भोपाल। मध्य प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता को लेकर एक बार फिर स्थिति उलझन भरी हो गई है। इस विवाद का मुख्य कारण इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) और राज्य सरकार के मान्यता मापदंडों के बीच का अंतर है। हाई कोर्ट ने सत्र 2024-25 के लिए आईएनसी के मापदंडों के अनुसार मान्यता देने का निर्देश दिया था, लेकिन इन मापदंडों का पालन करना राज्य के लगभग 80 प्रतिशत नर्सिंग कॉलेजों के लिए मुश्किल हो सकता है, जिससे उन्हें बंद करने की नौबत आ सकती है।
नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता को लेकर राज्य सरकार और आईएनसी के मापदंडों के बीच का यह विवाद छात्रों के भविष्य पर गंभीर असर डाल सकता है। अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो न केवल कॉलेजों को बंद करने का खतरा रहेगा, बल्कि इस वर्ष का शैक्षणिक सत्र भी शून्य हो सकता है।
दरअसल, आईएनसी ने नर्सिंग कॉलेजों के लिए कुछ मापदंड स्थापित किए हैं, लेकिन नियम नहीं बनाए हैं। इस वजह से राज्य सरकार 2018 में बनाए गए अपने मापदंडों के आधार पर मान्यता देना चाहती है। राज्य सरकार द्वारा 2018 में तैयार किए गए ये मापदंड आईएनसी के मापदंडों में मामूली छूट देकर बनाए गए थे।
आईएनसी और राज्य सरकार के मापदंडों में सबसे बड़ा अंतर नर्सिंग कॉलेजों के लिए निर्धारित जगह को लेकर है। आईएनसी के अनुसार, एक नर्सिंग कॉलेज के लिए 23,270 वर्गफीट की जगह आवश्यक है, जबकि राज्य सरकार के 2018 के मापदंडों में इसे 18 हजार वर्गफीट रखा गया था। वर्ष 2024 में बनाए गए मापदंडों में इसे और घटाकर आठ हजार वर्गफीट कर दिया गया, जिससे आईएनसी के मापदंडों और राज्य सरकार के मापदंडों में एक बड़ा अंतर उभरकर सामने आया है।
राज्य सरकार अब हाई कोर्ट से यह स्पष्ट करने की मांग करेगी कि कोर्ट ने किस मापदंड के आधार पर मान्यता के निर्देश दिए हैं। वर्ष 2018 के बाद से ही नर्सिंग कॉलेजों में गड़बड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया था, और कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई 2018 के मापदंडों के आधार पर कॉलेजों का निरीक्षण कर रही है।
कोर्ट ने वर्ष 2024 के नियमों पर स्थगन लगा दिया है, जिससे उनके अनुसार मान्यता निर्धारित नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय स्तर पर भी नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता के लिए एक आयोग का गठन किया जा रहा है, लेकिन राज्य सरकार 2018 के नियमों के आधार पर ही मान्यता देना चाह रही है।
सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि नर्सिंग कॉलेजों में 30 सितंबर के बाद प्रवेश नहीं हो सकते। अब तक मान्यता की शर्तों पर ही निर्णय नहीं हो पाया है। इसके बाद पोर्टल तैयार कर नर्सिंग कॉलेजों से आवेदन मंगाना होगा, और कॉलेजों का निरीक्षण किया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में समय लग सकता है, और अगर सब कुछ जल्दी-जल्दी नहीं किया गया तो सत्र 2024-25 शून्य वर्ष हो सकता है।
साल 2020-21 में कोरोना काल के दौरान कुछ अस्पताल खोले गए थे। इसी की आड़ में कई नर्सिंग कॉलेज भी खोल दिए गए थे। कॉलेज खोलने के लिए मेडिकल यूनिवर्सिटी और चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा बनाए नियमों के मुताबिक नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए 40 हजार स्क्वेयर फीट जमीन का होना जरूरी होता है। साथ ही 100 बिस्तर का अस्प्ताल भी होना आवश्यक है। इसके बाबजूद प्रदेश में दर्जनों ऐसे नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दी गई, जो इन नियमों के अंर्तगत नहीं थे। इसके बाद भी इन्हें मान्यता दे दी गई।
याचिकाकर्ता और जबलपुर हाई कोर्ट में वकील विशाल बघेल ने ऐसे कई कॉलेज की तस्वीरें और जानकारी कोर्ट को सौंपी थी। इसमें बताया कि कैसे कॉलेज के नाम पर घोटाला चल रहा है। हाई कोर्ट ने इस मामले को देखते हुए नर्सिंग कॉलेज में होने वाली परीक्षाओं पर रोक लगा दी थी। इसके बाद, बीते तीन वर्षों से नर्सिंग कॉलेजों में परीक्षा नहीं हुई है। परीक्षा नहीं होने की वजह से छात्र परेशान हैं। अब यही छात्र आंदोलन कर सरकार से जनरल प्रोमोशन की मांग कर रहे है। छात्रों का कहना है कि यदि कॉलेजों ने गलत किया है तो इसकी सजा छात्रों को क्यों मिल रही है।
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