भोपाल। अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के लिए 'हरिजन' शब्द को लिखने बोलने पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध के बाद भी मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (पीईबी) ने भर्ती विज्ञापन में आपत्तिजनक शब्द का उपयोग किया है। इस चूक के बाद समाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्य शासन की शाखा पीईबी के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही के साथ विज्ञापन को तत्काल संशोधित करने की मांग की है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारत सरकार के सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय शास्त्री भवन नई दिल्ली द्वारा जारी एक पत्र के अनुसार आधिकारिक रूप से अनुसूचित जातियों के संबंध में उक्त शब्द के उपयोग पर पाबंदी के निर्देश भी दिए थे। बावजूद इसके आपत्तिजनक शब्द को उपयोग में लिया जा रहा है। हाल ही में कर्मचारी चयन मंडल, भोपाल के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी और ग्रामीण उदयान विस्तार अधिकारियों के पदों पर भर्ती का विज्ञापन जारी किया गया है, जिसकी परीक्षा 15 जुलाई को आयोजित की जानी है। पीईबी के इसी भर्ती विज्ञापन में पैरा 9.5 में अनुसूचित जाति वर्ग को आपत्तिजनक शब्द से सम्बोधित किया जा रहा है। विवादित शब्द को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्णरूप से प्रतिबंधित किया है। वहीं इस शब्द के उपयोग करने पर आपराधिक मामला भी पंजीबद्ध करने के निर्देश है, लेकिन मध्यप्रदेश शासन के पीईबी ने भर्ती विज्ञापन में इसका उपयोग किया है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) के महासचिव एसएल सूर्यवंशी ने बताया कि आपत्तिजनक शब्द पर प्रतिबंध के बाद भी पीईबी ने इसे विज्ञापन में शामिल किया है। हम इसकी कड़ी निंदा करते है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में मुख्य सचिव को पत्र लिखकर विज्ञापन में संशोधन करने और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने की मांग करेंगे।
आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील अस्तेय ने कहा कि पीईबी की इस चूक को नजरअंदाज करना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। उन्होंने कहा कि हम राज्य सरकार से मांग करते है कि इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित कर जांच की जानी चाहिए।
इधर, द मूकनायक ने मध्यप्रदेश शासन के कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेशचन्द्र शर्मा से बातचीत की, समिति के अध्यक्ष ने कहा कि यदि पीईबी ने कोई भूल-चूक से ऐसा किया है, तो हम विज्ञापन में संशोधन कराने के निर्देश देंगे। वहीं जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने के सवाल पर अध्यक्ष रमेशचन्द्र शर्मा ने जांच कराने की बात कही है।
हरिजन शब्द का उपयोग है अपराध
विधि विशेषज्ञ और अधिवक्ता मयंक सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद आपत्तिजनक शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध है। ऐसे कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति वर्ग के व्यक्ति को प्रतिबंधित शब्द से संबोधित करता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत मामला पंजीबद्ध किया जा सकता है। कानून के मुताबिक, अगर कोई किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के अधिकारों का हनन करता है तो वह कम से कम 6 महीने और ज्यादा से ज्यादा 7 साल तक के कारावास से दण्डित किया जा सकता है।
(नोट- समाचार में हरिजन शब्द का उपयोग सरकार की अनदेखी को उजागर करने के लिए किया गया है। किसी भी जाति व समुदाय विशेष की भावनाओं को आहत करना मकसद नहीं है।)
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