्ष के कठेरिया को कुलसचिव-कुलानुशासक का कार्यभार सौंप दिया। इस अव्यवस्था ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर और भी सवाल खड़े कर दिए हैं और यह दर्शाता है कि विश्वविद्यालय के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही का गंभीर अभाव है।
छात्रों ने अपनी मांगों में विश्वविद्यालय प्रशासन से निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की है। उनका कहना है कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए और उनके अवैध निष्कासन को तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाए। इसके अलावा, छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि भविष्य में ऐसे किसी भी तानाशाही निर्णय से पहले छात्रों की आवाज सुनी जाए और सभी प्रक्रियाएं नियमों के अनुसार की जाएं।
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