24 जून 2024 को संसद की शुरुआत जबरदस्त रही. इंडिया गठबंधन ने पहले ही दिन जहां हाथों में संविधान लेकर सदन में एंट्री मारी तो नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पाठ पढ़ाया. दरअसल संसद सत्र की शुरुआत से पहले नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं, संविधान की मर्यादाओं का पालन करना चाहते हैं और साथ ही मोदी ने यह भी कहा कि भारत को एक जिम्मेदार विपक्ष की जरूरत है! यही नरेंद्र मोदी की खासियत है और 18वीं लोकसभा में संसद सत्र के पहले ही दिन नरेंद्र मोदी का दोहरा व्यक्तित्व दिखा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर मर्यादाओं के पालन की जिम्मेदारी विपक्ष पर डाल दी. लेकिन देश की याददाश्त इतनी कमजोर भी नहीं कि वह यह भूल जाए कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने किस तरह संसदीय मर्यादाओं को तार-तार कर दिया. मुसलमान, मंगलसूत्र और भैंस का डर दिखाकर वोट मांगने वाले नरेंद्र मोदी विपक्ष को मर्यादाओं का पाठ पढ़ाए तो संवैधानिक पदों की गरिमा पानी मांगने लगती है.
अपने संबोधन में नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि वह सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं, लेकिन मुसलमानों से नफरत को आधार बनाकर 240 सीटें हासिल करने वाले प्रधानमंत्री के दल में कोई मुस्लिम सांसद नहीं हैं. और फिर प्रधानमंत्री ज्ञान देते हैं कि वे सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं. 2014 के बाद की राजनीति में नरेंद्र मोदी ने जिस तरह का नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की, उस पर मीडिया ने कभी कोई सवाल नहीं किया.
और यही वजह है कि नरेंद्र मोदी कभी-भी, कुछ-भी बोलकर निकल जाते हैं और उनके समर्थक छाती पीटते हैं कि उनके नेता से बढ़िया भाषण देने वाला कोई है ही नहीं, लेकिन जो लोग नरेंद्र मोदी के मन में व्याप्त घृणा को पहचानते हैं, वे शर्म के मारे सिर झुका लेते हैं कि प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की सोच कितनी निकृष्ठ है. नरेंद्र मोदी और उनके हमसाए अमित शाह ने पूरे लोकसभा चुनाव में यही दोहराया कि दलित, पिछड़े और आदिवासियों का हक छीनकर मुसलमानों को नहीं देने देंगे... 24 दिन पहले हमारा प्रधानमंत्री देश की 20 फीसदी आबादी के खिलाफ जहर उगल रहा था. ये सब सुनकर अब आश्चर्य नहीं होता... क्षोभ पैदा होता है.
नरेंद्र मोदी ने जिस विपक्ष से जिम्मेदारी की उम्मीद की, उसने क्या किया? 24 जून को संसद सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष के तमाम नेताओं ने संविधान की प्रतियों के साथ संसद भवन के बाहर प्रदर्शन किया. और नरेंद्र मोदी की 'तानाशाही नहीं चलेगी. नहीं चलेगी...' के नारे लगाए. संसद में जब नरेंद्र मोदी बतौर सांसद शपथ लेने के लिए स्पीकर की कुर्सी की ओर बढ़े तो राहुल गांधी ने संविधान को हाथों में उठा लिया. नरेंद्र मोदी ने झटके से विपक्ष की बेंचों की ओर देखा और फिर नजरें फेर लीं.
राहुल गांधी ने जब नरेंद्र मोदी को संविधान की प्रति दिखाई तो उनके बगल में फैजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाले अवधेश पासी और अखिलेश यादव बैठे थे. इसी फैजाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत अयोध्या क्षेत्र पड़ता है. जहां नरेंद्र मोदी ने हिंदुओं के लिए 'मंदिर' का निर्माण कराया है. लेकिन फैजाबाद में समाजवादी पार्टी के दलित उम्मीदवार अवधेश पासी ने बीजेपी को चुनावी मुकाबले में हरा दिया.
अखिलेश यादव ने अपने 37 सांसदों में से एक अवधेश पासी को अपने साथ साए की तरह रखा हुआ है. संसद में समाजवादी पार्टी के सांसद जब हाथों में संविधान लिए सदन में एंट्री कर रहे थे, अखिलेश यादव ने एक हाथ में संविधान और दूसरे से अवधेश पासी का हाथ पकड़ रखा था. अवधेश पासी पहली बार संसद के लिए चुने गए हैं. सपा सुप्रीमो ने लोकसभा में अवधेश पासी को अपने साथ अगली सीट पर बिठाया. जाहिर है कि अखिलेश यादव पॉलिटिकल मैसेजिंग का नया नैरेटिव गढ़ रहे हैं, लेकिन अवधेश पासी का सदन में फ्रंट सीट पर बैठना, बीजेपी को अगले पांच साल बहुत चुभने वाला है.
लोकसभा चुनावों के दौरान ही अखिलेश यादव जब एक मंदिर में दर्शन पूजन के लिए गए तो भाजपा के लोगों ने उस मंदिर को धोया. 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश यादव ने सीएम हाउस खाली किया तो सीएम हाउस धुलवाया गया. फिर 2024 का चुनाव आया तो नरेंद्र मोदी और उनके करीबी लोग संविधान बदलने की बात करने लगे, नागरिकता संशोधन कानून लाने की बात करने लगे. एंटी मुस्लिम बयानबाजी और बुलडोजर राज ने दलितों को सबक दे दिया कि अबकी बार संविधान बचाना है. अयोध्या की जीत, दरअसल ये संदेश है कि देश की 85 प्रतिशत आबादी के लिए राम से पहले संविधान आता है, और यही लोकतंत्र की मर्यादा है.
संसद में जब सांसदों का शपथ ग्रहण चल रहा था, रायबरेली से कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी सदन से बाहर आए और उन्होंने दो टूक लहजे में कहा कि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का संविधान पर आक्रमण हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. और इंडिया गठबंधन ऐसा होने नहीं देगा. कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी मनोवैज्ञानिक तौर पर बैकफुट पर हैं, और अपनी सरकार बचाने में लगे हुए हैं.
निश्चित तौर पर 4 जून के बाद नरेंद्र मोदी सरकार दबाव में है. सबसे बड़ा दबाव पेपरलीक का है. परीक्षाओं के निरस्त होने और टाले जाने से देश के युवा निराश हैं और युवाओं के इस मुद्दे की गूंज संसद में भी सुनाई दी. जब धर्मेंद्र प्रधान शपथ लेने के लिए उठे. विपक्षी बेंचों से नीट... नीट की आवाज सदन में गूंजने लगी. जाहिर है कि नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों के लिए यह आने वाले दिनों की आहट थी. इंडिया गठबंधन ने पहले ही दिन अपने तेवर जाहिर कर दिए हैं...
लेखक नंदलाल शर्मा स्वतंत्र पत्रकार है।
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