बिहारियों में एक सुखद बदलाव आया है, क्या किसी ने नोटिस किया?

बिहारियों में एक सुखद बदलाव आया है, क्या किसी ने नोटिस किया?
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कई बार कुछ बदलाव सुखद होते हैं, लेकिन नजर नहीं आते. ऐसा ही एक बदलाव हमारे देखते-देखते हुआ है.

विगत दिनों एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक प्रभावशाली समुदाय से आने वाली महिला एक गार्ड को गालियां दे रही है और उसे घृणास्पद तरीके से 'बिहारी' कहकर संबोधित करती है. बिहारी संबोधन में कोई आपत्ति नहीं है, वह संबोधन किसी अन्य राज्य के व्यक्ति के लिए तमिल, मराठी, पंजाबी, कश्मीरी, गुजराती या उडि़या हो सकता है. मात्र यूपी यानी उत्तर प्रदेश अपने नाम की वजह से बच जाता है हालांकि वहां के लोगों को शहरों के नाम पर बुलाया जाता है जैसे कि बनारसी, कनपुरिया, इलाहाबादी इत्यादि. ये सारे संबोधन शहर या राज्य के किसी खास कल्चर को इंगित करते हैं. कई बार यह शरारती होता है, कई बार अपमानजनक. हालांकि यह देखा गया है कि बिहारी शब्द को लोग ज्यादातर अपमान के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं और बिहारियों का बड़ा ही खास विरोध भी इसमें उभर कर सामने आता है.

पर इस बार अनोखी घटना हुई. इस बार बिहारी रुष्ट नहीं दिखे, उन्होंने अपमानित महसूस नहीं किया, पहले की तरह बहुत स्ट्रॉन्ग रिएक्शन नहीं आया. वो बिंधे हुए, टूटे हुए या छले हुए महसूस नहीं कर रहे थे. वो हैरान थे कि कोई व्यक्ति इतना अनजान कैसे हो सकता है. वो हैरान थे कि किसी व्यक्ति को इतिहास, भूगोल, राजनीति की इतनी कम जानकारी कैसे हो सकती है जब कि वह व्यक्ति इन्हीं विषयों पर उच्चतम शिक्षा ग्रहण कर के आया हो.

बहरहाल, बात उस व्यक्ति से ज्यादा बिहारियों में आए बदलाव के बारे में है. बिहारी अब इस बात से नाराज नहीं हो रहे कि आप उन्हें किसी भी लहजे में बिहारी कह रहे हैं. क्योंकि यह अब पहचान का विषय है. और पहचान की लड़ाई हमेशा जटिल होती है. इसको कभी सफेद और काला में विभक्त नहीं किया जा सकता. कई बार यह लड़ाई जरूरी होती है तो कई बार बेजा लगती है.

अगर बीसवीं शताब्दी आदर्शों की लड़ाई में व्यस्त रही तो इक्कीसवीं शताब्दी आइडेंटिटी की लड़ाई में व्यस्त है. चाहे वो यूरोप हो, अमेरिका हो, अरब देश हों, चीन हो या अन्य देशों के छोटे समुदाय हों या बड़े समुदाय भी, सबको आइडेंटिटी की पड़ी है. यह आइडेंटिटी क्राइसिस कुछ सौ साल पहले यूरोप में प्रोटेस्टेंट धर्म के आने के बाद शुरू हुआ था जो धीरे-धीरे कई देशों में फैला और भयानक युद्ध का कारण बना. पर धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदलता गया और उद्योग आने के बाद वर्ग संघर्ष के कॉन्सेप्ट में समाहित होता गया. लेकिन इंटरनेट आने के बाद से जनता एक बार फिर उसी मोड़ पर है जहां से इतिहास गुजर चुका है.

हम यह नहीं कह सकते कि यह अच्छा है या बुरा है. क्योंकि ऐसा कुछ एग्जिस्ट नहीं करता कि पहचान अच्छी है या बुरी है. जिसको जो महसूस होगा वो कहेगा ही. जिसको इतिहास से तकलीफ होगी, वो इतिहास बदलने की बात करेगा ही.

ठीक यही बिहार के संदर्भ में हुआ है. बारहवीं शताब्दी में चार सौ साल तक ताकतवर रहे पाल वंश के खात्मे के बाद से बिहार किसी बड़े नरपति के अधीन रहा, पर दूर से. वास्तव में पिछले हजार सालों से बिहार में जमींदारों का ही शासन रहा है. बड़े जमींदार और छोटे जमींदार. तब से बिहार दूसरे प्रदेशों को मैनपावर सप्लाई कर रहा है. मतलब ऐसा मैनपावर कि जब दिल्ली में बादशाह की बादशाहियत में कमी हुई तो शेरशाह सूरी के रूप में मैनपावर भेज दिया, बादशाह बनने के लिए. बाद में ब्रिटिश राज में ढेर सारे बिहारियों को गिरमिटिया मजदूर बनाकर समंदर के देशों फिजी, मॉरीशस इत्यादि में भेज दिया गया. भारत में हुई यह एक अनोखी घटना है जो इतिहास की क्रूरतम गाथाओं में से एक है लेकिन इसकी चर्चा कम ही होती है.

बाद में ब्रिटिशकालीन भारत में बिहारियों ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया. महात्मा गांधी के पदार्पण के बाद, ज्यादा. और तभी 1911 में बिहार एक अलग प्रांत भी बना और अस्तित्व में आया. आजादी के बाद बिहार में उद्योग धंधों का क्षरण हुआ और यहां से लोग पूरे देश में जाने लगे, काम करने के लिए. जमीन को लेकर कन्जर्वेटिव रवैये की वजह से यहां पर हरित क्रांति भी नहीं हो पाई और व्यापार को लेकर कन्जर्वेटिव रवैये की वजह से बिहार आर्थिक सुधारों का भी फायदा नहीं उठा पाया. इस बीच सत्तर के दशक से लेकर नई शताब्दी की शुरुआत तक बिहार जातिगत नरसंहारों और बेतहाशा अपराध की जकड़ में रहा. यहां से ढेर सारा माइग्रेशन हुआ, बौद्धिक काम करने वालों का भी और शारीरिक मेहनत करने वालों का भी. पर वापस लौटकर बिहार में फिर से जीवन बनाने का स्कोप नजर नहीं आ रहा था. यह ठीक वैसा ही था, जैसा कि गिरमिटिया मजदूरों के साथ हुआ था, एक बार देश छूटा तो छूट ही गया. नतीजतन जो यहां से बाहर निकला, वो यहां पर वापस आने से कतराता रहा. तो शारीरिक काम करने वालों को बाहर एक समुदाय का नाम दे दिया गया- बिहारी, यह समुदाय वर्ग संघर्ष में निचले स्तर पर आ गया और इसकी गरीबी के कारण इसकी पहचान को गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. ध्यान रहे कि शारीरिक मेहनत करने वाले ज्यादातर लोग निचली जातियों के थे इसलिए यह एटिट्यूड बनने में टाइम नहीं लगा. पर चूंकि यह एटिट्यूड स्थानजनित था, अज्ञानजनित था तो इसका मुकाबला भी उन्हीं हथियारों से हुआ जो स्थान और अज्ञान के हिसाब से काम करता है- इंटरनेट.

इंटरनेट युग आने के बाद स्थिति बदल गई. इंटरनेट के आने से लोकल कल्चर का, वर्नाकुलर चीजों का सेलिब्रेशन होने लगा. क्योंकि इंटरनेट पर एक वर्ग की लाइफस्टाइल पूरी दुनिया में कमोबेश एक जैसी थी. एक ही तरह की किताबें, सिनेमा या एस्पिरेशन नजर आती थी. तो जनता नई चीजों की तरफ भागी. पिछले दस वर्षों में बिहार को लेकर ही नजरिया बदल गया. पहले गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म आई जिसके संवाद लोगों की जुबान पर चढ़ गये. अपनी रॉ-नेस के चलते. इसके बाद पीके फिल्म आई, जिसमें फनी संवाद थे. फिर एक और पीके आए बिहार से जिन्होंने राजनीति में नया ग्रामर फिट किया. फिर बाद में मिर्जापुर वेबसीरीज आई जो उत्तर प्रदेश के आधार पर बनी थी पर इसका कॉन्सेप्ट बिहार के कल्चर से मिलता जुलता था. इसके बाद जो सबसे ज्यादा क्रांतिकारी बदलाव आया वो यूट्यूब को लेकर था. यूट्यूब पर भोजपुरी गानों के दर्शक इतने ज्यादा हैं कि कोई नया रिलीज गाना सारे रिकॉर्ड तोड़ देता है. तो इंटरनेट के मार्केट में यह कल्चर बहुत पावरफुल हो गया. अब इसमें रोचक बात यह है कि इंटरनेट पर यह मेहनत भी ज्यादातर निचली जातियों के कलाकारों की ही थी. अब बिहारी कल्चर अपने आप में इंटरनेट पर उपभोक्ता के अलावा प्रोडक्ट क्रिएटर भी बन गया. और यह कल्चर सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बिहारी बोलने से यूपी के कुछ हिस्से, झारखंड, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से- यह सब इसी कल्चर का पार्ट बना. रॉ-नेस इसकी पहचान बनी.

जब जनता इतनी सारी चीजें कन्ज्यूम कर रही है तो स्वाभाविक है कि नजरिया बदलेगा. पुनः हमें यह नहीं पता कि अच्छा हो रहा है या बुरा हो रहा है. क्योंकि इंटरनेट युग में वर्ग संघर्ष की धारणा बदली है और तरीका भी बदला है. अब कूड़ा बीनने वाला भी सेलिब्रिटी है और कूड़ा फेंकने वाला भी. यह एक ग्रेट लेवलर है. जो काम किताबें नहीं कर पाईं, लेख नहीं कर पाए, जागरूकता अभियान नहीं कर पाए, वो इंटरनेट ने अपने आप कर दिया. इसलिए अब हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं कि आगे कोई सुंदर या रोमांचक रास्ता आने वाला है. हमें नहीं पता. पर यह जरूर पता है कि बिहारी म्यूजिक इंडस्ट्री ने उक्त महिला के गालीवाले वीडियो के वायरल होने के दो घंटे के अंदर उस पर कोई वायरल गीत शूट कर लॉन्च कर दिया होगा.

डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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