जयपुर। भरतपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर कुम्हा गांव में रहने दलित महिला जेलम जाटव व उसके परिवार को साढ़े तीन साल बाद न्याय मिला। विशिष्ट न्यायाधीश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) भरतपुर, गिरिजा भारद्वाज ने 16 मार्च को उसके पति धनपाल जाटव की हत्या के आरोप में मुकेश जाट को आजीवन कारावास से दंडित किया।
न्यायालय हत्या के आरोप में दंडित करने के साथ, धारा 307 (जानलेवा हमला) करने तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं में भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता देवेन्द्र पाल सिंह ने द मूकनायक से कहा यह पहली बार है जब अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं के तहत किसी को आजीवन कारवास से दंडित किया गया हो। हालांकि सजायाफ्ता मुकेश जाट के पास इस फैसले के विरुद्ध सक्षम न्यायालय में अपील का अधिकार सुरक्षित है।
यहां न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) 1989 के नियम 12 (4)(7) के तहत हत्या के संदर्भ में मृतक के आश्रितों को मिलने वाली मासिक पेंशन मय महंगाई भत्ते के व्यवस्था करने के भरतपुर जिला मजिस्ट्रेट को आदेश दिए।
लघु कृषक धनपाल जाटव अपनी खातेदारी 7 बिस्वा भूमि में खेती कर परिवार का पालन पोषण कर रहा था। मृतक के पुत्र सुभाष जाटव ने द मूकनायक से कहा " 3 नवंबर 2020 की शाम 6 बजे आरोपी मुकेश पुत्र शिब्बो जाट घर आया और मेरे पिता से अपनी फसल के लिए पानी मांगा, लेकिन पिता ने नलकूप में पानी कम होने की बात कहते हुए मना कर दिया। इससे वह नाराज हो गया। उसने मेरे पिता की गर्दन पर दरात (फसल काटने का औजार) से वार किया। इससे मेरे पिता की मौके पर ही मौत हो गई।"
सुभाष ने आगे कहा "आरोपी ने मेरी मां जेलम व मामा कप्तान सिंह पर भी उसी औजार से जानलेवा हमला किया। दोनों को गंभीर हालत में भरतपुर के राजकीय आरबीएम (राजबहादुर मेमोरियल) अस्पताल में भर्ती कराया। एक तरफ घर में पिता की लाश थी, दूसरी तरफ मां और मामा अस्पताल में मौत से लड़ रहे थे। आरोपी हमले के बाद भाग गया।" सुभाष कहता है "इससे पहले भी आरोपी ने उसके पिता से खेत में पानी देने की बात पर मारपीट की थी।"
पिता की मौत के बाद घर परिवार की जिम्मेदारी सुभाष के कंधों पर आ गई। उसने पढ़ाई छोड़ मजदूरी शुरू की। अब वह रोज सुबह उठ कर गांव से 15 किलोमीटर दूर भरतपुर शहर में चेजा पत्थर (भवन निर्माण) की मजदूरी करने जाता है। यहां से 450 रुपए मजदूरी मिलती है। उस राशि से घर खर्च के साथ छोटे भाई बहनों की पढ़ाई का खर्च भी चलता है।
सुभाष ने कहा- " मां खेती का काम संभालती है। गेहूं व सरसों फसल पैदा करते हैं। नलकूप में में पानी कम है। 7 बिस्वा जमीन में बड़ी मुश्किल काम हो पाता है। फसल से 6 महीने का गेहूं और सब्जी की ही व्यवस्था ही हो पाती है।"
सुभाष कहता है "उन्हें इस केस में पीड़ित प्रतिकार के रूप में 8 लाख 25 हजार रुपए अलग-अलग किश्तों में मिले हैं। इस राशि से उन्हें केस लड़ने में मदद मिली है। छोटा भाई हिमेश जाटव कक्षा 12वीं में पढ़ रहा है। दो बहनों की 6 महीने पहले शादी कर दी, लेकिन अभी दो छोटी बहनों की शादी की चिंता है। दोनो बहनों ने ग्रेजुएशन कर लिया है। मां को उनकी शादी की चिंता रहती है।"
न्यायालय के फैसले पर उसने कहा जिस बेरहमी से मेरे पिता का कत्ल किया गया, उस हिसाब से आरोपी को फांसी की सजा दी जानी चाहिए थी, लेकिन वह न्यायालय के फैसले से संतुष्ट है। इस केस को लड़ने में उनका काफी पैसा खर्च हुआ है। सरकार ने वकील उपलब्ध कराया था। उन्होंने पैरवी के लिए अपना अलग से वकील खड़ा किया था।
परिवादी के पक्ष के एडवोकेट देवेंद्र पाल सिंह ने बताया कि अभियुक्त को धारा 302 हत्या के आरोप में आजीवन कारावास व 10 हजार रुपए अर्थदंड। अर्थ दंड नहीं चुकाने पर 6 माह का अतिरिक्त साधारण कारावास। धारा 307 (जानलेवा हमला) करने के आरोप में आजीवन कारावास। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत आजीवन कारावास व 10 हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई है। सभी मूल सजाएं साथ चलेंगी। न्यायिक अभिरक्षा में बिताई अवधी मूल सजा में से कम की जाएगी।
न्यायालय ने जिला विधिक प्राधिकरण भरतपुर को निर्णय की एक प्रति प्रेषित कर धारा 357 ए के प्रावधानों के तहत मजरूबान जेलम व कप्तान सिंह को प्रतिकार राशि दिलाने के संबंध में अनुशंसा की। जिला मजिस्ट्रेट भरतपुर को आदेशित किया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के नियम 12 (4) (7) व संलग्न अनुसूची के क्रम संख्या 46 के तहत हत्या के संदर्भ में मृतक के आश्रितों को मिलने वाली मासिक पेंशन 5000 रुपए व महंगाई भत्ता के संदर्भ में पालना सुनिश्चित की जाए।
न्यायालय ने आदेश में टिप्पणी करते हुए डीजीपी (राजस्थान पुलिस महानिदेशक) व भरतपुर जिला मजिस्ट्रेट को पूर्ण दक्षता के तहत कर्तव्य का निर्वहन करने की हिदायत दी। न्यायालय ने आदेश में कहा अनुसंधान अधिकारी द्वारा किया गया अनुसंधान उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर मनमाना होना सामने आता है। जिसमें उसने तथाकथित मजरूबान के सम्पूर्ण चिकित्सकीय रिकॉर्ड को दौरान अनुसंधान एकत्रित करके आरोप पत्र के साथ प्रस्तुत नहीं किया। मौके पर फॉरेंसिक टीम की उपस्थिति भी सुनिश्चित नहीं की।
धारा 302 के प्रकरण में इस तरह का मनमाना अनुसंधान न केवल अनुसंधान की प्रक्रिया को दूषित करता है अपितु अनुसंधानिक कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है। लिहाजा साधारण नियम (दिवानी व दांडिक) 2018 के आदेश 35 नियम 6 तहत जिला मजिस्ट्रेट भरतपुर व पुलिस महानिदेशक जयपुर राजस्थान को सूचित किया जाए। ताकि विधि के शासन में इस प्रकार के मनमाने अनुसंधान को हतोत्साहित किया जाए और पूर्ण दक्षता के तहत कर्तव्य का निर्वहन किया जाए।
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