ग्राउंड रिपोर्ट- दिल्ली में दलित महिलाएं क्यों बदल रही हैं अपना धर्म, बौद्ध धर्म के प्रति बढ़ा रुझान

ग्राउंड रिपोर्ट- दिल्ली में दलित महिलाएं क्यों बदल रही हैं अपना धर्म, बौद्ध धर्म के प्रति बढ़ा रुझान
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देश में आज कल बौद्ध धर्म पर चर्चा हो रही है। डॉ. भीमराव आंबेडकर की किताब "द बुद्धा एंड हिज धम्मा" के अनुसार बाबा साहब ने 1935 में नासिक में कहा था कि "मैं हिंदू धर्म में पैदा जरूर हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरुंगा नहीं"। इस कथन के लगभग 21 साल बाद 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षा भूमि में उन्होंने अपने छह लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म दीक्षा ली थी।

इसी साल बाबा साहब के विचारों को मानने वाले हजारों लोगों ने पांच अक्टूबर को अशोक विजय दशमी के दिन दिल्ली के अंबेडकर भवन में बौद्ध दीक्षा ली, जिसमें ज्यादातर दलित समुदाय के लोग थे। अब इस घटना के लगभग एक महीना होने वाला है। ऐसे में द मूकनायक की टीम ने कुछ महिलाओं से बातचीत की है। जिन्होंने पांच अक्टूबर के दिन बौद्ध धम्म दीक्षा ली है। आखिर इन महिलाओं ने अपने धर्म को त्याग करते हुए बौद्ध धर्म को क्यों ग्रहण किया। क्योंकि अक्सर ऐसा देखा जाता है कि किसी भी धार्मिक कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है।

परिवार में पहली महिला जिसने बौद्ध दीक्षा ली

ओमवती दिल्ली के जौहरीपुर में एक छोटे से कमरे में अपने परिवार के साथ रहती है।

<strong>ओमवती</strong>
ओमवती

उनकी उम्र लगभग 45 से 50 के बीच होगी। वह अपने घर की पहली महिला है, जिन्होंने पांच अक्टूबर को बौद्ध धम्म की दीक्षा ली है। हमने जब उनसे पूछा कि उन्होंने यह दीक्षा क्यों ली और क्या उनके घरवालों ने कोई आपत्ति की।

इस पर ओमवती का कहना था "अब तो मैं अपने धर्म में आ गई हूं। यही हमारा धर्म है। जो मेरे बाबा साहब ने माना था। वही मैं मान रही हूं। इस मानने से मुझे कौन रोक सकता है।" वह बताती है कि शादी से पहले उसके मायके पर लोग बाबा साहब के बारे में जिक्र करते थे, इसलिए वह उनके बारे में जानती है। लेकिन शादी के बाद ससुरालवाले नहीं मानते थे।

<strong>ओमवती के घर में लगी बाबा साहब की तस्वीर।</strong>
ओमवती के घर में लगी बाबा साहब की तस्वीर।

इसलिए वह ससुरालवालों के अनुसार चलने लगीं। लेकिन अब हिंदू धर्म को त्याग कर बौद्ध धम्म की दीक्षा ली है और वह इस पर ही चलेगी। क्योंकि यहां उन्हें सम्मान मिल रहा है। उनका कहना है इसलिए मेरे घर में भी किसी को मेरे धर्म परिवर्तन करने से कोई परेशानी नहीं है।

दलित लड़कियों के साथ हो रहा है अत्याचार

ओमवती की तरह सरोज ने भी पांच अक्टूबर को दीक्षा ली है। वह बताती हैं कि हमारी दलित बहनों के साथ क्या हो रहा है। यह सबको पता है। वह हाल ही की लखीमपुर खीरी में दो बहनों के साथ बलात्कर कर पेड़ से लटका देने वाली घटना का जिक्र करती हुए कहती है कि हमारी बहन-बेटियों के साथ आए दिन बलात्कार हो रहा है। मंदिर नहीं जाने दिया जाता है। जब हमें मंदिर ही नहीं जाने दिया जाता है, तो हम हिंदू कैसे? बेहतर है ऐसे धर्म का त्याग कर दें जो हमें सम्मान नहीं दे सकता।

हिंदू धर्म में हमें इंसान नहीं समझा जाता है। इसलिए मैं बौद्ध धम्म की दीक्षा ली है। बौद्ध की शिक्षा के अनुसार मानव-मानव एक सामान है। कोई उच्च नहीं कोई नीच नहीं। सब बराबर हैं। अब हमें बराबरी का हक मिल रहा है तो हम क्यों कहीं और जाएं। वह कहती है कि हमारा तो पूरा परिवार भगवान बुद्ध की चरणों में है। यह ही शांति और सम्मान है।

मुंह से तो नहीं बोलते नहीं हमारे साथ भेदभाव करते

हाल के दिनों में देखने में आया है कि दलितों के साथ धार्मिक तौर पर उत्पीड़न की घटनाएं देखने को मिली है। जिसके कारण भी लोगों को झुकाव दूसरे धर्मों के तरफ बढ़ा है। जिसमें बौद्ध धर्म भी है। ममता और उसके बगल में बैठी अंटी इसी बात की चर्चा कर रही है। ममता जौहरीपुर की ही रहने वाली है। वह कहती है कि हमलोग आरएसएस और हिंदू संगठनों को चैलेंज दे रहे हैं। जितना हमारे लोगों को प्रताडि़त किया जाता है। दलित उतना ही बाबा साहब के बारे में जानने लगे हैं और बौद्ध धर्म की ओर बढ़ रहे हैं।

<strong>ममता (बाएं से पहली)</strong>
ममता (बाएं से पहली)

ममता अपना ही उदाहरण देती है वह बताती है कि मैंने भी पांच अक्टूबर को दीक्षा ली है। इससे पहले मैं कई बार हिंदूओं के धार्मिक अनुष्ठानों में जाती थी, लेकिन उनके अंदर के जातिवाद हमें कभी बराबर ही नहीं होने देता है। वह बताती हैं कि महिलाएं धार्मिक कार्यक्रमों में हमारे साथ बैठ जरूर जाती थीं। लेकिन हमें कभी बराबर नहीं समझती थीं। वह बताती है कि यह बात वह मुंह से कहती नहीं है, बल्कि अपने फेस एक्सप्रेशन में हमें यह एहसास दिलाती थीं कि हम छोटी जाति की है। इसलिए मैं ऐसे धर्म में शरण ली जहां सब बराबर है। जहां जात-पात है ही नहीं। वह बताती है कि मेरे साथ मेरे पति ने भी दीक्षा ली है।

अक्टूबर में लखनऊ और जयपुर में ली दीक्षा

आपको बता दें पांच अक्टूबर को दिल्ली में बौद्ध दीक्षा के कार्यक्रम के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में हजारों लोगों ने धम्म दीक्षा ली। देश में बौद्ध धर्म का विस्तार तेजी से हो रहा है। लगातार बढ़ते जातीय उत्पीड़न को देखते हुए कुछ दिन पहले ही राजस्थान में एक गांव के दलितों ने हिंदू धर्म का परित्याग कर दिया और बौद्ध दीक्षा ली। यही नहीं अक्टूबर के महीने में लखनऊ-जयपुर जैसे बड़े शहरों में हजारों की संख्या में लोगों ने बौद्ध धम्म दीक्षा ली है।

जिसको लेकर राजनीति भी हो रही है। दिल्ली में हुए पांच अक्टूबर को लगभग 10 हजार लोगों ने बौद्ध दीक्षा ली थी। जिसमें डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा दी गई 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराया गया था। जिसकी खूब चर्चा हुई। जिसमें भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने इसे हिंदू देवी -देवताओं के अपमान से जोड़ा था। जिसके बाद बौद्ध दीक्षा के कार्यक्रम में शामिल आप के पूर्व समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को इस्तीफा देना पड़ा था। इस इस्तीफे के बाद भी बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार हो रहा है।

मिशन जय भीम जोकि एक सामाजिक संस्थान है। वह लगातार लोगों के बीच बौद्ध शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रहा है। जिनका लक्ष्य है साल 2025 तक एक लाख लोगों को बौद्ध धम्म दीक्षा दिलाना।

लद्दाख में सबसे ज्यादा बौद्ध धर्म के अनुयायी

साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बौद्धों की जनसंख्या 0.70 प्रतिशत है। जिसके हिसाब से इनकी संख्या 85 लाख है। जबकि अन्य कई रिपोर्ट के अनुसार इनकी संख्या इससे अधिक है। जिसकी संख्या छह से सात करोड़ है। जिसमें साल 2019 में केंद्र शासित राज्य बने लद्दाख की 40 प्रतिशत आबादी बुद्धिस्ट है। इस जनगणना के अनुसार भारत में बौद्धों के दो प्रमुख वर्ग है। पहला नव बौद्ध (87 प्रतिशत) और पारंपरिक बौद्ध (13 प्रतिशत) है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार 73 प्रतिशत अंबेडकरवादी बौद्ध है, जिसमें 90 प्रतिशत सिर्फ महाराष्ट्र से हैं। जिसमें महार जाति (दलित) के लोग सबसे ज्यादा है।

नवबौद्धों की संख्या में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के कुछ हिस्सों में पाएं जाते हैं। जबकि पारंपरिक बौद्ध हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।

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