उत्तर प्रदेश: सुल्तानपुर जिला जेल में मई माह में हुई पोट्री फार्म के मालिक की हत्या के मामले में जेल भेजे गये दो दलित समुदाय के कैदियों का शव 21 जून को बैरक में लटका मिला था। इस मामले में परिजनों ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी। मामले में हुई मजिस्ट्रियल जांच में रिपोर्ट में चौकाने वाले खुलासे किए गए हैं।
दोनों दलित कैदियों के शरीर पर चोट के निशान मिले हैं। पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों के पैनल से जांच अधिकारी द्वारा लिये गए बयानों में डॉक्टर ने यह स्पष्ट किया है कि दोनों की मौत 21 जून से पहले हो चुकी थी। इसके साथ ही उन्हें जहर दिया गया था। 12 घण्टे से दोनों ने कुछ नहीं खाया था। उनके पेट में तरल था। जबकि जेल के अफसरों ने दावा किया था कि दोनों ने अवसाद में आत्महत्या की थी। लेकिन जांच के दौरान अन्य कैदियों ने बताया कि वह बिल्कुल भी अवसाद में नहीं थे। बल्कि हंसी मजाक कर रहे थे। मजिस्ट्रियल जांच में अधिकारी ने जेल प्रशासन को दोषी माना है।
अमेठी जिले के जामों थाने के चौधरी का पुरवा लोरिकपुर गांव के रहने वाले पोल्ट्री फार्म संचालक ओम प्रकाश यादव (48) की बीते 26 मई, 2023 की रात हत्या कर दी गई थी। इस मामले में जामों पुलिस ने करिया उर्फ विजय पासी व मनोज रैदास को 30 मई को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। दोनों को सुल्तानपुर जिला जेल में बन्द किया गया था। 21 जून को तत्कालीन जेल अधीक्षक उमेश सिंह ने कहा था कि दोनों ने पेड़ से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। वहीं, पोस्टमार्टम करने वाले पैनल से स्पष्ट कर दिया था कि दोनों कैदियों की मौत दो दिन पहले मौत हुई थी।
घटना की मजिस्ट्रियल जांच मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सपना त्रिपाठी को सौंपी गई थी। उन्होंने पांच बंदी और कैदियों के अलावा तीन हुडी वार्डर, दो वार्डर, मृतक मनोज के पिता रंगीलाल रैदास, मां सीतारानी, मृतक करिया पासी के भाई अशोक कुमार, रिश्तेदार रविन्द्र विजय, जेलर प्रभारी रीता श्रीवास्तव, कविता कुमारी, उप जेलर दरक्शा बानो, पोस्टमार्टम करने वाले दो डाक्टरों सहित जेल अधीक्षक उमेश सिंह को मिलाकर कुल 20 लोगों के बयान दर्ज किये थे, जिसमें यह खुलासा हुआ है।
दो बंदियों मनोज और विजय की हत्या को छिपाने के लिए जेल के अफसरों ने जमकर मेहनत की थी। उन्होंने न केवल उसकी मौत का वक्त छिपाया बल्कि अपने झूठे बयानों से भी सीजेएम की जांच को गुमराह करने का प्रयास किया। यहां तक कि मांगने के बावजूद जांच कर रहीं सीजेएम को विसरा रिपोर्ट तक नहीं उपलब्ध कराई गई। इसके बावजूद बयानों और परिस्थतिजन्य साक्ष्यों से ही सच सामने आ गया।
तत्कालीन सीजेएम सपना त्रिपाठी ने जांच के दौरान पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों का बयान लिया तो उन्होंने साफ कर दिया कि दोनों की मौत 21 जून से पहले ही हो चुकी है। यह भी बताया कि दोनों को मरने से पहले जहर दिया गया था। दोनों के पेट में तरल ही था जिससे पता चलता है कि मौत से 12 घंटे पहले तक उन्होंने कुछ भी खाया-पीया नहीं था। संभवत: उसी हाल में उन्हें फंदे से लटका दिया गया था। दोनों के शरीर पर चोटों के निशान भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाए गए थे। जेल अफसरों ने दावा किया था कि दोनों ने अवसाद में होने के कारण आत्महत्या की थी लेकिन जांच के दौरान बंदियों ने साफ बताया कि दोनों किसी तरह के अवसाद में नजर नहीं आ रहे थे बल्कि वे हंसी मजाक भी कर रहे थे।
बंदियों ने यह भी बताया कि दोनों के पास चादर भी नहीं थी। ऐसे में उन्हें फांसी लगाने के लिए कपड़ा कहां से मिला? जेल अफसर इसका भी जवाब जांच में नहीं दे पाए हैं।
जांच में जेल अधीक्षक ने कहा कि बंदीगणों का बैरेक नहीं बदला गया था। वह शुरू से ही 19 नंबर अर्थात बच्चा बैरक में थे। किंतु प्रभारी जेलर कविता कुमारी व एक अन्य साक्षी सत्यम सिंह ने सीजेएम को बताया कि मनोज व करिया उर्फ विजय को बच्चा बैरक का कार्ड बनने से पहले बैरक नंबर 12 में रखा गया था। सत्यम सिंह के अनुसार मनोज व करिया ने बताया था कि हमारी ड्यूटी कैन्टीन में लगाई गई थी।
जांच के दौरान जेल की एक बड़ी अव्यवस्था भी उजागर हुई है। जांच के दौरान पता चला है कि कैदियों का बैरक बदलने के लिए पैसे भी लिए जाते हैं। रिपोर्ट में सीजेएम ने बाकायदा इसका जिक्र भी किया है।
इस मामले में पूर्व आईपीएस और अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने दोषी अफसरों के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज कर सीबीसीआईडी जांच कराने की मांग की है।
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