संसद में विपक्ष ने बाहें मरोड़नी शुरू कर दी हैं. लोकसभा स्पीकर के चुनाव में अब नरेंद्र मोदी बनाम इंडिया गठबंधन दिखने वाला है. मोदी ने जहां एक बार ओम बिरला को स्पीकर पद के नामित किया है तो इंडिया गठबंधन ने केरल के 8वीं बार के कांग्रेस सांसद के. सुरेश को मैदान में उतार दिया है. यानि अब तय है कि स्पीकर पद के लिए चुनाव होकर रहेगा.
हालांकि नरेंद्र मोदी ने 24 जून को मीडिया से बातचीत में कहा था कि वे सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं, और शाम को राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को फोन किया. राजनाथ सिंह ने खरगे से कहा कि स्पीकर पद के लिए हमारा समर्थन करिए लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने डिप्टी स्पीकर विपक्ष का होगा. इस पर राजनाथ सिंह ने कहा कि वे कॉलबैक करेंगे. लेकिन 25 जून की दोपहर तक राजनाथ सिंह का फोन खरगे साहब को नहीं गया था. इसके बाद के. सुरेश ने स्पीकर पद के लिए नामांकन कर दिया. इस पूरी कहानी को राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया. राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं.
स्पीकर पद के लिए के. सुरेश का नामांकन भरवाकर कांग्रेस ने दलित दांव चल दिया है. लोकसभा चुनाव में दलित समुदाय ने इंडिया गठबंधन का खुलकर समर्थन किया और हमने देखा है कि कैसे यूपी में इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को करारी मात दी है. इसके साथ ही कांग्रेस ने दक्षिण की राजनीति को भी के. सुरेश के जरिए साधा है.
के. सुरेश केरल के तिरुवनंतपुरम जिले की मावेलीक्करा लोकसभा सीट से आठवीं बार सांसद हैं. हालांकि इस मामले में एक पेंच है कि टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने स्पीकर पर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार खड़ा करने के मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनकी पार्टी से सलाह नहीं ली गई. अब देखना होगा कि वोटिंग के समय टीएमसी किसके साथ जाती है, अगर वह के. सुरेश का समर्थन नहीं करती है तो साफ होगा कि इंडिया गठबंधन में टूट पड़ चुकी है. देखना होगा कि सुबह होने तक इंडिया गठबंधन टीएमसी से संपर्क करता है की नहीं.
के. सुरेश का संबंध केरल के ‘चेरामार’ समुदाय से हैं, बीजेपी के स्पीकर उम्मीदवार ओम बिरला सवर्ण हैं. और वैश्य जाति से आते हैं. राहुल गांधी की अगुवाई में इंडिया गठबंधन लगातार संविधान और आरक्षण का मुद्दा उठाता रहा. दलितों और पिछड़ों की हकमारी का मुद्दे पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और स्पीकर पद के लिए के. सुरेश को उतारकर राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने यह जता दिया कि वे लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं.
आपको बता दें कि 24 जून को इंडिया गठबंधन के नेता हाथों में संविधान की कॉपी लेकर पहुंचे थे. चाहे वह कांग्रेस के हों या सपा के. सब के हाथों में संविधान था. बता दें कि 2014 और 2019 में बीजेपी ने दिखाया कि किस तरह इन समुदायों को उनकी परंपरागत पार्टियों से तोड़कर बहुमत हासिल किया जा सकता है. और 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन ने इसी फॉर्मूले पर काम किया. और नतीजा सामने हैं.
25 जून को लोकसभा में राहुल गांधी और अखिलेश यादव से संसद सदस्य के तौर पर शपथ ली. दोनों नेताओं का उनकी पार्टी के सदस्यों ने नारे लगाकर और मेजें थपथपाकर स्वागत किया. बधाई दी. अखिलेश यादव अपनी शपथ लेकर नीचे उतरे तो राहुल गांधी ने अपनी सीट पर खड़े होकर उनसे हाथ मिलाया और बधाई दी. दोनों नेताओं की यह तस्वीर वायरल हो गई. वैसे 18वीं लोकसभा के दूसरे दिन फैजाबाद सीट से जीत अवधेश प्रसाद ने खून सुर्खियां बटोरीं. दरअसल मेरठ के सांसद अरुण गोविल जब शपथ पूरी कर अपनी सीट की ओर बढ़े तो विपक्षी नेताओं ने जय अवधेश... जय अवधेश के नारे लगाए... शोर इतना बढ़ गया कि समाजवादी पार्टी के सांसद अपनी सीट पर खड़े हुए और हाथ जोड़कर सबका अभिवादन स्वीकार किया.
इसी तरह बरेली के बीजेपी सांसद छत्रपाल सिंह गंगवार ने जय हिंदू राष्ट्र का नारा लगाया तो विपक्षी नेताओं ने आपत्ति की और कहा कि ये संविधान के खिलाफ है. हालांकि स्पीकर ने कुछ नहीं कहा, जबकि तमिलनाडु के कांग्रेस सांसद ससिकांत सेंथिल ने शपथ पूरी करने के बाद कहा कि दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार को रोको, तो स्पीकर की कुर्सी पर बैठे बीजेपी सांसद राधामोहन सिंह ने कहा कि शपथ के लिए अलावा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं जाएगा. आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर ने बाबा साहेब को याद किया लेकिन कांशीराम याद नहीं रहे! समाजवादी पार्टी के तमाम सांसदों ने मुलायम सिंह यादव अमर रहे के नारे लगाए.
पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव जीते पप्पू यादव तो शपथ के बाद ही बीजेपी नेताओं से भिड़ गए. पप्पू यादव नीट की परीक्षा दोबारा कराने की मांग वाली टीशर्ट पहनकर शपथ लेने पहुंचे थे, इस पर बीजेपी सांसदों ने उन्हें टोका तो पप्पू यादव ने पलटवार किया कि मुझे मत सिखाइए. आप दूसरों की कृपा पर जीतते हैं और मैं खुद के दम पर. इन सांसदों के अलावा ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुसलमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की शपथ भी चर्चा में रही, क्योंकि उन्होंने जय फिलीस्तीन का नारा लगा दिया. गाजियाबाद से बीजेपी के सांसद अतुल गर्ग ने कहा कि डॉक्टर हेडगेवार जिंदाबाद. बहुत सारे नेताओं ने अपनी पार्टी के नेता का नाम लेकर जिंदाबाद का नारा लगाया, तो किसी ने क्षेत्र, राज्य, भाषा और विचारधारा को जिंदाबाद बोला. बहुत सारे नेताओं ने जय भीम, जय संविधान के साथ बाबा साहेब अंबेडकर जिंदाबाद और अमर रहे का नारा लगाया.
मैंने ये सब इसलिए क्योंकि अगर आप सांसदों के नारे को देखें तो आप पाएंगे कि उसमें वोट की राजनीति छुपी हुई है. लेकिन कोई भी सांसद अपने वोट के इतर नहीं सोच पाया. हमारे सांसदों की सोच इतनी संकीर्ण हो गई. हो सकता है कि आजादी के महान नायकों में से बहुत सारे वोट न दिला पाएं. लेकिन कोई भी सांसद इतनी जहमत नहीं कर पाया कि वह महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और मौलाना कलाम को याद कर पाए. यहां तक कि कांग्रेस के नेता भी. हालांकि मैं इन नेताओं को किसी पार्टी से जोड़कर नहीं देखता हूं. लेकिन जब आप वोट के लिहाज से जिंदाबाद करने लगें तो टोकना बनता है. भारतीय लोकतंत्र अगर 70 सालों की यात्रा कर पाया है तो '...इसके लिए भी नेहरू जिम्मेदार हैं!'
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे टर्म में विपक्ष मजबूत है. उसके पास संख्या बल है और जहां उसकी चलेगी, वह अपने रास्ते पर चलेगा. नरेंद्र मोदी अब संसद में अपने मन की बात कर पाएंगे, लेकिन विपक्ष की उनकी बात मानेगा. ये तय नहीं है. और हां नरेंद्र मोदी अब अपनी मनमानी भी नहीं कर पाएंगे. के. सुरेश भले ही स्पीकर पद का चुनाव हार जाएं लेकिन विपक्ष झुकेगा नहीं. ये तय है...
लेखक- नंदलाल शर्मा स्वतंत्र पत्रकार हैं.
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