किसान प्रीमियम राशि चुकाकर सहते है दोहरा नुकसान, बीमा कंपनियों को होता है सीधा फायदा
जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के कोडियाई गांव के आदिवासी किसान हनुमान मीना ने ग्राम सेवा सहकारी समिति जस्टाना से फसली ऋण लिया था। तब स्वतः ही उनकी खरीफ फसल का बीमा हो गया। समिति ने कौन सी फसल का बीमा किया है यह नहीं बताया। सितंबर के आखिरी सप्ताह में अतिवृष्टि से उनकी 5 बीघा बाजरा व 4 बीघा तिल की फसल नष्ट हो गई। बीमा क्लेम के लिए उपलब्ध कराए गए टोल फ्री नम्बर पर फोन कर फसल खराब होने की सूचना भी दी है, लेकिन एक पखवाड़ा बीतने के बाद भी न तो बीमा कम्पनी से कोई सर्वे करने आया न ही राजस्व विभाग से। सरकारी शर्त ये है कि फसल खराबे का आकलन करने के लिए खेत में फसल उसी अवस्था में मिलनी चाहिए। इधर, रबी की फसल की बुवाई के लिए खेत तैयार करने में देरी हो रही थी। अधिकारियों के सर्वे के लिए नहीं आने पर निराश होकर हनुमान ने खेत की जुताई कर दी है। नियम के अनुसार फसल खराबे का सर्वे नहीं होने की स्थिति में मुआवजा नहीं मिलेगा।
पास की ही मलारना डूंगर तहसील के निवासी कृषक मतीन खान ने बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा मलारना डूंगर से केसीसी ऋण ले रखा है। बैंक ने उनसे बिना पूछे ही फसल बीमा कर दिया। मतीन बताते हैं कि, 9 अक्टूबर को हुई अतिवृष्टि से उसकी 2 बीघा बाजरे की फसल खराब हो गई। बैंक कर्मचारियों ने न तो बीमा पॉलिसी का नम्बर दिया न ही किस फसल का बीमा किया है ये बता रहे हैं। इससे फसल खराबे का क्लेम करने में दिक्कत आ रही है।
कृषि अधिकारियों का कहना है कि, बीमित फसल खराब हुई है तो खराबे का नियमानुसार सत्यापन तो करवाना ही होगा। हालांकि किसानों का कहना है कि बीमा कम्पनी द्वारा जारी टोल फ्री नम्बर पर 72 घण्टे में शिकायत दर्ज कराना होता है, लेकिन इतने समय तक कम्पनी के टोलफ्री नम्बर पर या तो फोन नहीं लगता या फिर प्रतिनिधि आधी अधूरी बात कर फोन डिस्कनेक्ट कर देते है। ताकि, क्लेम में देरी का हवाला देकर दावा खारिज करने का बीमा कम्पनी के पास आधार बन सके। सवाईमाधोपुर जिले में खरीफ में मूंगफली, बाजरा, उड़द, ग्वार, धान, तिल, सोयाबीन को बीमित फसल में रखा गया है। किसानों को बीमित राशि का 2 प्रतिशत प्रीमियम के रूप में प्रतिमाह देना होता है।
राजस्थान के करीब 26 जिलों में सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह, अक्टूबर के प्रथम व द्वितीय सप्ताह में हुई बेमौसम बारिश से बड़े स्तर पर फसल खराबा हुआ है। किसानों ने खराबे की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए गए नम्बरों पर पंजीयन भी कराया है, लेकिन बीमा कम्पनी की मनमानी शर्त व क्लेम के दावे की जटिल प्रक्रिया से किसानों को फसल खराबे का मुआवजा मिल जाएगा। इस पर संशय बना हुआ है।
कई बीमा कंपनियों से अनुबंध
राजस्थान में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ व रबी फसलों के बीमे के लिए अलग-अलग जिलों में निजी बीमा कंपनियों के साथ राज्य व केंद्र सरकारों का करार है। सवाईमाधोपुर जिला कलक्टर सुरेश कुमार ओला ने एक वीडियो जारी कर कहा कि बीते दिनों बेमौसम बारिश से किसानों की फसल खराब हुई है। किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार हरसम्भव प्रयास कर रही है। विशेष गिरदावरी के निर्देश भी सरकार ने दिए है। कलक्टर ने वीडियो के माध्यम से कहा कि फसल खराब होने के 72 घण्टे में बीमा कम्पनी के टोल फ्री नम्बर पर या क्रॉप एप के माध्यम से ऑनलाइन सूचना देना है। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो कृषि व राजस्व अधिकारियों के माध्यम से ऑफलाइन भी फसल खराबे की शिकायत दर्ज कराएं। ताकि समय पर निस्तारण हो सके।
78 हजार किसानों ने कराया बीमा, 20 हजार ने किया क्लेम
कृषि अधिकारियों के अनुसार, राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में 78736 किसानों ने 49683.51 हैक्टेयर भूमि में खरीफ फसल का बीमा करवाया है। जिले के इन किसानों ने 3.48 करोड़ रुपए फसल बीमा की प्रीमियम राशि बीमा कम्पनी को दी है। फसल बीमा कराने वाले 99 प्रतिशत किसानों के किसान क्रेडिट (केसीसी) खातों से बैंकों ने सीधे ही प्रीमियम राशि बीमा कम्पनी को ट्रांसफर की है। दावा है कि सवाईमाधोपुर जिले में प्रीमियम के रूप में 7.20 करोड़ रुपए राज्य व इतनी राशि केंद्र सरकार कम्पनी को देगी। कृषि अधिकारियों की माने तो इस वर्ष 78736 में से केवल 19888 किसानों ने फसल खराब होने का दावा किया है। अब बीमा कम्पनी, राजस्व व कृषि अधिकारी की टीम फसल खराबे के दावे की सत्यता जांच कर बीमा कम्पनी को रिपोर्ट करेगी।
एक से डेढ़ साल तक नहीं मिलता क्लेम, कर्ज लेकर फसल की बुवाई
भारतीय किसान संघ के जिलाध्यक्ष कानजी मीना ने द मूकनायक को बताया कि, क्लेम की जटिल प्रक्रिया के कारण बीमित किसानों को एक से डेढ़ साल का समय बीतने के बाद भी क्लेम की राशि नहीं मिल पाती है। अभी अतिवृष्टि से खरीफ की फसल खराब हो गई, लेकिन कहीं भी बीमा कम्पनी से सर्वेयर नहीं आए। किसान रबी बुवाई की तैयारी में जुट गया है। मीना ने राज्य सरकार के विशेष गिरदावरी के आदेश को केवल राजनीतिक स्टंट बताया है। उन्होंने कहा कि अभी तक कही भी गिरदावरी नहीं हुई है। बेबस किसान बीमा कंपनी को प्रीमियम देने के बावजूद खरीफ के नुकसान की भरपाई नहीं हुई। अब कर्ज लेकर रबी की तैयारी में जुट गया है। भारतीय किसान संघ जिलाध्यक्ष ने राजस्व, कृषि व बैंक अधिकारियों पर बीमा कम्पनी से मिलीभगत का आरोप भी लगाया है।
बीमा कंपनियों की चांदी, किसानों को नुकसान
द मूकनायक को मलारना डूंगर प्रधान देवपला मीना ने कहा कि यहां किसान की फसल का नहीं बल्कि किसान की राशि से बीमा कम्पनी का फायदा किया जा रहा है। बीमा कम्पनी के जटिल नियमों में उलझा कर किसान को क्लेम नहीं दिया जाता है। यह कड़वा सच है। इसे सरकार को स्वीकारना होगा। बीमा कम्पनी के प्रतिनधि, कृषि व राजस्व अधिकारियों का किसान के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है। प्रधान ने बताया कि गत दिनों मलारना डूंगर पंचायत समिति की साधरण सभा की बैठक में भी जनप्रतिनिधियों ने बीमा कम्पनी के टोलफ्री नम्बर को किसानों के साथ छलावा बताया था। इस बात की पुष्टि करने के लिए पंचायत समिति सदन में ही बीमा कम्पनी के टोलफ्री नम्बर पर अधिकारियों की मौजूदगी में फोन लगाया गया था। 22 मिनट इंतजार के बाद बीमा कम्पनी के प्रतिनिधि ने फोन रिसीव किया। नाम पता पूछने के बाद फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। इस संबंध में साधरण सभा की बैठक में बीमा कम्पनी के व्यवहार को लेकर असंतोष भी जताया गया।
समय तो लगेगा ही
रामराज मीना, उपनिदेशक कृषि विस्तार सवाईमाधोपुर ने द मूकनायक को बताया कि, इस समय जो असामयिक बरसात हुई है। इससे हमारी फसलों को नुकसान हुआ है। हमने ऑनलाइन व ऑफलाइन बीमा क्लेम दावा करने के लिए किसानों को प्रेरित किया है। खरीफ में 20 हजार के लगभग किसानों ने ऑनलाइन व ऑफ लाइन क्लेम का दावा किया है। किसान के द्वारा क्लेम का दावा करने पर बीमा कम्पनी का प्रतिनिधि, कृषि व राजस्व विभाग की टीम किसान के साथ मौके पर जाकर सर्वे करती है। सर्वे होने के बाद सर्वे रिपोर्ट ऑनलाइन दर्ज की जाती है। इसके बाद कृषक से ली गई प्रीमियम राशि के साथ ही राज्य व केंद्र सरकार अपने हिस्से की प्रीमियम राशि बीमा कम्पनी को जमा करवाती है। फसल कटाई प्रयोग व प्राकृतिक आपदा से फसल खराबे का सर्वे के आधार पर एवरेज फसल खराबा तय किया जाता है। इसके बाद क्लेम मिलता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 3 माह से एक वर्ष का समय लग जाता है।
कृषि विस्तार उपनिदेशक ने कहा गत वर्ष 2021 में फसल खराबे की क्लेम राशि पिछले महीने किसानों के खातों में जमा हुई है। समय तो लगेगा ही। उन्होंने बीमा कम्पनी से मिलीभगत के आरोपो को सिरे से खारिज किया है।
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