जयपुर: सरकार की अनदेखी, भेदभाव, अशिक्षा और बेरोजगारी आदि के चलते राजस्थान में कंजर समाज की बेटियों की खुलकर खरीद फरोख्त हो रही है. आलम यह है कि लडकियों के माता पिता अपनी बेटियों का ब्याह उन्ही लड़कों से करवाना पसंद कर रहे हैं जो उन्हें ज्यादा से ज्यादा मोल चुकाने में सक्षम है. पचास हजार से लेकर दस लाख रुपयों तक के एवज में समाज में लड़कियों का विवाह हो रहा है. हैरान करने वाली बात यह है कि वधू पक्ष द्वारा इस तरह वर पक्ष से रुपये लेकर ब्याह रचाई जाने वाली परंपरा, जो चारी प्रथा के नाम से जानी जाती है, के लिए बाकायदा जाती पंचायत बुलाई जाती है जो ऐसे रिश्तों को अनुमति देती है. पैसे देने में असमर्थ होने के कारण समुदाय में कई लडकों का विवाह नहीं हो पा रहा है, राजस्थान में ऐसे 3 हजार युवक विवाह योग्य लड़के कुंवारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि यदि इसी प्रकार चारी प्रथा जारी रही तो आने वाले समय में यह विकराल रूप ले लेगी.
टोंक के देवली में रविवार को कंजर समाज महापंचायत संस्थान और बिजोरी कांजरी वेलफेयर फाउंडेशन की मेजबानी में कंजर समाज की प्रदेश स्तरीय कोर कमेटी की मीटिंग हुई जिसमे ये चिंताजनक बात प्रमुखता से उभरी. बैठक में समाज की समस्याओं और समाज के ताने-बाने में परिवर्तन के लिए विचार विमर्श किया गया। समाज की मुख्य समस्याएं चारी प्रथा को बढ़ावा देने वाले,रुपए लेकर जाति पंचायत करने वाले, देह व्यापार को बढ़ावा देने वाले और मानव तस्करी में लिप्त दलालों पंच पटेलों की लिस्ट बनाकर कार्यवाही के सरकार और प्रशासन को देने पर सहमति हुई.
द मूकनायक ने अखिल राजस्थान कंजर समाज महापंचायत के प्रदेशाध्यक्ष ग्यारसी लाल गोगावत से इस मुद्दे पर विस्तृत बात की. गोगावत ने बताया कि समाज आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक पिछड़ेपन का शिकार है. टोंक, बूंदी, भीलवाड़ा, सवाई माधोपुर, अलवर और भरतपुर में प्रमुख रूप से समुदाय की लडकिया और महिलाएं देह व्यापार में लिप्त हैं . रोजगार के स्थायी साधन नहीं होने और समाज के पिछड़ेपन के कारण समाज में कई कुरीतियां घर कर गई है. बाल विवाह और चारी प्रथा भी इसी का परिणाम है. चारी प्रथा को बढ़ावा देने वाले,रुपए लेकर जाति पंचायत करने वाले, देह व्यापार को बढ़ावा देने वाले और मानव तस्करी में लिप्त दलालों पंच पटेलों की लिस्ट बनाकर कार्यवाही के सरकार और प्रशासन को दी जाएगी। बाल विवाह नहीं करने के लिए संगठन समाज में जागृति अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। बाल विवाह की जानकारी देने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को 2100 रुपए इनाम घोषित किया गया।
प्रदेश महासचिव रामहेत केसिया ने बताया कि समाज की कुरीतियों का बोझ समाज की बहन बेटियों को ढोना पड़ रहा है। उन्हें सामाजिक रूप से एक प्रकार से गुलाम बना रखा है। कुछ लोग प्रोपेगेंडा चला कर समाज की बहन बेटियों मानव तस्करी कर रहे हैं ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी है।
ग्यारसी लाल कहते हैं, "वर्तमान समय में कंजर समाज भेदभाव का शिकार हैं। समाज को एकजुट कर शिक्षित विकसित, संस्कारवान, स्वाभिमानी व समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागकर आदर्श समाज बनाने की जरूरत है. समाज के सभी 0-18 वर्ष के बालक बालिकाओं का संस्थान के माध्यम से सर्वे कराने का निर्णय कोर कमेटी ने किया है. शिक्षा के अभाव में हमारे समाज को आरक्षण का अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका है , सरकारी नौकरी में समाज से बामुश्किल 2 प्रतिशत युवा लाभान्वित हुए होंगे."
राजस्थान में कंजर समाज की जनसंख्या लगभग दस से पन्द्रह लाख और पूरे भारत में लगभग एक करोड है, कंजर समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है। समाज के लोग स्वतंत्रता प्रिय और देश के लिए मर मिटने वाले रहे है. गुरिल्ला युद्ध शैली से भारत के प्रमुख कबीलों ने मुगलों और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे, उन कबीलों में कंजर भी प्रमुख था। घबराई अंग्रेजी सरकार ने 1871 जयराम पेसा कानून लगाकर बिना दलील अपील के अपराधी घोषित कर दिया और सेटलमेंट जेलों में बंद करना शुरू कर दिया। जन्मजात अपराधी का स्टिंगमा समाज के साथ कई कबीलों पर थोप दिया गया। तब से लेकर अब तक समाज राष्ट्र की मुख्यधारा से कट गया और आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ता चला गया.
समाज के लिए अलग बोर्ड बनाने की मांग
समुदाय के लोग खेल तमाशा, जजमानी, लोगों का मनोरंजन, चौकीदारी, जानवर पालने, राज रजवाड़ों के समय नृत्य और अपनी कला का प्रदर्शन कर धन प्राप्त करने रहे हैं लेकिन वर्तमान समय में आजीविका के परम्परागत साधन लुप्त हो गये है। खानाबदोशी होने के कारण जमीन आदि भी नहीं बसा सके. अधिकतर लोग स्वतंत्रता के बाद ही स्थायी रूप से बसना शुरू हुए थे जाति व्यवस्था के कारण समाज को और भी ज्यादा वंचित शोषित पीड़ित समुदाय बना दिया गया है। राज्य सरकार में विमुक्त घुमन्तु अर्ध-घुमन्तु जाति कल्याण बोर्ड बना रखा है लेकिन अभी तक कंजर समाज को कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। समाज काफी समय से अलग से बोर्ड बनाने की मांग कर रहा है.
गोगावत ने बताया समाज के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक पिछड़ेपन को देखते हुए कंजर समाज को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अलग से कंजर समाज के लिए बिजोरी कांजरी कल्याण बोर्ड बनाने के लिए राजस्थान सरकार से मांग की जाएगी। जब तक कार्ड नहीं बनेगा तब समाज का संघर्ष जारी रहेगा।
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