गांधी, नेहरू, अंबेडकर का रास्ता और राहुल गांधी…

कांग्रेस नेता राहुल गांधी.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी.ग्राफिक- द मूकनायक
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अंग्रेज़ों से लड़ना बहुत मुश्किल था।आज़ादी की लंबी लड़ाई, त्याग- बलिदान की निरंतरता ने अंततः गांधी के नेतृत्व में आज़ादी हासिल की। इस बीच आज़ादी की मशाल को उनसे बचाए रखना भी आसान नहीं था,जो वतन का नमक खाते हुए ग़द्दारी कर रहे थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ‘सिंधिया से लेकर जयचंद’ से भरा हुआ है।

आज़ादी की लड़ाई में जो जैसे लड़ सकता था,लड़ा। जो नहीं लड़ा, उसका नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS) था। RSS अंग्रेजों का हिमायती, आज्ञापालक रहा। 1925 से RSS पहले आज़ादी का विरोधी था। फिर गांधी, नेहरू और अंबेडकर का विरोधी हुआ। गांधी का हत्यारा हुआ।

फासीवादी ताक़तों का डाकिया बनते हुए 2025 में हिन्दू राष्ट्र के सपने को सच करने के कोशिश में लगा है। RSS एक गुप्त संगठन है। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं। यह मैं नहीं कहता सरदार पटेल के पत्र इसकी गवाही देते हैं।

भारत में पत्रकारिता का निधन हो चुका है। इसका लाभ RSS को मिलता है। उससे कोई सवाल नहीं किया जाता। जबकि BJP शरीर है। आत्मा RSS है। BJP बदलती है, RSS नहीं बदलता।'

गांधी,संविधान और लोकतंत्र से संघ की नफ़रत BJP को पैत्रिक सम्पदा की तरह मिली है। इस शक्तिशाली और मायावी BJP का मुक़ाबला कैसे होगा?

कौन लड़ेगा BJP से? जो देश को संघ और BJP के सांप्रदायिक एजेंडे से बचाते हुए,नफ़रत के समंदर से निकालते हुए मोहब्बत की ओर ले जाएगा, हम उसका समर्थन करेंगे। अटूट समर्थन करेंगे।

भारत जोड़ो यात्रा’,आज़ाद भारत के इतिहास में देश को जोड़ने वाली सबसे बड़ी यात्रा है। आडवाणी की रथ यात्रा ने देश को तोड़ने का काम किया था। सांप्रदायिकता की आग को लोगों के दिमाग़ में धीमे-धीमे सुलगने के लिए छोड़ दिया गया।

आज मोदी जिस सांप्रदायिकता की फ़सल काट रहे हैं, उसे बोया आडवाणी ने था। सांप्रदायिकता, लोकतंत्र की सबसे बड़ी दुश्मन है। सांप्रदायिकता के ख़तरे को बाबा साहब अम्बेडकर ने बार-बार रेखांकित किया। गांधी उसी सांप्रदायिकता की गोली से छलनी कर दिए गए। नेहरू RSS को लगातार ललकारते रहे। अपनी ही कैबिनेट के तमाम सहयोगियों के विरुद्ध वह अकेले RSS और सांप्रदायिकता से लड़ते रहे।

नेहरू की ललकार राहुल गांधी के भाषणों में सुनी जा सकती है। राहुल गांधी ने संविधान को जिस तरह पुकारा,आरक्षण के लिए आवाज़ बुलंद की है। यह पुकार और आवाज़ भारत के दलितों आदिवासियों और हक़ की लड़ाई में पीछे छूट गए वंचितों को आश्वस्त करने वाली है।

बाबा साहब अंबेडकर की विरासत यही तो है। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के प्रति करूणा और अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता ही गाँधी मार्ग है। जिस दिन राहुल गांधी कचरे की पेटी से गांधी की तस्वीर अलग कर पाएंगे, गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि वही होगी।

RSS से नेहरू की जो लड़ाई अधूरी छूट गई थी हमें आशा करनी चाहिए राहुल गांधी उसे आख़िरी अंजाम तक पहुंचाएंगे BJP की IT सेल के साथ मिलकर गोदी मीडिया ने राहुल गांधी को जनता का दुश्मन इसीलिए बनाया,क्योंकि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। 2024 का जनादेश भारतीय लोकतंत्र की संजीवनी है। जिस संजीवनी को लाने वाले अनेक नायक है, लेकिन इसके प्रमुख नायक राहुल गांधी हैं।

राहुल गांधी, मुझे नहीं जानते। मैं राहुल गांधी से कभी नहीं मिला। मैं एकदम मामूली पत्रकार लेखक हूँ। जिसने नौकरी और पूंजी संविधान की मशाल थामे राहुल गांधी, लोकतंत्र को दुष्प्रचार से बचाने की लड़ाई में झोंक दी।

मोदी तीसरी बार सत्ता में आ गए हैं। उन्होंने अपने इरादे अरुंधति राय पर मुक़दमा दर्ज करके स्पष्ट कर दिए हैं। लड़ाई लंबी- मुश्किल है। मैं अपने निर्णय से संतुष्ट, प्रसन्नचित्त हूँ । गुमनाम ही सही, मैं अपनी भूमिका निभाता रहूँगा,चुपचाप।

जनता के लिए आश्वस्ति की बात है, राहुल गांधी नेहरू के रास्ते, गांधी के स्वराज, अम्बेडकर की समता- समानता-बंधुत्व के लिए अनवरत संघर्ष में हैं। ऐसे वक़्त में जब लोकतंत्र और संविधान पर फासीवाद और नफ़रत का गहरा साया है-राहुल गांधी के साथ खड़े होना, एक बार फिर आज़ादी की लड़ाई में सहभागी होना है।

मैं एक अपरिचित लेखक तानाशाही के विरुद्ध इस युद्ध में अपना सब कुछ मिटाकर,राहुल गांधी के साथ खड़ा रहूँगा। यह लड़ाई लंबी है। दुश्मन के पास कौरवों से बड़ी सेना है।कुबेर से अधिक धन है। शकुनि से अधिक छल है। हमारे पास केवल लोकतंत्र और संविधान की मशाल है। हमें जयचंदों से बचना है। हिन्दू-मुसलमान की लड़ाइयों के चक्रव्यूह को वैसे ही तोड़ना है,जैसे इस बार चुनाव में आयोध्या ने तोड़ा।

आज राहुल गांधी का जन्मदिन है। आशा है, राहुल गांधी हर क़ीमत पर संविधान और लोकतंत्र की मशाल की शान बनाए रखेंगे। शुक्रिया,राहुल गांधी !

लेखक-दयाशंकर मिश्र,वरिष्ठ पत्रकार

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