नई दिल्ली। गुजरात में महीसागर जिले की कलेक्टर नेहा कुमारी दुबे के बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अपने दफ्तर में उन्होंने एक दलित लॉ स्टूडेंट के सामने विवादित बयान दिया। जिसका वीडियो वायरल हो रहा है।
वायरल वीडियो में, कलेक्टर ने 90 प्रतिशत एट्रोसिटी मामलों को ‘ब्लैकमेलिंग’ का साधन बताया और कहा कि ज्यादातर महिलाएं भी 498A के तहत फर्जी केस करती हैं। इसके अलावा उन्होंने वकीलों पर भी टिप्पणी की, जिसमें उन्हें "चप्पल खोलकर मारने जैसे" शब्दों का इस्तेमाल किया। इस बयान ने सामाजिक और राजनीतिक हलकों में काफी रोष पैदा कर दिया है। जिसके कारण दलित समुदाय में गहरी नाराजगी है। अब लोग सोशल मीडिया के जरिए कलेक्टर पर एट्रोसिटी की कार्रवाई करने और निलंबित करने की मांग कर रहे हैं।
कांग्रेस नेता और विधायक जिग्नेश मेवाणी ने इसे दलित और आदिवासी समुदायों का अपमान बताया है। उन्होंने ट्वीट कर मांग की कि यदि गुजरात सरकार इस बयान से सहमत नहीं है तो उन्हें तुरंत कलेक्टर नेहा दुबे को सस्पेंड कर कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही, मेवाणी ने कलेक्टर के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत केस दर्ज करने की मांग की है।
गुजरात अनुसूचित जाति कांग्रेस के अध्यक्ष हितेंद्र पीठारिया ने भी पुलिस थाने में जाकर कलेक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की। पीठारिया ने ‘द मूकनायक’ से बात करते हुए कहा कि जब प्रशासनिक पद पर बैठे लोग ऐसी जातिवादी मानसिकता से ग्रसित होंगे तो आम दलितों और आदिवासियों के साथ कैसा व्यवहार होगा, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कलेक्टर नेहा कुमारी को तुरंत निलंबित कर उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाना चाहिए।
दरअसल, विजय परमार, जो कि एक दलित लॉ स्टूडेंट हैं, उन्होंने इस घटना को लेकर बताया कि वह अपनी एक शिकायत के सिलसिले में कलेक्टर के पास गए थे। उन्होंने कहा कि कलेक्टर ने 90 प्रतिशत एट्रोसिटी मामलों को ब्लैकमेलिंग का हथकंडा करार दिया। विजय का कहना है, कि यह बयान कलेक्टर की जातिवादी मानसिकता को दर्शाता है और इससे दलितों के प्रति उनकी दुर्भावना साफ झलकती है।
नेहा दुबे के बयान के बाद, गुजरात में दलित अत्याचार के बढ़ते मामलों पर एनसीआरबी की रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है। 2022 में दलित अत्याचार के 57,582 मामले दर्ज किए गए, जो साल 2021 की तुलना में 13.1% अधिक हैं। गुजरात में 2022 में दलितों के खिलाफ 1,425 मामले दर्ज किए गए, जिसमें अहमदाबाद में सबसे अधिक 189 मामले दर्ज किए गए हैं। इन मामलों में हत्या, बलात्कार और गंभीर चोट के मामले भी शामिल हैं। इस प्रकार, यह दावा करना कि अत्याचार के मामले मात्र ब्लैकमेलिंग हैं, एनसीआरबी के आंकड़ों के विपरीत है, जो बताता है कि दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
गुजरात में इस मामले को लेकर विपक्षी दल भी सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस और अन्य दलों ने भी कलेक्टर के खिलाफ तत्काल निलंबन और जांच की मांग की है। विपक्ष का कहना है कि यदि इस तरह के उच्च पद पर बैठे अधिकारी ही जातिगत भेदभाव करेंगे, तो निचले स्तर पर न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ होगा। साथ ही, एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(R) के तहत मामला दर्ज करने की मांग भी की गई है।
इधर, कलेक्टर नेहा कुमारी दुबे ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए अपना पक्ष रखते हुए दावा किया की जो भी आरोप विजय ने लगाए वह निराधार है। उन्होंने कहा, जिला प्रशासन इस संबंध में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपना पक्ष रख चुका है।
सामाजिक संगठनों का मानना है, की वर्तमान घटनाक्रम दर्शाता है कि कुछ प्रशासनिक अधिकारियों में दलितों के प्रति संवेदनशीलता की कमी बनी हुई है। समाज में दलितों के खिलाफ अपराधों के बढ़ते मामलों और सरकारी अधिकारियों द्वारा की जाने वाली जातिगत टिप्पणियाँ चिंता का विषय हैं। ऐसे में यह मामला दर्शाता है कि सामाजिक न्याय और समानता के प्रति केवल कानून नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों की मानसिकता में भी बदलाव की आवश्यकता है।
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