उत्तर प्रदेश में अमित शाह लगातार पिछड़ी जातियों के नेताओं को साध रहे हैं। जब वोट लेना होता है तो भैया-बाबू कर रहे हैं जब हिस्सा देना होता है तो शुद्र बना दिया जाता है। मौर्य-पटेल-निषाद-धोबी-पासी-खटीक-वलिमिकी च्युइंगम हैं जो चुनाव से पहले खाओ और जीतने के बाद थूंक दो?
इन सभी जातियों के पढ़े-लिखे युवाओं को समझना चाहिए कि ये चंद नेता इनके समाज का सौदा कर रहे हैं और आपके भविष्य को अंधकार में ढकेल कर आपका अधिकार भी मंत्रिपद या 1-2 सीट के नाम पर बेंच रहे हैं। केशव मौर्य का योगी ने नेमप्लेट उखाड़ के फेंकवा दिया अब बताइए ये अपमान नहीं है?
अनुप्रिया पटेल को चुनाव से पहले साथ लेते हैं सरकार बनाने पर किनारे लगा देते हैं। चुनाव से पहले मंत्रिपद का लॉलीपॉप देते हैं और फिर ये चलता रहता है। दलित समाज के साथ निरंतर अत्याचार और आज थानों में सुनवाई तक नहीं होती। एसपी/डीएम अधिकतर सवर्ण हैं जो अत्याचार में कोई कसर नहीं छोड़ते।
शिक्षक भर्ती हो या पुलिस भर्ती लिस्ट निकाल लो कि किसको भरा गया है। दलित-पिछड़ों की सीट तक उनसे छीनकर बांट दिया गया। महिला सुरक्षा तो मजाक बनकर रह गया है। हाथरस को भूलना नहीं है कि कैसे प्रशासन ने आपकी बहन को चुप चाप फूंक दिया ताकि मुख्यमंत्री के स्वजातीय बच जाएं।
किसानों से किया गया वादा एक जुमला बन गया। न मंडियां बनी न गन्ने का भुगतान हुआ। उत्तर प्रदेश में बिजली सबसे महंगी है। जब ये सबके ख़िलाफ़ है तो हैं किसके साथ? शिक्षा-स्वास्थ्य ध्वस्त है। मंदिर निर्माण से दलित-पिछड़ों का फायदा नहीं है ना मठाधीश पद मिलेगा न सदस्य पद।
शिक्षा-स्वास्थ्य-किसानी अगर होगी तो दलित-पिछड़े-किसानों का सबसे ज़्यादा फायदा मिलेगा। जागो अब नहीं जागे तो ये मठाधीश आपका एक-एक अधिकार अपने फलित जातियों में बांट देंगे।
(ये लेख प्रशांत कनौजिया ने लिखा है, प्रशांत पत्रकार रह चुके हैं और अब वे आरएलडी में जुड़ गए हैं.)
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