तेलगांव ,सोलापुर- कहते हैं कि समय पंख लगाकर उड़ता है और इसलिए पलक झपकने की तेजी से दुनिया बदल जाती है, लेकिन 45 वर्षीय रमाबाई (बदला हुआ नाम) के लिए जीवन वर्ष 2006 से वहीं ठहरा हुआ है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के एक छोटे से गांव तेलगांव में, यह दलित महिला आज भी अपने बेटे, उसकी पत्नी और दो बच्चों के साथ अभावपूर्ण, बहिष्कृत और निराशाजनक जीवन जी रही हैं।
14 मार्च 2006 की वह काली घड़ी, जिसने उनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया। उस दिन की भयावह यादें - उनके शरीर पर दौड़ते दर्जनों हाथ, कपड़ों को फाड़ कर निर्वस्त्र करना और बालों से खींच कर फिर पूरे गांव में घसीटना - आज भी उनके जेहन में ताजा हैं। मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना में उनके सात वर्षीय मासूम बेटे को भी नहीं बख्शा गया। स्कूल से खींचकर लाए गए बच्चे के साथ भी ऐसी ही क्रूरता की गई और मां-बेटे को एक साथ प्रताड़ित किया गया।
इस त्रासद कहानी में और भी कई मोड़ हैं। 2020 में दोषी करार दिए गए 9 लोग आज जमानत पर बाहर हैं। जेल से बाहर आकर ये दोषी शर्म से मुँह छिपाने की बजाय रमाबाई के घर के सामने से दिन में बीसियों बार चौड़े होकर निकलते हैं।
रमाबाई की एकमात्र सुरक्षा - पुलिस संरक्षण - भी बिना किसी पूर्व सूचना या कारण बताये वापस ले लिया गया है। न्याय की लड़ाई में जीत के बावजूद, उनका जीवन अब भय और असुरक्षा की छाया में है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए रमाबाई रुआंसी थी।
" उस भयावह घटना के बाद मार्च 2006 से मुझे आरोपियों से पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई थी। लेकिन अभी इस साल 18 अगस्त से मेरी पुलिस सुरक्षा बंद हो गई है। अपनी एवं अपने परिवार की जान को लेकर मुझे बहुत डर लगा रहता है। सभी दोषी मेरे घर के पास रहते हैं, दिन में कई बार मेरे घर के सामने से निकलते हैं. मेरे कारण इन्हें जेल जाना पडा है, सजा हुई है - क्या ये मुझे और मेरे परिवार को छोड़ देंगे? मेरी सुरक्षा वापस ले ली गई है...वे मुझे और मेरे परिवार को नुकसान पहुंचाने के लिए फिर से मेरे खिलाफ कुछ करेंगे। अगर मेरे और मेरे परिवार के साथ कुछ भी बुरा होता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की होगी" रमाबाई बिना रुके एक सांस में कह जाती हैं।
रमाबाई के बेटे अजय (बदला हुआ नाम) ने द मूकनायक को बताया केवल जान की रक्षा ही अकेली परेशानी नहीं है--- " मैंने दसवी तक पढाई की है, कोई और काम जानता नहीं हूँ तो खेतों में मजदूरी करके 5 जनों का पेट भरते हैं. रोजाना मजदूरी मिले ये भी पक्का नहीं- किसी दिन काम मिला तो जाता हूँ वरना घर में हम कैद रहते हैं" . गाँव में कोई भी रमाबाई और इसके परिवार से मेलमिलाप नहीं रखता. "
तेलगांव में करीब 2500 की आबादी है जिसमे से 80 फीसदी मराठा और सवर्ण लोग हैं , बाकी दलित और पिछड़े समुदाय हैं. रमाबाई चर्मकार समुदाय से हैं जो अनुसूचित जाति है.
अजय आगे कहते हैं , " हमारे दलित समाज के लोग भी दोषी पक्ष के साथ हैं, वे हमारे साथ नहीं देते हैं क्योंकि दोषी लोग प्रभावशाली और पैसे वाले हैं, हमारे साथ देने से सबको मना किया हुआ है इसलिए ना कोई हमारे घर आता है ना ही हम अपने समाज में किसी कार्यक्रम में बुलाये जाते हैं" 18 साल पहले जब अजय को अपनी माँ के साथ गाँव में परेड करवाया गया था, वह मात्र 7 साल का था, उस घटना का खौफ आज भी उसके मन में इतना गहरा बैठा है कि अनजान लोगों से बात करते हुए भी आशंकित हो जाता है. घरों में मेल जोल तो दूर की बात है गाँव में उन्हें कोई राशन पानी नही नहीं देता. किराना का सामान और सब्जी लाने के लिए बस चढ़कर 7 किलोमीटर दूर कांदल गाँव जाना पड़ता है.
अजय का कुछ वर्ष पूर्व विवाह हुआ, पत्नी घर और बच्चों को संभालती है. मायूस शब्दों में वो कहते हैं " मेरे 5 साल की लडकी है जो आंगनबाड़ी जाती है, 2 साल का लडका है- इन्हें पढ़ाना है ताकि ये मेरी तरह मजदूरी करके जिन्दगी काटने को मजबूर ना हो लेकिन क्या करूं? हमारे पास कोई रास्ता नहीं है- कोई खेती बाड़ी नहीं, गाँव में रहना मुश्किल और ख़तरा पूर्ण है लेकिन हम कहाँ जाए? ना सरकार मदद करती हैं ना कोई सुनता है".
रमाबाई बताती हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत केस होने के बाद केवल 50 हजार रूपये का मुआवजा मिला है जबकि 2020 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेशानुसार, उन्हें 2006 से 2020 तक की मजदूरी की हानि और परिवहन आदि के लिए सभी वित्तीय सहायता मिलनी थी, जो अब तक नहीं मिली है और वह अभी भी कोर्ट के निर्णय के क्रियान्वयन की प्रतीक्षा कर रही हैं। रमाबाई ने हाल ही में समाज कल्याण विभाग को अर्जी दी है जिसमे 1 करोड़ 10 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की है।
14 मार्च 2006 को हुई दर्दनाक घटना की पीड़िता ने अपने आवेदन में पिछले 18 वर्षों में हुए नुकसान का विस्तृत ब्यौरा दिया है। रमाबाई ने बताया कि इस घटना के बाद से न केवल उनकी रोजी-रोटी और रोजगार का नुकसान हुआ, बल्कि उनकी और उनके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा को भी गंभीर क्षति पहुंची। उनके और उनके पुत्र के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़े गहरे प्रभाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी वे सामाजिक बहिष्कार और अलगाव का सामना कर रही हैं।
रमाबाई का कहना है कि यह मुआवजा उनके और उनके पुत्र के साथ हुए अन्याय, मानसिक यातना, सामाजिक प्रतिष्ठा के नुकसान और भविष्य पर पड़े दुष्प्रभाव की भरपाई के लिए है।
इस मामले में द मूकनायक ने रमाबाई के परिवार को मानसिक संबल और कानूनी परामर्श में सहायता कर रहे दलित अधिकार कार्यकर्ता नागसेन सोनारे राष्ट्रीय अध्यक्ष, एसीजेपी (Ambedkar Center for Justice and Peace (ACJP) से बात की. सोनारे बताते हैं कि कानून-पुलिस सबके होने के बावजूद एक दलित महिला के लिए समाज में इज्जत के साथ जीना कितना दुश्वार है. सभी नौ आरोपियों को गिरफ्तार कर पांच वर्ष के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा दी गई थी, परंतु सभी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश के विरुद्ध अपील की और बॉम्बे उच्च न्यायालय से जमानत प्राप्त कर ली है और वर्तमान में स्वतंत्र घूम रहे हैं।
पीड़िता और उनका परिवार आरोपियों से अपनी जान के लिए गंभीर खतरे में हैं। गांव समाज से बहिष्कृत एक महिला कैसे इस जातिवादी लोगों से मुकाबला कर सकेगी जबकि दो माह से उसके पास पुलिस प्रोटेक्शन भी नहीं है.
सोनारे बताते हैं , " हमारे संगठन ने बहुत पहले मांग की थी कि उन्हें तेलगांव के शक्तिशाली दोषी लोगों से दूर, शहरी क्षेत्र में 15-20 लाख रुपये की वित्तीय सहायता के साथ पुनर्वासित किया जाए, जहां वह किराने की दुकान शुरू कर सकें और अपने परिवार के साथ शांतिपूर्वक रह सकें. लेकिन अभी तक सरकार ने इस महिला की पीड़ा पर सहानुभूतिपूर्वक विचार नहीं किया है, हम लगातार अधिकारियों से मिलकर उन्हें मदद दिलाने को प्रयासरत हैं साथ ही उनकी सुरक्षा निश्चित करने के लिए पुलिस प्रोटेक्शन दुबारा शुरू करने को भी लिखा है".
पीड़िता के भयावह सार्वजनिक अपमान और गांव में उसके बाद हुए सामाजिक बहिष्कार के पीछे जातिगत भेदभाव, पितृसत्तात्मक नियंत्रणऔर संदेह का घातक मिश्रण है, जिसने उसे शक्तिशाली लोगों के लिए खतरा बना दिया। एकल माता और वंचित समुदाय की महिला रमाबाई का आत्मविश्वास और आत्मनिर्भर होना जातिवादी लोगों को नागवार गुजरा. रमाबाई का अपने पति से विवाद था और तलाक के केस के सिलसिले में कई बार शहर जाना पड़ता था. ऐसे में जब गाँव में अवैध शराब बनाये जाने को लेकर किसी ने पुलिस को गुमनाम पत्र भेजा जो गाँव के प्रभावशाली लोगों को अखरा. उन्हें संदेह रमाबाई पर हुआ लेकिन उनके बार-बार इंकार करने के बावजूद, गांव वालों ने मान लिया कि वही उस गुमनाम पत्र की लेखिका थीं, जिसने इन शक्तिशाली लोगों पर अवैध शराब और देह व्यापार का आरोप लगाया था।
उनके तलाक के सिलसिले में सोलापुर की यात्रा को उनके खिलाफ षड्यंत्र के प्रमाण के रूप में देखा गया। इस धारणा ने कि वह "अपने स्तर से ऊपर" थीं और इसलिए दोषी थीं, उन्हें प्रताड़ित करने में योगदान दिया और अंततः उन्हें नग्न परेड करवाने के दुस्साहस तक ले गया ताकि उन्हें "सबक" सिखाया जा सके।
हालाँकि बाद की जांच में पुष्टि हुई कि रमाबाई ने वह पत्र नहीं लिखा था; उनकी हस्तलिपि पत्र से मेल नहीं खाती थी। फिर भी, परंपरागत शक्ति संरचनाओं को चुनौती देने की कीमत आज भी वह और उनका बेटा चुकाते हुए सामाजिक बहिष्कार, अपमान और प्रताड़ना के शिकार बने हुए हैं।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.