नई दिल्ली। आईआईटी, दिल्ली के उदयगिरी हॉस्टल में गत 9 जुलाई, 2023 की सुबह एक छात्र का शव पंखे से लटका मिला था। करीब 23 वर्षीय आयुष आसना इंजीनियरिंग के चौथे वर्ष का छात्र था। वह दलित वर्ग से आता था। आत्महत्या के पीछे की वजह अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। उसके सहपाठी बताते हैं कि वह पिछले कई दिनों से मानसिक तनाव में जी रहा था। पुलिसिया बयान यह है कि पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। इसी तरह साल के शुरूआत में आईआईटी बाम्बे के छात्र दर्शन सोलंकी ने भी आत्महत्या कर ली थी। परिजनों ने जातीय भेदभाव का आरोप लगाया था। मामले में एक साथ छात्र पर पुलिसिया कार्रवाई भी हुई थी।
इधर, गत सोमवार को केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने लोकसभा(Parliament) में एक लिखित सवाल के जवाब में जानकारी दी कि पिछले पांच साल में आईआईटी(IIT) और आईआईएम(IIM) सहित अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों (Central university) में पढ़ने वाले एससी व एसटी और ओबीसी कैटेगरी के 13000 से अधिक छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी दी है। इस सूचना के सार्वजनिक होने के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या उच्च संस्थानों में जातीय भेदभाव के चलते बहुजन समाज के छात्र पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर है?
इस सवाल के जवाब में ओडिशा के सामाजिक कार्यकर्ता और आईआईटी रूड़की के पूर्व छात्र मधुसूदन बताते है कि आरक्षित श्रेणी के छात्रों के साथ पहले दिन से ही जातीय भेदभाव शुरू हो जाता है। अमूमन साथी छात्र उनसे जेईई की रैंक पूछते है। इसके बाद कम रैंक वाले आरक्षित छात्रों को एक खास नाम से पुकारा जाने लगता है। उन्हें साइड लाइन कर दिया जाता है।
सामान्य पृष्टभूमि से आने वाले छात्रों की अंग्रेजी भाषा पर पकड़ नहीं होती। इससे सवर्ण समाज से आने वाले प्रोफेसर भी उनको ज्यादा ध्यान नहीं देते। प्रतिस्पर्द्धा, प्रोफेसर के ध्यान नहीं देने से तनाव बढ़ता जाता है। यह एक बड़ा कारण है, जिससे इस वर्ग के छात्रों का ड्रॅाप आउट रेट अधिक है। इसके अलावा भी कई कारण है, जिससे छा़त्र पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं।
शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले पांच साल में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले 4,596 ओबीसी 2,424 एससी और 2,622 एसटी छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। इनमें आईआईटी के भीतर 2,066 ओबीसी, 1,068 एससी और 408 एसटी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी। इसी तरह आईआईटी में पढ़ने वाले 2,066 ओबीसी, 1,068 एससी और 408 एसटी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी। जबकि आईआईएम में पढ़ने वाले 163 ओबीसीए 188 एससी और 91 एसटी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी। इस तरह केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले आरक्षित वर्ग के 13,626 छात्रों को पिछले पांच साल में पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने बताया कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज की स्थापना संबंधित अधिनियमों के तहत की गई है। राज्य विधानमंडल उन्हें स्टेट यूनिवर्सिटी बनाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने कहा कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के ड्रॉपआउट छात्रों का उसके पास कोई डेटा नहीं है।
राज्य शिक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार ने कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले गरीब छात्रों को हायर स्टडी में मदद के लिए फीस में कमी, अधिक इंस्टीट्यूट की स्थापना, स्कॉलरशिप और राष्ट्रीय स्तर की स्कॉलरशिप तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि एससी/एसटी छात्रों के लिए आईआईटी में ट्यूशन फीस में छूट सेंट्रल सेक्टर स्कीम के तहत नेशनल स्कॉलरशिप जैसी योजनाएं भी हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हायर एजुकेशन में छात्रों के ड्रॉपआउट रेट को लेकर ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के पूर्व चेयरमैन एसएस मंथा और भारत सरकार के पूर्व शिक्षा सचिव अशोक ठाकुर ने अप्रैल 2023 में इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख लिखा था।
मंथा और ठाकुर ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को तनाव देने वाला बताते हुए लिखा है कि हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर शिक्षा और प्लेसमेंट का दबाव है। छात्रों पर सफल होने का दबाव है। इसके साथ कई अन्य कारक भी जोड़ें जो अंततः छात्रों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं। पढ़ाई छोड़ना एक व्यक्तिगत मुद्दा हो सकता है, लेकिन अगर इतनी बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई छोड़ रहे हैं, उसके कारणों की समीक्षा होनी चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए किन बदलावों की जरूरत है, जिससे स्टूडेंट्स अपना कोर्स बीच में न छोड़ें।
दोनों आगे लिखते हैं- ऐसा होने के लिएए हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को आत्मनिरीक्षण करना होगा। उच्च शिक्षण संस्थान में एक छात्र का सफर आसान नहीं होता है। एक छात्र को जोड़े रखने के लिए हमारे मैनेजमेंट, फैकल्टी और कर्मचारियों को क्या करना चाहिए। इस पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए। छात्रों को विशेषकर प्रथम वर्ष में कॉलेज लाइफ के अनुरूप ढलने के लिए समय की आवश्यकता होती है। लेकिन इससे पहले कि वे अपनी नई मिली आजादी के मूल्य को समझें और कैंपस जीवन की कई संभावनाओं को समझें, कई लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं। उच्च शिक्षा पर शोध इस बात की पुष्टि करता है कि केवल 50 प्रतिशत छात्र पिछले वर्षों के भारी बैकलॉग के बिना ग्रेजुएशन तक पहुंच पाते हैं।
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