उत्तर प्रदेश। गोरखपुर जिले में दलित, पिछड़ा, मुस्लिम और गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग अंबेडकर मोर्चा के नेताओं ने उठाई थी। इस मांग को लेकर नेताओं ने कमिशनर कार्यालय में दस अक्टूबर को पूरे दिन डेला डालो, घेरा डालो आंदोलन किया। जिसके बाद देर रात पुलिस ने अंबेडकर जनमोर्चा के नेताओं सहित लेखक और पत्रकार के खिलाफ हत्या के प्रयास सहित अन्य संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर 24 घण्टे में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया। वहीं इस मामले में जब गिरफ्तार किए गए लोगों के वकीलों ने जमानत याचिका की अर्जी दी तो सीजीएम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर निंदा हो रही है।
यूपी के गोरखपुर जिले में दलित, पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग की लड़ाई और अम्बेडकर जन मोर्चा का ये संघर्ष तीन साल पहले शुरू हुआ था। इसको लेकर जन मोर्चा ने कई बार और कई जगहों पर आंदोलन भी किया, और इसी को बरकरार रखते हुए उसने 10 अक्टूबर को हजारों की संख्या में आकर कमिश्नर कार्यालय पर घेरा डालो, डेरा डालो का आह्वान किया।
प्रदर्शनकारियों में महिलाओं की संख्या अधिक थी, पूरा कमिश्नर कार्यालय परिसर लोगों से भर गया था। आंदोलन के दौरान एक के बाद एक वक्ता आए और सभी ने इसी मुद्दे पर अपनी बात रखी थी। जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला ने कहा था कि, अनुसूचित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन मुहैया करायी जाए। यह लाभ इन लोगों को कैसे मिलेगा, ये सरकार को सोचना होगा। तेलंगाना राज्य की सरकार ने इस कार्य को पूरा किया है, उन्होंने जमीन खरीदकर गरीबों को दिया है। पिछले साल 17 दिसंबर से लेकर 17 मार्च तक धरना दिया था, लेकिन किसी ने भी हमें और हमारी मांगो को गंभीरता से नहीं लिया।
निराला ने आरोप लगाया था कि शाम को ज्ञापन देने के बाद आंदोलन समाप्त होना था। देर शाम तक कोई अधिकारी ज्ञापन लेने नहीं आया। सभी लोग कमिश्नर कार्यालय में जमे रहे। रात करीब 10 बजे जिला अधिकारी कृष्णा करुणेश कमिश्नर कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन लेकर आश्वासन दिया कि उनकी मांगो को मुख्यमंत्री तक पहुंचाया जाएगा। इसके बाद आंदोलन में शामिल हुए लोग भी जाने लगे, तभी कमिश्नर कार्यालय से ही लेखक-पत्रकार डॉ. सिद्धार्थ को पुलिस ने गिरफ्तार कर थाना कैंट चली आई।
जानकारी के मुताबिक, कुछ ही देर में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी अम्बेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला के घर पहुंच गए और उनके घर में घुसकर तलाशी ली। इधर कमिश्नर कार्यालय से लौट रहे श्रवण कुमार निराला को पैडलेगंज में पुलिस ने घेर लिया। उस वक्त निराला के साथ सैकड़ों लोग थे। आधी रात बाद सभी लोगों को देवरिया बाईपास के पास हिरासत में ले लिया गया और बस से कौड़ीराम ले जाया गया। उसके बाद से पता नहीं चला कि हिरासत में लिए गए लोग कहां हैं?
जानकारी के मुताबिक आंदोलन में शामिल पूर्व आईजी एवं दलित चिंतक एसआर दारापुरी तारामंडल स्थित एक होटल में रुके हुए थे। बुधवार सुबह वहां पुलिस पहुंच गयी और उन्हें रामगढ़ ताल थाना ले गई। मंगलवार शाम को आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी बाद पुलिस ये बताने से भी इनकार कर रही थी कि उनको कहां बंद करके रखा गया है। इसके बाद सभी को जेल भेज दिया गया। सभी गिरफ्तार किए गए लोगों के वकीलों ने जमानत के लिए सीजीएम कोर्ट में अर्जी दाखिल की। कोर्ट के द्वारा जमानत याचिका खारिज कर दी।
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी की गिरफ्तारी और उनकी रिहाई के संदर्भ में आइपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने राष्ट्रपति भारत गणराज्य को पत्र भेजा है। पत्र को समर्थन करने के लिए कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, सपा, बसपा, राजद, जेडीयू, आप, द्रमुक, त्रिमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और टीआरएस को भी भेजा गया है।
पत्र में कहा गया कि "आइपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी, पत्रकार डॉ सिद्धार्थ रामू, अम्बेडकर जन मोर्चा के श्रवण कुमार निराला और गोरखपुर में अन्य की गिरफ्तारी यह दिखाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार को राजनीतिक मान्यता और मर्यादा की कतई परवाह नहीं है। और सीधे-सीधे कानून सम्मत कार्यवाही की जगह अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर शासन करती है।"
"10 अक्टूबर को मजदूर, दलित नागरिकों की भूमि अधिकार के सरोकार को लेकर जो आम सभा बेहद शांतिपूर्ण वातावरण में हुई उसके आयोजन और सम्बोधन करने वालों को 307 जैसे अपराध में गिरफ्तार किया गया और 82 वर्षीय दारापुरी जो पार्किंसन जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हैं, उन्हें जेल भेज दिया गया। लोकमत के लिए चीजें कितनी भयावह होती जा रही हैं वह इसी बात से साफ होता है कि सरकार के उच्च ओहदों पर बैठे हुए लोगों के निर्देशन पर बिना तथ्य और प्रमाणिकता के आधार पर गम्भीर आपराधिक मुकदमे लगाए गए और जेल भेज दिया गया। अतः राष्ट्रपति महोदया से पत्र में अनुरोध किया गया कि पूरे घटना की न्यायिक जांच कराई जाए और दारापुरी व उनके साथ अन्य गिरफ्तार लोगों को ससम्मान रिहा किया जाए," पत्र में पढ़ा गया।
कहीं न कहीं इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका बेहद संदिग्ध नजर आती है। यह एक सामान्य धरना था और सामान्य मांगे रखी गई थी। लेकिन पहले ज्ञापन न लेना और उसके बाद जबरन जगह-जगह से गिरफ्तारी बताती है कि प्रशासन के दिमाग में कुछ और ही बात चल रही थी।
गिरफ्तार पूर्व आईजी और दलित चिंतक एसआर दारापुरी, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. सिद्धार्थ और अंबेडकर जन मोर्चा के संयोजक श्रवण कुमार निराला समेत 10 लोगों की जमानत याचिका को सीजीएम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इन लोगों को उस समय गिरफ्तार किया गया था जब ये भूमिहीन परिवारों को जमीन देने के मसले पर आयोजित धरने में हिस्सा लेने गए थे। दिलचस्प बात यह है कि इनकी गिरफ्तारी बेहद नाटकीय तरीके से की गयी। पूरा धरना समाप्त हो गया था और डीएम ज्ञापन ले चुके थे उसके बाद इनको अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया गया। यहां तक कि पूर्व आईजी दारापुरी की गिरफ्तारी होटल से की गयी जहां वह ठहरे हुए थे।
रिहाई मंच ने पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, पत्रकार सिद्धार्थ रामू, दलित नेता श्रवण कुमार निराला की गिरफ्तारी को गैर-कानूनी बताते हुए तत्काल रिहाई की मांग की। रिहाई मंच ने अंबेडकर जन मोर्चा के नेताओं की गिरफ्तारी को योगी सरकार का दलित विरोधी कृत्य करार देते हुए जन आंदोलन को कुचलने साजिश कहा।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि "दलित, पिछड़ा, मुस्लिम और वंचित समाज के भूमिहीनों के लिए एक-एक एकड़ भूमि की मांग करना योगी राज में अपराध हो गया है। अपराध तो यह है कि आज तक यह क्यों भूमिहीन थे। सरकार इसका जवाब दे। अंबेडकर जनमोर्चा द्वारा कमिश्नर कार्यालय पर घेरा डालो, डेरा डालो आंदोलन के बाद कमिश्नर के देर तक न आने का कारण मांग करने वाले वंचित समाज के लोगों को रुकना पड़ा."
"कमिश्नर द्वारा ज्ञापन लेने में देरी की वजह से दूर-दराज से आई महिलाओं को परेशानी हुई। इस दलित महिला विरोधी कृत्य के लिए गोरखपुर कमिश्नर पर एफआईआर होना चहिए था। गोरखपुर में योगी राज में दलितों पर यह एफआईआर साबित करता है कि सरकार दलित विरोधी है। जिस भूमिहीन समाज का जीवन बाधित किया जा रहा है, वह समाज जब अपने अधिकारों की मांग करता है तो सरकार उसे सरकारी काम में बाधा बताती है। इतना ही नहीं ऐसी मांगो में शामिल लोगों पर हत्या के प्रयास की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता है। जिनके पुरखों को व्यवस्था कत्ल करती रही है अब उन्हें ही कातिल ठहराया जा रहा है। मुकदमा तो प्रशासन पर दर्ज हुआ चाहिए कि जब नागरिक लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन करते हुए ज्ञापन देना चाहते थे तो ज्ञापन लेने में क्यों देरी की गई। अंबेडकर जनमोर्चा के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मुकदमा करके भूमिहीनों के जमीन की मांग को नहीं दबाया जा सकता। सरकार जनांदोलनों को दबा करके कार्पोरेट के लिए काम कर रही है। इस मुकदमे के लिए योगी आदित्यनाथ सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, जो नहीं चाहते कि गोरखपुर में वंचित समाज हक और हकूक को लेकर सवाल उठाए", राजीव यादव ने द मूकनायक से बताया।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.