यूपी: दलित को हिरासत में रखकर धन उगाही करने का आरोप, युवक ने थाने में लगाई फांसी!

आरोप है कि पुलिस ने युवक को कई दिन थाने में पुलिस अभिरक्षा में रखा, जिससे वह काफी तनाव में था। पुलिस ने पूछताछ के बाद न तो उसे जेल भेजा न उसे रिहा किया।
सांकेतिक तस्वीर
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उत्तर प्रदेश। कासगंज जिले में एक दलित युवक ने थाने में फांसी लगा ली। पुलिस युवक को एक युवती के लापता होने पर पूछताछ के लिए थाने लेकर गई थी। परिजनों का आरोप है कि युवती को उसी दिन बरामद कर पुलिस को सुपुर्द कर दिया गया था। इसके बावजूद भी पुलिस ने उसे असंवैधानिक तरीके से हिरासत में रखा था।

परिजनों का यह भी आरोप है कि पुलिस युवक को छोड़ने के बदले घूस की मांग कर रही थी। पैसे न देने पर युवक को अवैध तरीके से हिरासत में रखकर टॉर्चर कर रहे थे। युवक ने पुलिस की प्रताड़ना से तंग आकर यह कदम उठाया।

थाने में युवक द्वारा आत्महत्या की खबर से नाराज परिजनों ने जमकर हंगामा काटा। भीड़ को हटाने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। गाँव में तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। युवक को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कार्य गया है। परिजनों के मुताबिक युवक कोमा में है। परिजनों की तहरीर पर इस मामले में कुछ पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने इस मामले को पूरी तरह अमानवीय और असंवैधानिक करार देते हुए पुलिकर्मियों पर कार्रवाई की मांग की है।

कासगंज जिले के अमांपुर थाना क्षेत्र में यह घटना सामने आई। द मूकनायक से बातचीत करते हुए युवक के भाई जय शिव ने पूरी घटना शुरुआत से बताई। जय शिव बताते हैं, "वह मेरी बुआ का लड़का गौरव है। मेरी बुआ रसलुआ सुलहपुर गाँव में रहती हैं। गाँव की रहने वाली लड़की ऋचा से मेरा भाई प्यार करता था। वह दोनों आपसी रजामंदी से भाग गए थे। लड़की के परिजनों ने इसका विरोध किया और थाने में शिकायत की। पुलिस ने जब हमें यह जानकारी दी तो हमने दोनों को घर आने की बात कही। जब दोनों आये तो ऋचा को पुलिस के सुपुर्द कर दिया, और भाई को भी थाने ले गए।"

शिव आगे बताते हैं, "मेरे भाई पर ऋचा को अगवा करने के आरोप लगे थे, लेकिन सच यह है कि दोनों आपस में प्यार करते थे। यह बात ऋचा ने खुद कबूल की। इसकी हमारे पास रिकार्डिंग भी मौजूद है। जब हमने पुलिस को भाई को सौंपा उसके बाद से वह घर नहीं लौटा। पुलिस से हम लाख मिन्नते करते रहे, लेकिन पुलिस बिना पैसा लिए उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी।" परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने उसे कई दिन थाने में पुलिस अभिरक्षा में रखा था। जिससे वह काफी तनाव में था। पुलिस ने पूछताछ के बाद न तो उसे जेल भेजा न उसे रिहा किया। पुलिस पर परिजनों ने प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है।

शुक्रवार तड़के युवक ने थाने के शौचालय में फंदा लगा लिया। जिससे उसकी हालत गंभीर हो गई। तत्काल ही पुलिसकर्मी उसे उपचार के लिए जिला अस्पताल लेकर पहुंचे, यहां उसकी हालत को गंभीर देख अलीगढ़ के लिए रेफर कर दिया गया। उधर इस बात की भनक लगते ही परिवार के लोगों में आक्रोश फैल गया। आक्रोशित लोगों ने थाना पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया। ये देख पुलिसकर्मियों के पसीने छूट गए। इस पथराव में एक पुलिसकर्मी घायल हो गया। बवाल बढ़ते देख पुलिस अधिकारियों सहित कई थानों की पुलिस फोर्स मौके पर पहुंच गई। पुलिस ने बलप्रयोग कर लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद स्थिति पर काबू पाया जा सका। वहीं आत्महत्या करने वाले युवक की हालत भी गंभीर बताई जा रही है। 

परिजनों का आरोप है कि युवती के परिजन पुलिस के साथ मिलकर उसे लगातार यातनाएं दे रहे थे। फिलहाल इस घटना के बाद पुलिस ने परिजनों कि तहरीर पर वीरपाल, श्याम सिंह और अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ आईपीसी की धारा-323 (जानबूझकर किसी को चोट पहुँचाना) और 343 (तीन दिन से अधिक के लिए कैद में रखना) के तहत मुकदमा दर्ज किया है।

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने इस मामले को पूरी तरह अमानवीय और असंवैधानिक बताया है। उन्होंने बताया कोई भी पुलिकर्मी एक व्यक्ति को तीन दिन से अधिक थाने पर नहीं बैठा सकता। यदि किसी व्यक्ति को थाने लाया जाता है, तो इसकी जानकारी संबंधित अधिकारी को देनी होती है। अथवा 24 घंटे के भीतर सक्षम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। यदि कोई पुलिकर्मी इसका उललंघन करता है तो वह आईपीसी की धारा में दंड का पात्र है। यह घटना दुखद है, ऐसे पुलिकर्मियों पर कार्रवाई की मांग करता हूँ।

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