यूपी: दलित बेटी की हत्या, न्याय के लिए संघर्ष कर रहे पिता पर दो साल में चार बार जानलेवा हमला! ग्राउंड रिपोर्ट

8 दिसंबर 2021 को घर से निकली युवती दोबारा कभी नहीं लौटी। दो महीने बाद उसकी लाश एक आश्रम के सीवर टैंक में मिली थी। आज उस बेटी के माता-पिता उसके कातिलों को सजा दिलाने के लिये कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे हैं।
मुकेश गौतम के घर के बाहर पिछले 2 साल से पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात हैं.
मुकेश गौतम के घर के बाहर पिछले 2 साल से पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात हैं.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक
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उन्नाव। कांशीराम कॉलोनी के तीसरे माले पर एक छोटा सा मकान, कमरों में करीने से सजाए गए गुलदस्ते, टैडी बियर और रंगोली यह बता रही थी कभी यह घर बेटी की हंसी-खुशियों से गुलजार रहा होगा। जैसा बेटी कमरों को सजा कर घर से निकली थी सब आज भी वैसा ही दिखता है। माता-पिता ने भी कोई भी सामान इधर से उधर नहीं किया। यह 22 साल की अर्चना गौतम (बदला नाम) की दुनिया थी। जहां वो सरकारी नौकरी कर अपने परिवार को आर्थिक मुसीबतों से बाहर निकालने का ख़्वाब देखती थी।

अर्चना के पिता जूता फ़ैक्ट्री में मजदूर थे। घर की आमदनी कम होने के कारण परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी अर्चना पर आ गई और वह घर की सबसे बड़ी बेटी होने के नाते न चाहते हुए भी उसने कपड़ों की एक दुकान पर पांच हज़ार रुपए महीना की नौकरी कर ली। उसे क्या पता था कि यह नौकरी उसके लिए काल बन जाएगी। कपड़ा दुकान मालिक की नियत उस पर बिगड़ गई। हालांकि, अर्चना ने वह काम छोड़ दिया, लेकिन दुकान मालिक ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वह सबकुछ छोड़कर लखनऊ तैयारी करने चली गई। वहां से 7 दिसम्बर 2021 को लौटी थी। 8 दिसंबर 2021 को घर से निकली और फिर कभी नहीं लौटी। दो महीने बाद उसकी लाश एक आश्रम के सीवर टैंक में मिली।

पीड़ित की छोटी सी परचून की दुकान, जो घर के बाहर मौजूद है.
पीड़ित की छोटी सी परचून की दुकान, जो घर के बाहर मौजूद है.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

आरोप है कि युवती का अपहरण कर हत्या कर दी गई। उसकी लाश को सीवर टैंक में डाल दिया गया था। आज उस बेटी के माता-पिता उसके कातिलों को सजा दिलाने के लिये कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे हैं। इस दौरान दो साल में उनपर चार बार जानलेवा हमला हो चुका है।

मामले की पड़ताल करने द मूकनायक की टीम लखनऊ से उन्नाव जिले पहुंची थी। जिला न्यायालय रोड की तरफ बढ़ते ही बाएं तरफ का एक सर्पिलाकार रास्ता कांशीराम कॉलोनी को जाता है। यह कालोनी दलितों के लिये बसाई गई है। इसी कालोनी में उस बेटी का घर मौजूद है। जब टीम उनके घर पहुंची तो एक किनारे दो असलहाधारी पुलिसकर्मी एक टिन से बनाई छांव के नीचे हीटर के पास बैठे हुए थे। यह पुलिसकर्मी जिला प्रशासन द्वारा इस परिवार की सुरक्षा में लगाए गए हैं। इसके ठीक सामने एक लकड़ी की छोटी सी दुकान है। अब इसी दुकान से घर का खर्चा और बेटी को न्याय दिलाने की लड़ाई यह परिवार लड़ रहा है।

एक छोटी सी कद का अधेड़ उस दुकान पर बैठा हुआ था। उसके चेहरे की झुर्रियां और आंखों के नीचे का कालापन बता रहा था कि वह किस परेशानी से गुज़र रहा है। द मूकनायक ने उनसे बातचीत की। उन्होंने अपना नाम राकेश गौतम (बदला नाम) बताया। उस दिन का किस्सा बताते हुए उन्होंने कहा, "दुकान मालिक की बेटी पर बुरी नियत थी। मेरी बेटी इसे भांप गई थी, लेकिन घर में भुखमरी के हालात थे। एक दिन वो काम से लौटी तो बहुत गुमशुम थी। उसके साथ बलात्कार हुआ था। उसने मुझे बताया, लेकिन मैं पुलिस से शिकायत करने की हिम्मत ना जुटा सका। यह सब कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन से कुछ दिनों पहले की बात है।"

पीड़िता के परिजन मुकदमे से सम्बंधित कागजों को सहेजते हुए.
पीड़िता के परिजन मुकदमे से सम्बंधित कागजों को सहेजते हुए.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

गौतम बताते हैं, "मैंने बेटी का काम छुड़ा दिया और उससे कहा कि घरों में चूल्हा-बर्तन करके ख़र्च चला लूंगा, लेकिन तुम परेशान ना हो। लेकिन दुकान मालिक ने अर्चना का पीछा नहीं छोड़ा। वह बार-बार उसे फ़ोन करके धमकी देता, पैसों का लालच देता और अपने पास आने के लिए कहता था। वह नंबर बदलती तो नए नंबर पर फ़ोन करता था। बहुत परेशान होकर वो लखनऊ रहने चली गई और वहीं परीक्षा की तैयारी करने लगी।"

आपको बता दें कि यह दुकान पूर्व मंत्री फतेह बहादुर सिंह के बेटे रजौल सिंह की थी।

पिता आगे बताते हैं, "रजौल का हौसला बढ़ता गया और वो बेटी को परेशान करता रहा। 7 दिसंबर को वो लखनऊ से लौटी थी और 8 दिसंबर को सुबह 11 बजे घर से निकली और फिर वापस ज़िंदा नहीं लौटी।"

पीड़ित परिजन ने पेपरों में छपी हुई खबरों की हर एक कटिंग को संभाल के रखा है.
पीड़ित परिजन ने पेपरों में छपी हुई खबरों की हर एक कटिंग को संभाल के रखा है.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

सीएम योगी तक लगाई गुहार

गौतम कहते हैं, "8 दिसंबर को मैं पुलिस चौकी गया था। मुझे राजौल सिंह पर शक था। इसलिये मैंने लिखित शिकायत की थी, लेकिन मेरी शिकायत सभी ने अनसुना कर दिया। 9 दिसंबर थाने गया। गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही, लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई। 10 दिसंबर को फिर थाने गया। इस बार पुलिस ने बेटी की गुमशुदगी की एफ़आईआर तो दर्ज कर ली, लेकिन शिकायत में नामित अभियुक्त रजौल सिंह का नाम नहीं लिखा। अपनी बेटी की तलाश में दर्जनों बार थाने, सीओ दफ़्तर और एसएसपी दफ़्तर के चक्कर काटे, लेकिन आरोपी से पूछताछ तक नहीं की गई। मैंने कई बार उत्तर प्रदेश सरकार के जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई। लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। हताश होकर मैं और मेरी पत्नी लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास पहुंचे और आत्मदाह का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने रोक दिया। हालांकि इस बार भी कुछ नहीं हुआ। इसके बाद हम पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने पहुंचे, लेकिन हमारी किसी से मुलाकात नहीं हो सकी।"

गौतम आरोप लगाते हुए कहते है, "इस दौरान थाने की पुलिस हम पर ख़ामोश होने और घर बैठने का दबाव बनाती रही। हमसे कहा जाता तुम्हारी बेटी किसी के साथ भाग गई है, चुपचाप अपने घर पर बैठो।"

मृतिका का वह कमरा जिसे उसने हैंड आर्ट क्राफ्ट से सजाया था.
मृतिका का वह कमरा जिसे उसने हैंड आर्ट क्राफ्ट से सजाया था.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

आत्मदाह करने की कोशिश के बाद हरकत में आई पुलिस

आख़िरकार जब 24 जनवरी को अर्चना के माता और पिता ने अखिलेश यादव के काफिले के आगे कूदने का प्रयास किया। इसके बाद उन्नाव पुलिस हरकत में आई और देर रात राजौल सिंह को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया। इसी दिन एफ़आईआर में आरोपी का नाम जोड़ा गया।

पीड़ित परिवार ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए

अर्चना के पिता स्थानीय चौकी इंचार्ज प्रेम प्रकाश दीक्षित पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, "वो शुरू से ही अभियुक्त से मिले थे। जब हम शिकायत लेकर गए थे तब उन्होंने पूजा का मोबाइल लिया और उसकी कॉल हिस्ट्री और व्हाट्सएप चैट डिलीट कर दिए। मैंने उसकी कॉल हिस्ट्री का स्क्रीनशॉट ले लिया था। थाने में दी शिकायत में इसका ज़िक्र किया और रजौल सिंह पर बेटी को अगवा करने का आरोप लगाया। लेकिन पुलिस ने हमारे आरोपों की अनदेखी की।"

सीवर टैंक में बरामद हुई लाश

मिली जानकारी के मुताबिक 8 दिसंबर 2021 को लापता हुए अर्चना की लाश उन्नाव से करीब पांच किलोमीटर दूर बने एक धार्मिक आश्रम से सटे एक प्लाट में बने टॉयलेट टैंक से 11 फरवरी को पुलिस को मिली थी। पूर्व मंत्री फतेह बहादुर सिंह परिवार के इस आश्रम के बाहर भगवान की बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं और भीतर कई मंदिर हैं। आश्रम के बाहर खड़े होकर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि धर्म के इस परिसर में ऐसा वीभत्स हत्याकांड हुआ होगा।

युवती के पिता कहते हैं कि लाश मिलने और सच सामने आ जाने के बाद भी पुलिसकर्मियों पर कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई है। हम ये मानते हैं कि हमारी बेटी के अपहरण और हत्या की साज़िश में स्थानीय पुलिस कर्मचारी भी शामिल हैं। उनका नाम मुकदमे में दर्ज होना चाहिए। जब तक लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों का नाम मुकदमे में नहीं जुड़ेगा हम संघर्ष करते रहेंगे।

"पुलिस अगर ईमानदारी से काम करती तो जिंदा होती बेटी"

अर्चना के परिजनों का मानना है कि उसे अगवा किए जाने के तुरंत बाद नहीं मारा गया होगा बल्कि वो कुछ दिन ज़िंदा रही होगी। उन्हें आशंका है कि उसके साथ रेप या गैंगरेप भी किया गया है। यदि पुलिस ने हमारी बेटी को खोजने का प्रयास किया होता तो वो शायद ज़िंदा ही मिल जाती। वहीं जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों का मानना था कि अर्चना की हत्या अपहरण के दिन ही हो गई थी।

पूजा के शव का दो बार हुआ पोस्टमार्टम

अर्चना के शव का दो बार पोस्टमार्टम किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ शव 45 दिन पुराना हो सकता है। हालांकि उनके लापता होने के 65वें दिन उसकी लाश मिली थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ये स्पष्ट नहीं हो सका है की बलात्कार हुआ था या नहीं। हालांकि इस मामले का मुकदमा लड़ रहे अधिवक्ता का कहना है कि, "गैंगरेप या रेप की पुष्टि सिर्फ 72 घण्टे के भीतर ही हो सकती है। लाश लापता होने के 63 दिन बाद मिली थी। लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी। इस कारण पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हो सकी है। हालांकि इस वीभत्स हत्याकांड के बाद कोर्ट स्वतः मान लेती है कि ऐसा किया गया होगा।"

आर्थिक मदद से दोगुना हो गया खर्चा

राकेश गौतम बताते हैं, "मुकदमा दर्ज होने के बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग से चार लाख 24 हजार की आर्थिक सहायता मिली। उससे दोगुना राशि मुकदमा लड़ने में चली गई। एक-एक कागज का पैसा जोड़ लिया जाये तो भी लाखों हो जाता है। मुझ पर दबाव बनाने के लिये मुझ पर कई बार हमला हुआ। मेरे खिलाफ फर्जी मुकदमे भी लिखे गए हैं।"

अब तक चार बार हो चुका जानलेवा हमला, कुल पांच एफआईआर

गौतम बताते हैं, "मेरे ऊपर 2022 में कई हमले हुए हैं। इस मामले में कुल 4 अलग-अलग मुकदमे दर्ज किये गए हैं। अब इनका मुकदमा लड़ने का पैसा कहां से लाऊंगा। घर कैसे चलेगा इन बातों की चिंता मुझे सताती है। 6 महीना पहले राजौल सिंह जमानत पर छूटकर बाहर आ गया है। अब वह मुकदमे में 20 लाख रुपये लेकर चुप बैठने की धमकी देता है। इसके साथ ही मेरे वकील को भी केस छोड़ने की धमकी दे रहा है।"

"'पहले मेरे घर पर चार पुलिसकर्मी सुरक्षा में दिये गये थे। अब सिर्फ एक गनर मिला हुआ है। इसके अतिरिक्त मेरे घर के सामने पुलिस की एक पिकेट बना दी गई है। मेरे वकील को भी पुलिस सुरक्षा की जरूरत है। दो साल बीत गया है, लेकिन अब तक कोर्ट में सुनवाई ही चल रही है। मेरे वकील ने कोर्ट में रिट डाली है। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश ने एक साल में मामले के निस्तारण के आदेश दिए हैं," पीड़ित पिता ने कहा.

इस मामले में अपर पुलिस अधीक्षक उन्नाव अखिलेश सिंह ने बताया पीड़ित पक्ष से यदि कोई तहरीर प्राप्त होती है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

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