दलित प्रोफेसर रत्न लाल क्यों चाहते हैं AK-56 का लाइसेंस? प्रधानमंत्री को लिखा पत्र

दलित प्रोफेसर रत्न लाल ने AK-56 का लाइसेंस जारी करने के लिए प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
दलित प्रोफेसर रत्न लाल ने AK-56 का लाइसेंस जारी करने के लिए प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
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आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

मेरा नाम रतन लाल है. मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में इतिहास पढ़ाता हूँ. मैं दलित समुदाय से आता हूँ. डॉक्टोरल रिसर्च के विषय के रूप में मैंने राष्ट्रवादी इतिहासकार काशीप्रसाद जायसवाल के योगदान के ऊपर शोध कर कई किताबें प्रकाशित की हैं. पढ़ने-पढ़ाने के अलावा मैं सामाजिक सरोकारों से जुड़े कामों में भी भाग लेता रहा हूँ, जो कि अकादमिक जगत से जुड़े किसी भी व्यक्ति को करना ही चाहिए. इसके साथ ही तमाम टीवी चैनलों यू-टयूब इत्यादि पर भी अपनी बात रखता रहा हूँ, जिनमें से आंबेडकरनामा जैसे चैनल प्रमुख हैं.

अकादमिक जगत से जुड़े होने के कारण सरकार और सामाजिक गतिविधियों की समीक्षा करना, आलोचना करना और उन पर टिप्पणी करना मेरा काम है. इसी क्रम में यदा-कदा आपकी सरकार की भी मैंने आलोचना की है. यह काम मैं पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के समय भी करता रहा हूँ, उस सरकार की भी कई नीतियों की जमकर आलोचना की है. लेकिन तब और अब में एक अंतर है – आपकी सरकार की आलोचना करने और विभिन्न समसामयिक सामाजिक-धार्मिक विषयों पर टिप्पणी करने के कारण कई असामाजिक तत्व मुझें धमकियां देना शुरू कर देते हैं. कई दफा यह सिलसिला मेरी हत्या करने की धमकी तक पहुँच जाता है.

एक दफा मुझे ऐसे ही एक मामले में मौरिस नगर थाने में शिकायत भी दर्ज करानी पड़ी थी. शुरू में इन बातों को मैं उतनी गंभीरता से नहीं लेता था, लेकिन हाल ही में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रवि कान्त चन्दन, जो कि मेरी ही तरह दलित समुदाय से आते हैं, पर असामाजिक संगठनों और कथित छात्र संगठनों के सदस्यों द्वारा किये गए हमले के बाद इस पत्र को लिखना आवश्यक हो गया है. मुझे याद आ रहा है कि आपने एक दफा कहा था "गोली मारनी है तो मुझे मार दो, मेरे दलित भाइयों पर हमले मत करो". ऐसा लगता है कि आपकी राजनीति के समर्थक भी आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं. आपके द्वारा इतना गंभीर वक्तव्य देने के बाद भी वे दलितों पर हमले करना जारी रखे हुए हैं.

मैं भी आपकी तरह ही भारत को युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के रास्ते पर देखना चाहता हूँ, ले जाना चाहता हूं. माननीय ये तो आप भी स्वीकार करेंगे कि आत्मरक्षा का अधिकार नैसर्गिक है और हमारे देश का कानून भी मुझे यह अधिकार देता है. यदि हमलावर कुछ संख्या में आयें तो लाठी-डंडे की सहायता से इनसे आत्मरक्षा की जा सकती है, लेकिन ये झुण्ड बनाकर आते हैं. अतएव बिना उचित हथियारों के इनसे अपनी रक्षा करना मुश्किल जान पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि उचित प्रबंध किया जाए.

मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि मुझे AK 56 रायफलधारी दो अंगरक्षक मुहैया कराये जाएँ. यदि यह संभव नहीं है तो उचित प्राधिकारी को निर्देश देकर मेरे लिए AK 56 रायफल का लाइसेंस जारी किया जाए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर झुण्ड में आने वाले इन असामाजिक तत्वों से अपने और अपने परिवार के प्राणों की रक्षा कर सकूं. इस हथियार की क़ीमत काफी अधिक होगी, जो कि मेरे जैसे शिक्षक की आमदनी में खरीद पाना संभव नहीं होगा.

अत: आपसे अनुरोध है कि लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को जल्द ही शुरू किया जाए, ताकि मैं अपने शोषित समाज के लोगों से एक-एक-दो-दो रुपये का सहयोग लेकर जरूरी रकम का इन्तजाम कर सकूँ. इसके साथ ही आपसे अनुरोध है कि मेरे लिए हथियार चलाने की कमांडो ट्रेनिंग का भी इन्तेजाम किया जाए, ताकि मौका आने पर आपको निराश न कर सकूँ. मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि आप इस पत्र की गंभीरता को समझेंगे.

धन्यवाद
भवदीय,
डॉ रतन लाल, एसोसिएट प्रोफ़ेसर
हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
17 May 2022
प्रति :

  1. भारत के महामहिम राष्ट्रपति
  2. माननीय गृह मंत्री, भारत सरकार
  3. अध्यक्ष अनुसूचित जाति आयोग, भारत सरकार

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