मध्य प्रदेश: श्मशान के रास्ते पर सवर्णों का कब्जा, खेतों पर अंतिम संस्कार कराने को मजबूर दलित परिवार

विदिशा जिले की ग्राम पंचायत करेला का मामला, मांग के बाद भी नहीं हुई सुनवाई
मध्य प्रदेश: श्मशान के रास्ते पर सवर्णों का कब्जा, खेतों पर अंतिम संस्कार कराने को मजबूर दलित परिवार
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भोपाल। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के एक गाँव में श्मशान के रास्ते पर सवर्णों के अवैध कब्जे के कारण दलित समाज के लोग अपने ही खेतों में अंतिम संस्कार करने को मजबूर है। मामला विदिशा जिला के पंचायत करेला के परासीखुर्द गांव का है। गांव के दलित समाज के नन्नूलाल अहिरवार के निधन के बाद परिवार के लोग शव को खाट पर रखकर खेत ले जा रहे हैं। गांव में श्मशान है, लेकिन दलित श्मशान की तरफ नहीं जा सकते। इनके रास्ते पर सवर्णों ने कब्जा कर फसल बो दी है। दलित समाज के लोगों ने बताया की गाँव में श्मशान का अन्य कोई रास्ता नहीं होने और सवर्णों से विवाद के कारण वह शवों का अंतिम संस्कार अपने ही निजी खेतों पर करने के लिए मजबूर हैं। 

द मूकनायक से बातचीत करते हुए पीड़ित परिवार के सदस्य विवेक अहिरवार ने बताया कि श्मशान के लिए रास्ता नहीं है। लोगों ने रास्ते पर कब्जा कर खेती कर रहें है। हम किसी के खेत से शव लेकर कैसे गुजर सकते है? इसलिए अपने निजी खेतों में ही अंतिम संस्कार करते हैं।

श्मशान की भूमि पर मनबढ़ों का कब्जा

पिछले महीने ही राजस्व विभाग की टीम ने श्मशान की भूमि का सीमांकन किया था। यहां पटवारी और आरआई ने श्मशान भूमि की तीन बीघा और उससे सटे हुए कब्रिस्तान की दो बीघा जमीन चिंहित की थी। करेला ग्राम पंचायत के सरपंच हिम्मत सिंह राजपूत ने बताया था कि पूर्व में यहाँ कब्रिस्तान था। हालांकि यहां अब कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता। लेकिन राजस्व विभाग के लैंड रेकॉर्ड में कब्रिस्तान और मुक्तिधाम (श्मशान) की कुल पांच बीघा जमीन है। जिस पर गाँव के मनबढ़ किस्म के लोगों ने कब्जा कर लिया है। 

दलितों के घरों तक भी नहीं है रास्ता

ग्राम पंचायत करेला के गाँव परासीखुर्द में दलित बस्ती तक जाने के लिए भी रास्ता नहीं है। यहाँ जाने के लिए लोग खेतों से गुजरते है। बस्ती तक सिर्फ पैदल ही पहुँचा जा सकता है। यहां दो और चार पहिया वाहन आने-जाने का रास्ता नहीं हैं। गाँव के निवासी प्रीतम अहिरवार ने द मूकनायक को बताया कि उनकी बस्ती तक जाने के लिए रास्ता नहीं है। कोई बीमार हो जाए या फिर किसी को कहीं जाना हो। तो वह पहले गाँव तक पैदल ही जाता है, रास्ता नहीं है। बारिश के मौसम में यह पैदल चलना भी मुश्किल हो रहा है।

सरकार ने पट्टे दिये पर, रास्ते का पता नहीं

परासी खुर्द गाँव में दलितों को सरकार ने जमीन के पट्टे तो दिए थे। लेकिन जहाँ पट्टे दिए वहाँ से रास्ता का कोई अतापता नहीं है। सरपंच हिम्मतसिंह ने बताया कि अनुसूचित जाति वर्ग के भूमिहीनों को सरकार ने 40 साल पहले पट्टे दिए थे। आज यहाँ बस्ती बन गई है। जो गाँव से करीब डेढ़ किमी की दूरी पर है। लेकिन आम रास्ता नहीं है। खेतों से होकर ही यहाँ लोग पहुँच रहे है।

नहीं हो रही सुनवाई

बस्ती और श्मशान के रास्ते के लिए दलित समाज के लोग कलेक्टर सहित प्रशासन के सभी लोगों को मांग पत्र दे चुके हैं। गाँव के निवासी विवेक अहिरवार ने बताया की पिछले आठ सालों से वह रास्ते की मांग को लेकर प्रशासन आला अफसरों से गुहार लगा चुके हैं। लेकिन उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कोई सुनवाई नहीं कर रहा। "सांसद, विधायक को भी कई बार ज्ञापन दिए पर कोई कार्रवाई नहीं करता", उन्होंने कहा।

सीमांकन के बाद भी मुक्त नहीं हुआ रास्ता

द मूकनायक से बातचीत करते हुए सरपंच हिम्मत सिंह राजपूत ने बताया कि श्मशान के रास्ते पर गाँव के कुछ लोगों का कब्जा है। रास्ता कच्चा होने के कारण लोगों ने यहाँ फसल की बो दी है। सरपंच ने बताया श्मशान की जमीन पर सनमान सिंह और नीतम शर्मा के परिवार का कब्जा है। कबजेदारों ने इसमें फसल बो रखी है। तहसीलदार से शिकायत की गई है। करीब महीने भर पहले रास्ते का सीमांकन कराया गया था जिसमें रास्ता निकल आया था। मगर लोगों ने चिन्ह हटा कर फिर से कब्जा कर लिया है।

मामले में द मूकनायक ने विदिशा कलेक्टर उमाशंकर भार्गव से बातचीत करने के लिए फोन लगाया पर बात नहीं हो सकी।

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