जयपुर - बारां जिले के एक राजकीय विद्यालय में गणतंत्र दिवस केआयोजन के दौरान सरस्वती की तस्वीर लगाने से इनकार कर ग्रामीणों को ' विद्या की असली देवी सावित्री बाई फुले है- यह कहने की हिम्मत करने वाली दलित शिक्षिका हेमलता बैरवा छह माह लंबी लड़ाई के बाद अंततः मंगलवार को पदस्थापित हो गई।
जिला शिक्षा अधिकारी (मुख्यालय) प्रारम्भिक, बारां पीयूष कुमार शर्मा ने हेमलता बैरवा का पदस्थापन (posting) तत्काल प्रभाव से राजकीय प्राथमिक विद्यालय, अहमदा में करने बाबत आदेश जारी किए।
हेमलता बैरवा प्रबोधक लेवल-1 राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय लकडाई (पीईईओ बांदीपुरा) किशनगंज जिला बारां में पदस्थापित थी लेकिन बीते 26 जनवरी को सरस्वती बनाम सावित्री विवाद के बाद उनके विरुद्ध ना केवल FIR दर्ज हुई बल्कि विभाग द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई गई जिसके बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया।
शिक्षिका ने कुछ ग्रामीणों के घोर विरोध के बावजूद गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में मंच पर गांधी और आंबेडकर की तस्वीरों के साथ सरस्वती की तस्वीर रखने से साफ़ इनकार कर दिया, जब उन्हें कहा गया की स्कूल में सरस्वती की तस्वीर का वंदन होना चाहिए क्योंकि वे विद्या की देवी हैं तो हेमलता ने साहसपूर्वक जवाब दिया - शिक्षा के क्षेत्र में सरस्वती का कोई योगदान नहीं है, शिक्षा की असली देवी सावित्री बाई फुले हैं. मामले को तूल पकड़ता देख शिक्षा विभाग ने बैरवा को निलंबित कर दिया.
दलित शिक्षिका ने अपने निलंबन को राजस्थान प्रशासनिक न्यायाधिकरण में चुनौती दी, इसके बाद शिक्षा विभाग ने दिनांक 10.04.2024 द्वारा जांच विचाराधीन रखते हुए निलंबन से बहाल कर आगामी आदेशों तक इनका मुख्यालय आचार संहिता के कारण मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, पंचायत छीपाबडौद, जिला - बारां नियत किया।
ज्ञातव्य है कि टोडाभीम विधायक घनश्याम महर ने हाल ही में विधानसभा में हेमलता बैरवा के निलंबन का मसला सदन के पटल पर उठाया था एवं शिक्षा मंत्री से शिक्षिका की बहाली की मांग की थी। महर ने पिछले दिनों अपने सोशल मीडिया हैंडल पर सदन की कारवाई का वीडियो क्लिप शेयर करते हुए लिखा था कि मंत्री द्वारा उन्हें इस मामले में शीघ्र करवाई का आश्वासन दिया गया है।
पोस्टिंग का आदेश मंगलवार शाम को सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो शिक्षिका को भी नये पदस्थापन की जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से हुई है, उन्हें आदेश की प्रति मिलना बाकी है। द मूकनायक ने जब उन्हें बधाई देने के लिए फोन किया तो वे बेहद खुश और उत्सुक थी. हर्ष जाहिर करते हुए हेमलता ने अपने परिवार और गांव वालों के साथ समूचे दलित समुदाय, अंबेडकरवादी संगठनों का आभार व्यक्त किया जिन्होंने इस लड़ाई में उनका तन मन और धन से सहयोग किया।
डॉ. अंबेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी कर्मचारी एसोसिएशन (एजेएके) - जो अनुसूचित जाति के अधिकारियों और कर्मचारियों का संगठन है - ने बैरवा को उनपर चल रहे कानूनी मामले से लड़ने के लिए वित्तीय सहायता के रूप में 50,000 रुपये सहायता प्रदान की थी। शिक्षिका के समर्थन में कई सामाजिक संगठन आगे आये. द मूकनायक ने इस पूरे प्रकरण की शुरुआत से ही सिलसिलेवार रिपोर्टिंग की थी हालांकि मेनस्ट्रीम मीडिया दलित शिक्षिका के साथ हुए अन्याय पर कवरेज से बचती रही.
इस अवसर पर हेमलता ने The Mooknayak का विशेष आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मूकनायक ने समूचे प्रकरण पर सत्यपरक रिपोर्ट्स की सीरीज प्रकाशित कर ना केवल निष्पक्ष पत्रकारिता का परिचय दिया बल्कि दलित और वंचित समुदाय से जुड़े लोगों के संघर्ष को ताकत दी है।
द मूकनायक से विस्तृत बातचीत में हेमलता ने बताया कि ड्यूटी के लिए पिछले तीन महीनों से उन्हें रोजाना 150 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ रही थी। "अकेले इतनी दूर आना जाना मेरे लिए सम्भव नहीं है इसलिए रोज मेरा बेटा या बेटी साथ सफर करते हैं। मुझे खुशी है कि मेरे इस सत्य की लड़ाई में मैं अकेली नहीं थी, मेरे बच्चों, मेरे गांव वालों, समाजजनों ने पूरा पूरा साथ दिया। मैं अगर डट कर लड़ सकी तो इसका श्रेय आप सभी को है" हेमलता ने भाव विभोर होकर कहा। हेमलता की पुत्री अमीषा अपनी माँ की ही तरह एक शिक्षक बनना चाहती हैं और BSTC कोर्स कर चुकी है जबकि बेटा निहाल नीट की तैयारी कर रहा है. हेमलता के पति कोई काम नहीं करते है और वे अलग रहते हैं.
जब हेमलता से पूछा गया कि इतनी परेशानियां झेलने के बाद क्या वे आगे भी बाबा साहब के बताए राह पर चलकर शिक्षा की अलख जगाएंगी तो वे कहती हैं, " मैने वही किया जो एक अध्यापक का दायित्व है, हमारे संविधान में Article 51 A भी कहता है - प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे। मैने सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभाईं है जो हर स्कूल में हर शिक्षक को करना चाहिए। हमें बच्चों में छोटी उम्र से ही रूढ़िवादी और संकुचित विचारधारा पनपाने की बजाय , पाखण्ड और अन्धविश्वास को दूर करने के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करना चाहिए। उन्हें यह बताना होगा कि सरस्वती का शिक्षा के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं है बल्कि सावित्री बाई ने वर्षों पहले महिला और बालिका शिक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और कई त्याग किए। "
हेमलता की बाबा साहब और बुद्ध में गहरी आस्था है। हालांकि उन्होंने बौद्ध धर्म विधिवत नहीं अपनाया है लेकिन वे बुद्ध की सीखावनियों से बहुत प्रेरित हैं। हेमलता हिन्दू रीति रिवाज नहीं मानती हैं ना ही अरसे से उन्होंने कोई त्योहार ही मनाए हैं।
उन्होंने बताया " मैं पहले त्योहार मनाती थी लेकिन बाद में जैसे जैसे जागरूकता आई, बाबा साहब के विचार और उनकी किताबें पढ़ने समझने का मौका मिला, मैं धर्म के नकारात्मक पक्षों को समझने के बाद आडंबरों से दूर होती गई। "
हेमलता बताती हैं कि उन्हें इस बात का बेहद अफसोस है कि उन्हें स्कूल या कॉलेज में कभी बाबा साहब या बुद्धिज़्म को समझने का मौका नहीं मिला। " अगर मुझे अपने जीवन के शुरुआती दौर में यह सब समझने का मौका मिलता तो शायद मैं अपने समुदाय, समाज को जागृत करने के लिए प्रभावी काम पहले ही करना शुरू कर देती। हेमलता कहती हैं पाठ्यक्रम में साइंटिफिक टेम्परामेंट को बढ़ावा देने वाला कंटेंट शामिल करना बहुत जरूरी है। इसके अलावा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बहुत प्रयास करने होंगे, खासकर राजस्थान जैसे प्रदेश में ग्रामीण इलाकों में स्कूलों और शिक्षा की हालत बहुत खराब है।
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