राजस्थान: मुवक्किल के साथ थाने गए दलित वकील को पुलिस ने किया गिरफ्तार, कोर्ट ने लगाई फटकार

पीड़ित दलित वकील की निगरानी याचिका का निस्तारण करते हुए जिला सेशन न्यायालय ने संबंधित थाना प्रभारी व तहसीलदार पर कार्रवाई के लिए डीजीपी व कलक्टर बूंदी को दिए निर्देश। 16 मार्च तक की गई कार्रवाई से न्यायालय को अवगत करवाने के आदेश।
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सांकेतिक तस्वीरफोटो साभार- इंटरनेट
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जयपुर। राजस्थान के बूंदी जिले में भूमि विवाद से जुड़े मामले में अपने पक्षकार के साथ पुलिस थाने गए दलित अधिवक्ता को पुलिस द्वारा पक्षकार के साथ शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार कर रातभर हवालात में बंद रखा गया। मामले में अब कोर्ट ने कार्यपालक मजिस्ट्रेट और तहसीलदार द्वारा अधिवक्ता का पक्ष सुने बिना मुचलकों पर पाबंद कर जमानत पर छोड़ने से जुड़े मामले में न्यायालय ने सबंधित थाना प्रभारी व तहसीलदार पर नियमानुसार कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।

बूंदी, न्यायालय सेशन कोर्ट के न्यायाधीश दिनेश कुमार गुप्ता ने अधिवक्ता पर की गई कार्रवाई को मनमानी बताते हुए पुलिस महानिरीक्षक (DGP) व जिला कलक्टर बूंदी को आदेश की प्रति भेज कर संबंधित थाना प्रभारी व तहसीलदार पर नियमानुसार कार्रवाई कर, की गई कार्रवाई से 16 मार्च तक न्यायालय को अवगत कराने के आदेश भी दिए हैं।

ऐसा क्या हुआ कि न्यायालय को लगानी पड़ी फटकार!

एडवोकेट रमेशचंद आजाद ने अधिवक्ता मनीष गौतम के जरिए जिला सेशन न्यायालय बूंदी के समक्ष एक निगरानी याचिका दायर कर बताया कि, 9 दिसंबर को एडवोकट रमेशचंद के पास उनके पक्षकार बनवारी लाल ने फोन कर बताया था कि उनका भूमि विवाद से जुड़ा मामला है। न्यायालय में सिविल दावा पेश करना है। इस पर वकील रमेशचंद रायथल थाना इलाके के अखेड़ गांव में विवादित भूमि स्थल पर दावा के साक्ष्य जुटाने व नक्शा मौका तैयार करने गए थे।

सिविल दावे के लिए विवादित स्थल का नक्शा मौका तैयार करने के बाद एडवोकट रमेशचंद पक्षकार के साथ ही थे। तभी रायथल थाने से पक्षकार बनवारी लाल को फोन कर पुलिस थाने बुलाया गया। पक्षकार के कहने पर एडवोकेट रमेशचंद भी रायथल पुलिस थाने गए, लेकिन थाना प्रभारी थाने पर नहीं थे। थाना प्रभारी के इंतजार में एक घंटे तक थाने में बैठे रहे। इसके बाद थाना प्रभारी बाबूलाल मीणा आए और पक्षकार बनवारी लाल से बोले कि यह तुम्हारे साथ कौन है? इस पर उन्होंने कहा कि यह मेरे वकील है। सिविल नक्शा मौका बनाने के लिए बुलाया है।

आरोप है कि इतना कहते ही थाना प्रभारी भड़क गए। अधिवक्ता से कहा कि, 'तुम्हारा थाने में क्या काम है। क्यों नेतागिरी करने आ गए।' अभद्रता करते हुए जमीन पर बैठा दिया। भूमि विवाद को लेकर थाने में मौजूद दोनों पक्षों के साथ अधिवक्ता रमेशचंद को भी शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार करने के लिए पुलिस कर्मियों से कहकर थाना प्रभारी चले गए।

थाना प्रभारी रात 10 बजे आए और एडवोकट रमेशचंद को अपने चैंबर में बुलाकर पीटा और हवालात में बंद कर दिया। अन्य आरोपियों के साथ एडवोकट को भी रातभर हवालात में बंद रखा। शांतिभंग की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर अगले दिन सुबह मेडिकल मुआयना तक करवा लिया।

मेडिकल मुआयने के लिए पुलिस चिकित्सक के पास लेकर गई तो, एडवोकेट ने चिकित्सक को सिर व हाथ में लगी चोटों के बारे में बताया। चोटों का मुआयना करने के बाद चिकित्सक ने सीटी स्कैन जांच के लिए लिखा, लेकिन पुलिस कर्मियों ने सीटी स्कैन जांच नहीं करवाई।

पुलिस ने मेडिकल मुआयना के बाद शातिभंग के आरोप में गिरफ्तार अधिवक्ता को कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं तहसीलदार रायथल के समक्ष पेश कर दिया। तहसीलदार ने 20-20 हजार रुपए के जमानती मुचलकों पर पाबंद कर रिहा करने के आदेश दिए। अधिवक्ता ने बताया कि, इस दौरान उन्होंने तहसीलदार को बताया कि वह पेशे से वकील हैं। अपने पक्षकार के साथ कानूनी सलाह के लिए पुलिस थाने गए थे। झगड़े से उसका कोई लेना देना नहीं है। पुलिस ने उन्हें मनमाने तरीके से झूठे आरोप में बंद किया है, लेकिन तहसीलदार ने अधिवक्ता की दलील नहीं सुनी। पुलिस के आरोपों की जांच किए बना ही अधिवक्ता को पाबंद कर जमानत पर छोडने के आदेश दे दिए।

न्यायालय ने फैसले में क्या यह कहा?

अधिवक्ता रमेश चंद आजाद की और से दायर निगरानी याचिका पर सुनवाई करते हुए जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार गुप्ता ने अधिवक्ता पर हुई कार्रवाई को गलत मानते हुए निरस्त कर दिया। आदेश में लिखा कि तहसीलदार की थाना प्रभारी से मिलीभगत उनकी मनमानी कार्रवाई को अमल में लाने की प्रवृति को दर्शाता है। 

न्यायालय ने आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति को पूछताछ आदि के लिए थाने बुलाए जाने पर उस व्यक्ति को यह संवैधानिक एवं कानूनी अधिकार है कि वह किसी विधिक विशेषज्ञ की सेवाएं ले सकता है, तथा विधि विशेषज्ञ के नाते एक अधिवक्ता को अपने साथ थाने ले जा सकता है। एडवोकेट रमेशचंद भी पेशे से एडवोकट हैं। वह अपने पक्षकार के साथ ही पुलिस थाने गाए थे। ताकि पक्षकार के साथ थाना प्रभारी को उचित कार्रवाई में सहयोग कर सके, लेकिन थाना प्रभारी ने अधिवक्ता को भी धारा 107, 151 के तहत गिरफ्तार कर लिया। कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं तहसीलदार ने भी इस गंभीर खामी पर ध्यान नहीं दिया।

न्यायालय ने आदेश में कहा कि पूरे मामले में दो ही कारण नजर आ रहे हैं। पहला तहसीलदार पर थाना प्रभारी का अधिक प्रभाव होना। दूसरा दोनों की मिलीभगत भी हो सकती है जो, जांच का विषय है।

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