मध्य प्रदेश: दलित दूल्हे पुलिस कांस्टेबल का आरोप, मंदिर में प्रवेश करने से रोका और मंदिर पर लगाया ताला

मध्य प्रदेश: दलित दूल्हे पुलिस कांस्टेबल का आरोप, मंदिर में प्रवेश करने से रोका और मंदिर पर लगाया ताला
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उज्जैन। देश में जातीय भेदभाव की जड़ें कितनी गहरी हैं इसके रोज नए-नए उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां दलित और आदिवासी तबके के लोगों को आज भी भेदभाव की नज़र से देखा जाता है. ताज़ा मामला मध्य प्रदेश के उज्जैन से सामने आया है.

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, दलित समाज के एक संगठन ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में दलित समाज के एक दूल्हे को जो पुलिस कांस्टेबल है, को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया और उस धार्मिक स्थल पर ताला लगा दिया.

रिपोर्टस के मुताबिक अखिल भारतीय बलाई महासंघ के अध्यक्ष मनोज परमार ने बताया है कि, उज्जैन के भाटपचलाना क्षेत्र के बर्दिया गांव में पुलिस कांस्टेबल मेहरबान परमार अपनी बारात के दौरान रविवार रात राम मंदिर में दर्शन करना चाहते थे, लेकिन जातिगत भेदभाव के चलते कुछ जातिवादी लोगों ने मंदिर के द्वार पर ताला लगा दिया ताकि दलित समुदाय का दूल्हा इसके भीतर प्रवेश न कर सके.

मीडिया रिपोर्टस की माने तो, उज्जैन के भाटपचलाना थाने के प्रभारी संजय वर्मा ने बताया है कि गांव के राजपूत समुदाय ने पुलिस के सामने कुछ दस्तावेज पेश कर दावा किया है कि संबंधित राम मंदिर राजपूत समाज ने बनवाया है और इसी समुदाय के लोग अपने खर्च पर पिछले कई बरसों से इस मंदिर का रख-रखाव भी कर रहे हैं. थाना प्रभारी ने ये भी बताया है कि, ''उन्हें बताया गया है कि मंदिर के पुजारी के परिवार में किसी व्यक्ति की मौत हो गई है और सूतक (परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर तय समय तक पूजा-पाठ से दूर रहने की हिंदू मान्यता) के कारण मंदिर को बंद किया गया है.''

थाना प्रभारी ने बताया कि, उन्होंने अब प्रशासन से यह तय करने का अनुरोध किया है कि संबंधित राम मंदिर सार्वजनिक है या नहीं? उन्होंने कहा कि इस संबंध में प्रशासन के फैसले के बाद पुलिस उचित कदम उठाएगी. वहीं, परमार ने दावा किया कि करीब 5,000 की आबादी वाले बर्दिया गांव का यह राम मंदिर "सार्वजनिक" है.

आपको बता दें कि, मध्यप्रदेश में जातिगत भेदभाव की यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे कुछ दिन पहले ही जातिवादी मानसिकता के लोगों ने राज्य के नीमच और धार ज़िले में दलित समुदाय के दूल्हों को बारात के दौरान घोडी पर चढ़ने से रोका था. जिसके बाद पुलिस प्रशासन की निगरानी में दलित दूल्हों की बारात निकलवाई गई थी.

लेकिन सवाल ये है कि, आखिर कब तक दलितों, आदिवासियों को जातिवादी मानसिकता का शिकार बनाया जाता रहेगा. हिन्दुओं के नाम पर वोट बैंक समझे जाने वाले बहुजनों को कब समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त होगा. आपके नेता भले ही ये कहते हों कि जातिगत भेदभाव खत्म हो गया है, लेकिन हकीकत अभी भी इससे कोसों दूर है.

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