1990 में दलित दुल्हे के बिंदोरी पर हमले के बाद अब जाकर शांतिपूर्वक निकली बिंदोरी (बारात)।
संवाददाता – अजहरुद्दीन, राजस्थान-बुंदी
विवाह एक ऐसी संस्था है, जिसको लगभग सभी धर्मों में मान्यता दी गई है. सभी धर्मों की अपनी वैवाहिक परंपराएं और रीति-रिवाज हैं. इस मांगलिक अवसर पर अक्सर देखने को मिलता है कि दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर बारात लेकर जाता है. लेकिन हिंदुओं में तथाकथित ऊंची जातियों के लोगों को दलितों का घोड़ी पर बैठकर बारात निकालना रास नहीं आता. इसके विरोध में ऊंची जातियों के लोग अक्सर हिंसक हो जाते हैं. यहां तक कि बारात और दूल्हे पर हमले जैसी घटनाएं भी सामने आती रहीं हैं.
जब भी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं तो, संविधान प्रदत्त समानता का अधिकार सिर्फ कागजी नजर आने लगता है. जबकि भारतीय संविधान ने लोगों को पर्याप्त व्यक्तिगत अधिकार दिए हैं. कोई किस तरह से शादी करता है यह उसका निजी मामला है.
क्या है पूरा मामला?
राजस्थान सरकार द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन समानता के तहत राजस्थान के बुंदी जिले में नीम का खेड़ा गांव में 32 साल बाद एक दलित दूल्हे की बिंदोरी निकाली गई। दलित युवक के बिंदोरी पर विधिक सेवा जज और एसपी ने पुष्प वर्षा कर बिंदोरी का स्वागत किया।
आपको बता दें कि, इससे पूर्व में भी बुंदी जिले के चड़ी गांव में 75 साल बाद पहली बार दलित दुल्हे को घोड़ी पर बैठाकर गांव में बिन्दौरी निकाली गई थी. जिसका सर्व समाज ने स्वागत किया था।
पुलिस ने क्या कहा?
बुंदी एसटी जय यादव ने बताया कि, "नीम का खेड़ा गांव में मनोज पुत्र नन्दलाल बैरवा की शादी में दुल्हे की बिन्दौरी को घोड़े पर बैठ कर निकालने को लेकर समानता समिति गठित कि गई थी, उसी गठित बैठक में सद्भाव व सौहार्दपूर्ण माहौल में बिन्दौरी निकालने और गांव के सभी लोगों के रहने की बात हुई थी। गांव के लोगों ने भी एक स्वर में बिन्दौरी में दुल्हे का स्वागत करने और साथ देने की बात कहीं।"
बता दें कि, इसी इलाके में साल 1990 में करीब 32 साल पूर्व दुल्हे मनोज को घोड़ी पर नहीं बैठने दिया था और मारपीट की थी।
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