तमिलनाडू: दलित महिला की अंतिम यात्रा को 'आम रास्ते' से निकालने पर बवाल, कच्ची सड़क से निकाला मोक्ष रथ

दलितों का श्मशान गांव के बाहर स्थित है, और उन्हें श्मशान तक पहुंचने के लिए एक कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है।
तमिलनाडू: दलित महिला की अंतिम यात्रा को 'आम रास्ते' से निकालने पर बवाल, कच्ची सड़क से निकाला मोक्ष रथ
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तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडू- तिरुवन्नामलाई से करीब 45 किलोमीटर दूर मोथक्कल गांव में सोमवार को एक दलित महिला के अंतिम संस्कार की यात्रा पर जाति हिंदुओं ने आपत्ति जताई। दलित समुदाय ने अपनी पारंपरिक मार्ग की खराब स्थिति के कारण शव को गांव की मुख्य सड़क से ले जाने का निर्णय लिया था।

जानकारी के अनुसार, एस. किलियाम्बल (70) की उम्र संबंधी बीमारियों के कारण रविवार शाम को दलित कॉलोनी में उनकी बेटी के घर पर मृत्यु हो गई। परंपरागत रूप से जाति हिंदू और दलित अपने-अपने रास्तों से अंतिम यात्रा निकालते रहे हैं। दलितों का श्मशान गांव के बाहर स्थित है, और उन्हें श्मशान तक पहुंचने के लिए एक कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है।

एक दलित कृषि श्रमिक ने बताया, "दलितों द्वारा आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला रास्ता झाड़ियों और उबड़-खाबड़ रास्तों से और भी खराब हो गया था। इसे कई वर्षों से अधिकारियों द्वारा ठीक नहीं किया गया था। इसलिए हमने जाति हिंदुओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले रास्ते से अंतिम यात्रा निकालने का फैसला किया"। बताया जाता है कि इस मार्ग पर कुछ लोगों द्वारा अतिक्रमण भी किया गया है जिससे आने जाने में परेशानी होती है.

पुलिस ने बताया कि दलितों ने शाम 4 बजे के आसपास गांव के मुख्य रास्ते से अंतिम यात्रा निकालने का फैसला किया था, लेकिन जाति हिंदुओं ने इसका विरोध किया। पंचायत अधिकारियों द्वारा सूचना मिलने पर, पुलिस टीम गांव में किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पहुंची।

तिरुवन्नामलाई की राजस्व मंडल अधिकारी (आरडीओ) आर. मंदाकिनी के नेतृत्व में एक राजस्व टीम ने गांव में जाति हिंदुओं और दलितों के बीच शांति वार्ता आयोजित की। लगभग पांच घंटे की बातचीत के बाद, दलितों ने पारंपरिक मार्ग का उपयोग करने पर सहमति जताई। दलितों द्वारा उपयोग किए जाने वाले मार्ग को समतल किया गया और सोमवार रात महिला का अंतिम संस्कार किया गया।

गाँव में इतना होता है जातिगत भेदभाव

मोथक्कल एक सीमावर्ती गांव है जो तिरुवन्नामलाई को धर्मपुरी जिले से जोड़ता है। यह तिरुवन्नामलाई के थंद्रमपट्टू पंचायत के अंतर्गत आता है। गांव के अधिकांश जाति हिंदू जमींदार हैं, जिनकी ज़मीनों पर दलित वर्षों से कृषि श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं।

सीपीआईएम कार्यकर्ता आर. अन्नामलाई ने मीडिया को बताया कि "इस गांव में जातिगत भेदभाव आम है। पहले दलितों को उन सैलून में बाल कटवाने की अनुमति नहीं थी, जहां जाति हिंदू जाते थे। यहां दो गिलास प्रथा (अलग-अलग बर्तनों में पानी देने की प्रथा) भी देखी गई है"।

इस घटना के बाद अब जिला प्रशासन व पुलिस अधिकारी दोनों समुदायों के बीच जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए शांति वार्ताओं की एक श्रृंखला आयोजित करेंगे। निवासियों ने बताया कि दलितों को जाति हिंदुओं द्वारा चलाए जा रहे छोटे दुकानों के पास पेड़ों की छांव में खड़ा होकर सरकारी बसों का इंतजार करने की भी अनुमति नहीं थी। उन्हें धूप में खड़े होकर बसों का इंतजार करने को कहा जाता था।

कलेक्टर डी. भास्कर पांडियन ने कहा कि गांव में जातिगत भेदभाव के मुद्दे की जांच की जाएगी।

500 से ज्यादा मतदाताओं ने किया था मतदान का बहिष्कार

दलित अधिकार कार्यकर्ता और लेखिका शालिन मारिया लॉरेंस बताती हैं कि मोथक्कल गाँव में आदि द्रविड़ समुदाय के 500 से अधिक पात्र मतदाताओं ने लोकसभा चुनावों का बहिष्कार किया था। दलित समुदाय यहाँ बुनियादी सुविधाओं की कमीऔर जातिगत भेदभाव से काफी अरसे से त्रस्त है।

समुदाय के लिए श्मशान तक जाने के लिए पक्की सड़क सुलभ नहीं है। समुदाय का आरोप है कि कई जाति हिंदू और पंचायत के अध्यक्ष से भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पडा है.

एक ग्रामीण ने कहा, "वर्षों से हमें श्मशान तक पहुंचने के लिए एक अलग रास्ते का उपयोग करने के लिए मजबूर किया गया है, और हमारे गाँव के जाति हिंदू हमें गुजरने की अनुमति नहीं देते हैं, जिससे हमें डर लगता है"।

सामूहिक असंतोष का प्रदर्शन करने के लिए ग्रामीणों ने यहाँ लोकसभा चुनाव से पहले गाँव के प्रवेश स्थान और करीब 200 घरों के सामने काले झंडे लगाये थे. ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर को एक याचिका भी सौंपी थी, जिसमें उनकी मांगों और शिकायतों का विवरण दिया गया।

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