नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए छात्रसंघ चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट छात्र संगठनों को बड़ी जीत मिली है। नव-निर्वाचित पैनल में अध्यक्ष पद पर आइसा के धनंजय चुने गए हैं। धनंजय मूल रूप से बिहार के गया जिले के रहने वाले हैं और वह दलित समुदाय से आते हैं।
वह जेएनयू के स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स में पीएचडी के छात्र हैं। इससे पहले उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक किया है। इसके साथ ही धनंजय एक अच्छे आर्टिस्ट भी हैं और थियेटर से जुड़े रहे हैं। वह कई नाटकों के मंचन में अलग-अलग भूमिकाएं निभा चुके हैं।
अपने अब तक के सफर के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, "मैं जिस परिवार में पैदा हुआ उसमें हमेशा से शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। मेरे पिताजी पुलिस विभाग में नौकरी करते थे। ऐसे में सीमित आमदनी में बड़े परिवार को चला पाना मुश्किल होता है। लेकिन उन्होंने कभी भी हमारे ऊपर इस चीज का दबाव नहीं डाला और मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय पढ़ने के लिए भेजा। यहाँ आकर मैंने चीजों को समझना शुरू किया और यहाँ तक पहुंच पाया।"
"मैं बिहार से आता हूँ जो एक ऐसा राज्य है जो खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है। वहाँ पर रोजी-रोटी की दिक्कतें हैं। हम देखते हैं कि बिहार से लोग यहाँ दिल्ली आकर मामूली सी सैलरी पर नौकरी करते हैं।"
डीटीसी की एसी बसों में छात्रों को रियायत दिलाने के लिए किया था पहला प्रोटेस्ट
आइसा से जुड़ने और छात्र राजनीति में सक्रिय होने के अपने सफर को याद करते हुए धनंजय बताते हैं, “जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ता था तो उस समय वहाँ सक्रिय बाकी छात्र संगठन सिर्फ़ कैंपस में पर्चे उछालते थे, उनके पास कोई विजन नहीं दिखता था। जबकि आइसा वहाँ पर डिस्कशन और डिबेट करवाती थी और कैंपस में छात्रों की समस्याओं को लेकर आवाज़ उठाती थी, मुझे यही चीज अच्छी लगी और मैं संगठन से जुड़ गया।”
अपने पहले प्रोटेस्ट को याद करते हुए वह बताते हैं, “2015 के शुरुआत की बात है जब आइसा ने डीटीसी की एसी बसों में स्टूडेंट्स को रियायत दिलाने के लिए प्रोटेस्ट किया था। हमारे लिए यह बहुत बड़ी और जरूरी लड़ाई थी। क्योंकि यह स्टूडेंट्स की एक बेसिक जरूरत थी और उन्हें हर दिन प्रॉब्लम होती थी।”
“जाति को लेकर हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत”
जाति और जातिगत भेदभाव से जुड़े सवाल पर वह कहते हैं, “जाति इस देश की सच्चाई है। आज भी हम अपने गांवों में देखते हैं कि जो तथाकथित ऊंची जाति के लोग हैं, वह दलितों के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं। आज अगर दलित समुदाय का कोई छात्र पढ़-लिखकर कोई नौकरी हासिल कर भी लेता है, तब भी उनकी सामाजिक स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं आ पाता है। इसलिए सामाजिक स्तर पर अभी हमें बहुत काम करने की जरूरत है। हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है।”
आगे वह कहते हैं, “गांव हो या शहर जातिगत भेदभाव हर जगह पर है। लेकिन शहरों में चीजें थोड़ी अलग है। यहाँ चीजें लेयर में हैं। शहरों में आपसे जाति के बारे में सीधे तौर पर नहीं पूछा जाता। यहाँ लोग आपका पूरा नाम या सरनेम के बारे में पूछते हैं।”
"जब मैंने अपनी जाति बताई तो वहाँ कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया"
वह जेएनयू के अपने हॉस्टल का एक वाकया सुनाते हुए कहते हैं, “एक बार जब मेरे रूममेट के घर से कोई मिलने के लिए आया तो उन्होंने मेरी जाति के बारे में पूछा। जब मैंने अपनी जाति उनको बताई तो वहाँ कुछ देर के लिए एक अजीब-सा सन्नाटा पसर गया। मुझे यह अजीब लगा और मैं कमरे से बाहर चला आया।”
जब मैंने उनसे पूछा कि क्या जेएनयू कैंपस में भी जातिगत भेदभाव होता है तो उन्होंने कहा, "यहां लोग सीधे तौर पर ऐसा करने से बचते हैं, यह ऐसी जगह है कि यहां लोग ऐसा करने से डरते भी हैं। लेकिन कई बार लोग आपके मैरिट पर भी सवाल उठाते हैं, बातचीत में इस तरह का कुछ मजाक कर लेते हैं।"
आगे वह जोड़ते हैं, "यहाँ आपको वाइवा में कम नंबर दे दिया जाता है ताकि आपका सलेक्शन जनरल कैटेगरी में न हो, आप एससी- एसटी के ही सीटों पर सिलेक्ट हो पाएं। उनको लगता है कि जनरल सीट सिर्फ अपर कास्ट वालों के लिए है। जबकि अनरिजर्व्ड सीट पर सबका अधिकार है। यह सब यहाँ जातिवादी माइंड को दिखाता है।"
थियेटर से हैं लगाव, कई नाटकों में कर चुके हैं अभिनय
धनंजय एक अच्छे आर्टिस्ट हैं और थियेटर से जुड़े रहे हैं। वह कई नाटकों के मंचन में अलग-अलग भूमिकाएं निभा चुके हैं। थियेटर से उनके लगाव के बारे में जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा, “थियेटर में ऐसा होता है कि आप अच्छी बातें करना चाहते हैं, वहाँ खराब चीजों की जगह नहीं होती। शुरुआत में मैं महिलाओं के उत्पीड़न, सेनिटेशन वर्कर पर नाटक करता था। मैं अरविंदो थिएटर ग्रुप और संगवारी थिएटर ग्रुप से जुड़ा रहा हूँ। उस दौरान अलग-अलग इलाकों में जाना, बच्चों को वर्कशॉप देना, देश के अलग-अलग हिस्सों में जाना, परफॉर्मेंस देना, इन सबसे बहुत कुछ सीखने को मिला। मैं सफदर हाशमी के गीतों को देखता-सुनता था, मैंने भगत सिंह और अंबेडकर जैसे विचारकों को नाटक के जरिए ही समझा है। क्योंकि नाटक के जरिए यह सब समझना और आसान हो जाता है।”
27 साल बाद JNUSU को मिला दलित अध्यक्ष
धनंजय 2014 से ही वामपंथी विचारधारा के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) से जुड़े हुए हैं। जेएनयू में चार साल के अंतराल के बाद हुए छात्रसंघ चुनाव में उन्हें आइसा की ओर से लेफ्ट यूनाइटेड पैनल में अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया गया था। इस चुनाव में उन्होंने 2,598 वोट हासिल कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी के उमेश चन्द्र अजमीरा को 922 वोटों से हराया, जिन्हें 1,676 वोट मिले थे।
जेएनयू छात्रसंघ के इतिहास में पिछले 27 वर्षों के बाद कोई दलित छात्र अध्यक्ष के पद पर चुनकर आया है। इससे पहले 1996-97 में बत्ती लाल बैरवा जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे, जो कि इस पद पर पहुंचने वाले पहले दलित छात्र थे। राजस्थान के रहने वाले बैरवा अभी भी राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं।
हालाँकि, धनंजय से मेरे यह पूछने पर कि 27 साल बाद किसी दलित को जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया गया है, धनंजय कहते हैं, "यह गलत सूचना फैलाया जा रहा है। हां यह जरूर है कि अध्यक्ष पद पर नहीं रहे हैं। लेकिन रामानगा, चिंटू, साकेत मून जैसे लोग अलग-अलग पदों पर रहे हैं। हां, जाति इस समाज की हकीकत है, मैं इससे इंकार नहीं करता हूं।"
“यह जीत जेएनयू के छात्रों का एक जनमत संग्रह है”
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद नव-निर्वाचित अध्यक्ष धनंजय ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि यह जीत जेएनयू के छात्रों का एक जनमत संग्रह है। इस जीत से छात्रों ने साबित कर दिया कि वे नफरत और हिंसा की राजनीति को खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि छात्रों ने हम पर भरोसा किया है। ऐसे में वो उनके अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे और उन मुद्दों पर काम करेंगे जो छात्रों से संबंधित हैं। धनंजय ने कहा कि कैंपस में महिलाओं की सुरक्षा, फंड में कटौती, पानी की परेशानी छात्र संघ की प्राथमिकताओं में से हैं और वो इसके लिए काम करेंगे।
“कैंपस को ऐसा ही बचाए रखना एक लड़ाई है”
छात्रसंघ चुनाव में जीत के बाद द मूकनायक से बातचीत में धनंजय ने कहा, “मैं इस जीत का श्रेय कैंपस के उन तमाम छात्रों को देता हूँ जो अलग-अलग वर्ग से आते हैं, अलग-अलग जगह से आते हैं…वे जो बेहतर नौकरी और बेहतर शिक्षा का ख़्वाब देखते हैं। क्योंकि बहुत कम लोग यहाँ तक पहुंच पाते हैं, हर कोई यहाँ तक नहीं पहुँच पाता…।”
उन्होंने आगे कहा, “जेएनयू एक बेहतरीन कैंपस है, यहाँ अच्छी पढ़ाई होती है, अच्छे डिस्कशन और डिबेट होते हैं। इस कैंपस को ऐसा ही बचाए रखना एक बहुत बड़ी लड़ाई है, एक संघर्ष है ताकि आगे आने वाली पीढ़ियों को यह कैंपस इसी रूप में मिल सके।”
इस बार के चुनाव में छात्रसंघ को मिला एक समावेशी पैनल
बता दें कि जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर एसएफआई के अविजीत घोष, जनरल सेक्रेटरी के पद पर बापसा की प्रियांशी आर्या और जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर एआईएसएफ के मोहम्मद साजिद चुने गए हैं। इस बार के चुनाव में एक समावेशी पैनल देखने को मिला है जिसमें लगभग सभी वंचित और पिछड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व है। निर्वाचित प्रतिनिधियों में से अध्यक्ष और जनरल सेक्रेटरी दलित समुदाय से आते हैं। वहीं उपाध्यक्ष ओबीसी और जॉइंट सेक्रेटरी माइनॉरिटी समुदाय से हैं।
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