भोपाल। मध्य प्रदेश के मऊगंज जिले के चितई पुरवा गांव में जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न का एक गंभीर मामला सामने आया है। एक दलित युवक के कुर्सी पर बैठने को लेकर हुए विवाद का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो में अनुसूचित जाति के युवक अशोक साकेत के साथ कथित जातिगत दुर्व्यवहार होते हुए देखा जा सकता है। अशोक का कहना है कि जब वह अपने घर के बाहर कुर्सी पर बैठे थे, तो गांव के मयंक द्विवेदी ने उन्हें देखकर उनसे दुर्व्यवहार किया और जातिसूचक गालियां दीं।
मऊगंज जिले के लौर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चितई पुरवा गांव की यह घटना है। अशोक साकेत अनुसूचित जाति से हैं और 10 नवंबर की सुबह अपने घर के बाहर कुर्सी पर बैठे हुए थे। उसी समय गांव का मयंक द्विवेदी वहां से गुजरा। अशोक के बैठने पर मयंक को गुस्सा आ गया और उसने अशोक को जमकर खरी-खोटी सुनानी शुरू कर दी। मयंक ने अशोक से कहा, "तुम नीची जाति के हो, तुम्हें हमारे सामने कुर्सी पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है।"
इस पर अशोक ने जवाब देते हुए कहा कि वह अपने घर के बाहर बैठे हैं, और इससे किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। इस पर मयंक ने और भड़ककर अशोक के साथ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए गालियां देनी शुरू कर दीं। अशोक ने पुलिस में इस घटना की शिकायत दर्ज कराई और इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद यह मामला चर्चा में आ गया है।
अशोक साकेत ने इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उन्होंने पुलिस पर भी दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। अशोक ने कहा, कि जब वह लौर थाने में शिकायत दर्ज कराने पहुंचे, तो वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने भी उनके साथ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया और उन्हें अपमानित किया। बाद में हालांकि, शिकायत को स्वीकार कर लिया गया और एफआईआर दर्ज कर ली गई।
इस मामले को लेकर अशोक ने द मूकनायक से बातचीत में बताया, "मैं जब शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचा, तो पुलिस ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया और उल्टा मुझ पर ही आरोप लगाकर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने लगे। इसके बाद एफआईआर तो दर्ज हो गई, लेकिन पुलिस का रवैया मेरे लिए बहुत आहत करने वाला था।"
अशोक साकेत ने बताया कि एफआईआर दर्ज कराने के बाद उनके घर पर कुछ अज्ञात लोगों ने तोड़फोड़ की और उन्हें धमकी दी। गुरुवार शाम को जब अशोक थाने से लौटे तो उनके घर पर कुछ लोगों ने हमला किया और दरवाजा तोड़ दिया। इस दौरान उन्हें चेतावनी दी गई कि "तुमने पुलिस में शिकायत की है, इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहो।" अशोक के परिवार ने इस घटना पर पुलिस से कार्रवाई की मांग की है।
इस घटना पर अनुसूचित जाति (एससी) कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने प्रतिक्रिया दी है। प्रदीप अहिरवार ने कहा, "प्रदेश में आज भी जातिगत उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। यह घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे स्पष्ट है कि समाज में अभी भी जातिवाद और भेदभाव की गहरी जड़ें हैं। सरकार को ऐसे मामलों में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो सकें।"
भारत का संविधान जातिगत भेदभाव के खिलाफ कड़े प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को समाप्त करने का प्रावधान है, जो जातिगत भेदभाव को एक अपराध मानता है। इसके अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किसी भी प्रकार का जातिसूचक व्यवहार और उत्पीड़न करने वाले को सख्त सजा दी जा सकती है। इस अधिनियम के अंतर्गत जातिसूचक अपमान, शारीरिक हमला, संपत्ति का नुकसान जैसे अपराध संज्ञेय माने जाते हैं और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान है।
इस घटना के बाद दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने जातिगत उत्पीड़न की घटनाओं को खत्म करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने और पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग की है। इन संगठनों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं केवल कानून से नहीं बल्कि सामाजिक चेतना और संवेदनशीलता से ही समाप्त हो सकती हैं। इस घटना का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
मऊगंज पुलिस के अनुसार, उन्होंने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है और मामले की जांच की जा रही है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए, पुलिस अधीक्षक रसना ठाकुर ने कहा, "दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मामला दर्ज किया जा चुका है। पुलिस कर्मियों के द्वारा पीड़ित से अभद्रता की शिकायत अबतक नहीं मिली है। यदि ऐसा हुआ होगा तो नियमानुसार कार्रवाई करेंगे।"
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