ज्ञात हो कि वर्ष 2015 के बाद से NCRB ने लिंचिंग के मामलों से संबंधित आँकड़े जारी नहीं किए हैं। इस मामले में NCRB का कहना था कि मॉब लिंचिंग को लेकर राज्यों द्वारा जो आँकड़े प्रस्तुत किये गए वे हैरान करने वाले थे। हालाँकि मॉब लिंचिंग को लेकर कई संस्थाओं ने आकंड़े जारी किए हैं वो चौंकाने वाले हैं। वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने लिंचिंग को 'भीड़तंत्र के एक भयावह कृत्य' के रूप में संबोधित करते हुए केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को कानून बनाने के दिशा-निर्देश दिये थे। इसके बावजूद विभिन्न राज्यों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है और लिंचिंग की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं।
क्या कहता है कानून
भारतीय दंड संहिता (IPC) में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जान बूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है।
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